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व्यक्ति विशेष

भाग – 403.

कवयित्री सावित्री बाई फुले

 सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षिका और एक प्रेरणादायक कवयित्री थीं. उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था और उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर सामाजिक सुधारों के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. वे महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और छुआछूत मिटाने के लिए समर्पित रहीं. सावित्रीबाई ने मराठी भाषा में कई प्रेरणात्मक कविताएँ लिखीं, जिनमें से एक बालगीत शिक्षा के महत्व पर बल देता है​​.

सावित्रीबाई की शिक्षा ज्योतिराव द्वारा प्रदान की गई थी और उन्होंने अहमदनगर और पुणे से शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर 18 स्कूलों की स्थापना की और अपनी मित्र फातिमा शेख़ के साथ मिलकर लड़कियों को पढ़ाया. वे पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका मानी जाती हैं​​.

सावित्रीबाई का निधन 10 मार्च 1897 को प्लेग की महामारी के दौरान हुआ, जब वे प्लेग के मरीजों की सेवा कर रही थीं​​. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय समाज में महिला शिक्षा और सामाजिक सुधार के प्रतीक के रूप में माना जाता है.

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गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी भूपति मोहन सेन

भूपति मोहन सेन भारत के एक प्रमुख गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे, जिन्होंने गणित और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हालांकि, उनके बारे में विस्तृत जानकारी और प्रसिद्धि अन्य प्रमुख भारतीय वैज्ञानिकों की तरह नहीं है, लेकिन उनका योगदान शिक्षा और अनुसंधान में सराहनीय माना जाता है.

भूपति मोहन सेन का जन्म 3 जनवरी, सन 1888 को आजादी से पूर्व बंगाल में हुआ था और उनका निधन  24 सितंबर 1978 को हुआ. भूपति मोहन सेन का प्रमुख योगदान गणित और भौतिकी के शोध और शिक्षण के क्षेत्र में था. उन्होंने इन विषयों में गहन अध्ययन किया और अपने छात्रों को शिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे एक समर्पित शिक्षक थे और उनके द्वारा प्रशिक्षित कई छात्रों ने आगे चलकर विज्ञान और गणित में नाम कमाया.

भूपति मोहन सेन ने गणित और भौतिकी के जटिल पहलुओं पर शोध किया, विशेषकर आधुनिक भौतिकी और गणितीय सिद्धांतों को समझने में. उनका अनुसंधान उन क्षेत्रों में था, जो उस समय के लिए चुनौतीपूर्ण थे और जिनका आगे चलकर विज्ञान की उन्नति में बड़ा योगदान रहा.

भूपति मोहन सेन की पहचान एक विनम्र और समर्पित वैज्ञानिक के रूप में की जाती है. उन्होंने अपने जीवन को शिक्षा और अनुसंधान के लिए समर्पित किया और अपने छात्रों के लिए हमेशा प्रेरणा बने रहे. हालांकि, भूपति मोहन सेन के बारे में अधिक विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनके योगदान को विज्ञान और गणित के क्षेत्र में मान्यता मिली और उनके शोध ने भविष्य की पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया.

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हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह

जयपाल सिंह मुंडा एक भारतीय हॉकी खिलाड़ी, स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और शिक्षाविद् थे. वे  वर्ष 1928 के ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे. इसके अलावा, वे आदिवासी अधिकारों के प्रमुख समर्थक और संविधान सभा के सदस्य भी थे.

जयपाल सिंह का जन्म 3 जनवरी 1903, खुंटी, बिहार (अब झारखंड) में हुआ था. वे मुंडा जनजाति के थे. उनकी शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी. जयपाल सिंह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे जब भारत ने वर्ष 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था. वे एक बेहतरीन सेंटर-हाफ खिलाड़ी थे, लेकिन हॉकी टीम के मैनेजमेंट से मतभेद के कारण उन्हें ओलंपिक के दौरान ही टीम छोड़नी पड़ी.

जयपाल सिंह मुंडा झारखंड के आदिवