News

व्यक्ति विशेष

भाग – 482.

अकबर शाह द्वितीय

अकबर द्वितीय भारतीय इतिहास में मुगल साम्राज्य के एक महत्वपूर्ण शासक थे. उनका शासनकाल वर्ष 1806 – 37 तक रहा. उन्हें खासतौर से इसलिए जाना जाता है क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश राज में रहते हुए भारतीय संस्कृति और साहित्य की रक्षा की कोशिश की थी. अकबर द्वितीय ने उर्दू और फ़ारसी साहित्य का समर्थन किया और उन्होंने कई कवियों और विद्वानों को अपने दरबार में आश्रय दिया.

अकबर द्वितीय का जन्म 22 अप्रॅल 1760 को हुआ था और उनकी मृत्यु 28 सितम्बर, 1837 को हुई थी. अकबर द्वितीय के दरबार में राजा राम मोहन राय जैसे प्रगतिशील विचारक भी शामिल थे, जिन्होंने बाद में ब्रह्म समाज की स्थापना की और सामाजिक-धार्मिक सुधारों के लिए काम किया. इस तरह, अकबर द्वितीय का शासनकाल भारतीय समाज में बदलाव लाने वाले विचारों के प्रसार के लिए एक माध्यम बना.

==========  =========  ===========

निर्माता-निर्देशक बी. आर. चोपड़ा

बी. आर. चोपड़ा जिनका पूरा नाम बलदेव राज चोपड़ा है, भारतीय सिनेमा के प्रमुख निर्माता-निर्देशक थे, उनका जन्म 22 अप्रैल 1914 को पंजाब में हुआ था और उनका निधन 5 नवंबर 2008 को हुआ. बी. आर. चोपड़ा ने भारतीय सिनेमा में कई दशकों तक अपनी छाप छोड़ी, विशेषकर वर्ष 1950 – 80 के दशक के दौरान. उन्होंने कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया जैसे कि “नया दौर” (1957), “साधना” (1958), “कानून” (1960), “गुमराह” (1963), और “हमराज़” (1967).

उनकी फिल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित होती थीं और उन्होंने अपनी कथाओं के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया. बी. आर. चोपड़ा की फिल्में न केवल मनोरंजक थीं, बल्कि उनमें गहरी नैतिकता और न्याय के लिए एक स्पष्ट आवाज भी थी.

बी. आर. चोपड़ा की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक थी टेलीविजन पर “महाभारत” का निर्माण, जो वर्ष 1988 में प्रसारित हुआ. यह धारावाहिक भारतीय टेलीविजन पर सबसे प्रभावशाली और लोकप्रिय सीरियलों में से एक बन गया. “महाभारत” ने न केवल भारतीय दर्शकों को आकर्षित किया, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति के प्रति रुचि बढ़ाई.

उनका काम और योगदान भारतीय सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण रहा है, और आज भी उनकी फिल्में और धारावाहिक सम्मान के साथ देखे जाते हैं.

==========  =========  ===========

अभिनेत्री, गायिका और फ़िल्म निर्माता कानन देवी

कानन देवी भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री, गायिका और फिल्म निर्माता थीं. वे भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार और बंगाली फिल्मों की सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक थीं. उनका योगदान हिंदी और बंगाली सिनेमा दोनों में महत्वपूर्ण रहा है.

कानन देवी का जन्म  पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 22 अप्रैल, 1916 को एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था और इनका निधन 17 जुलाई 1992 को कोलकाता में हुई थी. कानन देवी ने अपने कैरियर की शुरुआत 1926 में मूक फिल्मों से की. उनकी पहली फिल्म थी “जयदेव” (1926). उन्होंने जल्द ही अपनी अदाकारी और गायन से दर्शकों का दिल जीत लिया.

फिल्में: –  विधिलिपि (1937),  साथी (1938),  विधि डांडी (1939), विमला (1939), नर्तकी (1940).

उनकी अभिनय क्षमता के साथ-साथ उनकी गायकी भी बेहद लोकप्रिय हुई. उनकी आवाज़ और संगीत में उत्कृष्टता के कारण वे जल्दी ही एक प्रमुख गायिका बन गईं. कानन देवी एक सफल अभिनेत्री होने के साथ-साथ एक प्रतिभाशाली गायिका भी थीं. उन्होंने कई फिल्मों में गीत गाए और उनकी आवाज़ ने उन्हें और भी प्रसिद्ध बना दिया. उनकी आवाज़ में सजीवता और मिठास थी, जिसने उन्हें संगीत प्रेमियों के दिलों में खास जगह दिलाई. कानन देवी ने फिल्म निर्माण में भी हाथ आजमाया और कुछ फिल्में प्रोड्यूस कीं. उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी, श्रीमती पिक्चर्स, की स्थापना की और कई उल्लेखनीय फिल्मों का निर्माण किया.

कानन देवी को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. वर्ष 1968 में, उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्हें विभिन्न संगीत और फिल्म संस्थानों द्वारा भी सम्मानित किया गया. कानन देवी का निजी जीवन काफी संघर्षमय रहा. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और अपनी मेहनत और समर्पण से सफलता प्राप्त की. उनका जीवन सिनेमा प्रेमियों और आगामी पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है.

कानन देवी भारतीय सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपने अद्वितीय योगदान से सिनेमा को समृद्ध किया। उनके अभिनय, गायन और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में किए गए कार्यों ने उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है.

==========  =========  ===========

न्यायाधीश पी. चंद्रशेखर राव

न्यायाधीश पी. चंद्रशेखर राव एक प्रतिष्ठित भारतीय न्यायविद् थे, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी सेवाएं दीं. वे विशेष रूप से उनके कार्यकाल के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुआवजा आयोग (United Nations Compensation Commission, UNCC) के अध्यक्ष के रूप में जाने जाते हैं. यह आयोग कुवैत के खिलाफ इराक के वर्ष 1990 के आक्रमण के बाद उत्पन्न दावों और मुआवजे से संबंधित मामलों को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित किया गया था.

पी. सी. राव का जन्म 22 अप्रैल 1936 में आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में हुआ था. उनका पूरा नाम पतिबंदला चंद्रशेखर राव है. इन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. न्यायाधीश राव का कैरियर विभिन्न क्षेत्रों में विस्तृत था, और उन्होंने भारतीय न्यायिक सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी विशेषज्ञता और न्यायिक प्रज्ञा ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई थी.

न्यायाधीश पी. चंद्रशेखर राव का निधन 11 अक्टूबर 2018  को हुआ था.  उनके कार्यों ने न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली को, बल्कि वैश्विक न्यायिक समुदाय को भी प्रभावित किया. न्यायाधीश चंद्रशेखर राव के न्यायिक दृष्टिकोण और उनके निर्णयों में उच्च नैतिक मूल्य और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट दिखाई देती थी.

==========  =========  ===========

कमला प्रसाद बिसेसर

कमला प्रसाद बिसेसर त्रिनिदाद और टोबैगो की प्रमुख राजनीतिक हस्ती हैं और वह इस देश की प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2010 – 15 तक कार्यरत रहीं. वह त्रिनिदाद और टोबैगो की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं और वर्तमान में विपक्ष की नेता के रूप में भी सेवारत हैं.

कमला प्रसाद बिसेसर का जन्म 22 अप्रैल 1952 को हुआ था. वे एक अनुभवी वकील भी हैं और उन्होंने अपनी शिक्षा लंदन और वेस्ट इंडीज यूनिवर्सिटी में प्राप्त की. उन्होंने अपने कानूनी और राजनीतिक कैरियर में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है, जिसमें अटॉर्नी जनरल और शिक्षा मंत्री का पद भी शामिल है.

उनके नेतृत्व में, उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना के क्षेत्र में कई प्रगतिशील नीतियाँ लागू कीं. कमला प्रसाद बिसेसर ने विशेष रूप से शिक्षा के मुफ्त प्रवेश और बढ़ावा देने के लिए कई पहल की, जिससे देश की युवा पीढ़ी को लाभ हुआ.

कमला प्रसाद बिसेसर की वैश्विक पहचान एक प्रभावी और प्रेरणादायक नेता के रूप में है, जिन्होंने लिंग समानता, शिक्षा और आर्थिक विकास के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में कार्य किया है.

==========  =========  ===========

लेखक चेतन भगत

चेतन भगत एक भारतीय लेखक हैं जिन्होंने विशेष रूप से युवा वयस्कों के लिए अंग्रेजी भाषा में उपन्यास लिखे हैं. उनका जन्म 22 अप्रैल 1974 को नई दिल्ली, भारत में हुआ था. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से अभियांत्रिकी में स्नातक की डिग्री और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद से व्यवसाय प्रबंधन में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की.

चेतन भगत की पहली किताब “फाइव पॉइंट समवन” (2004) ने उन्हें भारत में लोकप्रियता दिलाई। इसके बाद उन्होंने “वन नाइट @ द कॉल सेंटर” (2005), “थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ” (2008), “2 स्टेट्स” (2009), “रेवोल्यूशन 2020” (2011), “हाफ गर्लफ्रेंड” (2014), और “वन इंडियन गर्ल” (2016) जैसे उपन्यास लिखे जो बहुत सफल रहे.

उनकी कई किताबें भारतीय समाज में युवाओं के मुद्दों, रोमांस, कैरियर और आधुनिक जीवनशैली के चुनौतियों को दर्शाती हैं. कई किताबें बॉलीवुड फिल्मों में भी अडैप्ट की गई हैं, जैसे “3 इडियट्स” (फाइव पॉइंट समवन पर आधारित), “हेल्लो” (वन नाइट @ द कॉल सेंटर पर आधारित), और “2 स्टेट्स”. चेतन भगत को उनकी साहित्यिक शैली के लिए सराहना के साथ-साथ आलोचना भी प्राप्त हुई है, लेकिन उनके लेखन ने भारतीय युवाओं के बीच पठन संस्कृति को बढ़ावा दिया है.

==========  =========  ===========

जेम्स प्रिंसेप

जेम्स प्रिंसेप एक अंग्रेजी विद्वान और नक्काशीदार थे, जो खासकर अपने भारतीय पुरातत्व और सिक्का-शास्त्र (नुमिस्माटिक्स) के कार्यों के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 20 अगस्त 1799  को हुआ था और उनका निधन 22 अप्रैल 1840 को हुआ. प्रिंसेप की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक ब्राह्मी लिपि का विश्लेषण और व्याख्या करना था, जो कि मौर्य काल के अभिलेखों की लिपि है.

उन्होंने ब्राह्मी लिपि में लिखे गए अशोक के शिलालेखों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की और इस तरह उन्होंने भारतीय इतिहास के मौर्य काल के बारे में नई जानकारियों को प्रकाशित किया. उनकी यह खोज ब्राह्मी लिपि और अशोक स्तंभों के विश्लेषण के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई. जेम्स प्रिंसेप ने भारत में अपने कार्यकाल के दौरान कई अन्य ऐतिहासिक और पुरातात्विक खोजों को भी अंजाम दिया.

उनके काम ने न केवल पुरातत्व विज्ञान में बल्कि समग्र रूप से भारतीय इतिहास के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.

==========  =========  ===========

क्रांतिकारी जोगेशचंद्र चटर्जी

जोगेशचंद्र चटर्जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, जो विशेष रूप से अनुशीलन समिति के साथ अपने जुड़ाव के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनका जीवन ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष से ओत-प्रोत था.

जोगेशचंद्र चटर्जी का जन्म 1895 में हुआ था और उन्होंने अपने युवा दिनों में ही राष्ट्रीयता की भावना को अपनाया. वे अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बने, जो उस समय बंगाल में एक प्रमुख क्रांतिकारी संगठन था. इस संगठन के माध्यम से, जोगेशचंद्र ने कई गुप्त और सशस्त्र विद्रोहों में भाग लिया.

वर्ष 1924 में उन्हें काकोरी कांड के साथ जोड़ा गया था, एक घटना जहाँ क्रांतिकारियों ने एक ट्रेन को लूटा था जिसमें ब्रिटिश सरकार का खजाना था. इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश प्रशासन की नजरों में चिह्नित कर दिया और उन्हें कई बार जेल में डाला गया. स्वतंत्रता के बाद, जोगेशचंद्र चटर्जी ने राजनीतिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाई और वे संविधान सभा के सदस्य भी रहे. उन्होंने नवगठित भारतीय राष्ट्र में लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए काम किया. उनकी मृत्यु 22 अप्रैल 1969 को हुई.

जोगेशचंद्र चटर्जी की विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रेरणादायक और सम्मानित अध्याय के रूप में बनी हुई है, जिसमें उनकी वीरता और समर्पण को याद किया जाता है.

==========  =========  ===========

राजनीतिज्ञ हितेश्वर साइकिया

हितेश्वर साइकिया भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. वो  असम राज्य के दो बार मुख्यमंत्री बने. उनका जन्म 03 अक्टूबर 1934 को हुआ था, और उनकी मृत्यु 22 अप्रैल 1996 को हुई. साइकिया का राजनीतिक कैरियर असम में विभिन्न प्रशासनिक और नेतृत्व की भूमिकाओं में उनकी सेवा से भरा पड़ा है.

हितेश्वर साइकिया का पहला कार्यकाल मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 1991 – 96 तक था. इस दौरान उन्होंने कई विकासात्मक परियोजनाओं और सुधारों की दिशा में काम किया. वह विशेष रूप से अपनी प्रशासनिक क्षमताओं और राज्य के विकास में अपने योगदान के लिए जाने जाते थे.

हितेश्वर साइकिया ने अपने कार्यकाल में असम की आर्थिक प्रगति, शिक्षा के क्षेत्र में सुधार, और सामाजिक उत्थान के लिए विभिन्न नीतियां लागू कीं. उन्होंने राज्य में शांति और स्थिरता स्थापित करने के प्रयास भी किए, जो उस समय विभिन्न आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा था. उनकी मृत्यु के बाद, हितेश्वर साइकिया को एक कुशल प्रशासक और समर्पित राजनीतिज्ञ के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने असम और इसके नागरिकों के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया.

==========  =========  ===========

वायलिन वादक लालगुड़ी जयरमण

लालगुड़ी जयरमण भारतीय कर्नाटक संगीत के एक प्रमुख वायलिन वादक थे. जिन्होंने इस विधा में अपनी विशिष्ट शैली और नवाचार के साथ विश्वव्यापी प्रसिद्धि प्राप्त की. उनका जन्म 17 सितंबर 1930 को तमिलनाडु के लालगुड़ी में हुआ था, और उनका निधन 22 अप्रैल 2013 को हुआ.

लालगुड़ी जयरमण को वायलिन वादन में उनकी असाधारण तकनीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए जाना जाता है. उन्होंने वायलिन के लिए कई कृतियां लिखीं और उन्हें कर्नाटक संगीत की दुनिया में एक नवाचारी शैली के रूप में स्थापित किया. उनकी शैली को “लालगुड़ी बाणी” के नाम से जाना जाता है, जो उनके संगीत में सूक्ष्म गायकी अंग और अत्यधिक भावाभिव्यक्ति को दर्शाता है.

लालगुड़ी जयरमण ने अपने कैरियर में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किए, जिसमें पद्म भूषण (2001) और पद्म श्री (1972) शामिल हैं. उन्होंने भारत और विदेशों में कई संगीत समारोहों में प्रस्तुतियाँ दीं और विश्वभर में कर्नाटक संगीत का प्रसार किया. लालगुड़ी जयरमण भारतीय संगीत जगत में एक अमिट छाप छोड़ गए हैं.

==========  =========  ===========

संगीतकार श्रवण कुमार राठौर

श्रवण कुमार राठौर भारतीय संगीत जगत में एक प्रसिद्ध नाम हैं, विशेष रूप से उन्होंने नदीम-श्रवण की जोड़ी के रूप में अपने संगीत साथी नदीम सैफी के साथ मिलकर वर्ष 1990 के दशक में बॉलीवुड संगीत में क्रांति ला दी थी. इस जोड़ी ने अपने मेलोडियस और रोमांटिक गानों के साथ उस दशक के संगीत चार्ट्स पर राज किया.

श्रवण राठौर का जन्म 13 नवम्बर 1954 को हुआ था, और उनका निधन 22 अप्रैल 2021 को हुआ. उन्होंने नदीम के साथ मिलकर फिल्मों जैसे कि ‘आशिकी’ (1990), ‘साजन’ (1991), ‘दिल है कि मानता नहीं’ (1991), ‘फूल और कांटे’ (1991), और ‘राजा हिन्दुस्तानी’ (1996) में अपने संगीत से लाखों दिलों को जीता.

नदीम-श्रवण की जोड़ी ने न केवल नए गायकों को मौका दिया बल्कि अपने संगीत के जरिए भारतीय संगीत उद्योग में नए मानदंड भी स्थापित किए. उनके संगीत में रोमांटिक गीतों की प्रधानता थी, और उन्होंने अपनी मेलोडी और ताल के साथ एक विशेष पहचान बनाई.

श्रवण राठौर के निधन ने संगीत जगत में एक बड़ी क्षति पैदा की, लेकिन उनके संगीत की विरासत आज भी उनके अनगिनत प्रशंसकों के दिलों में जीवित है.

:

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button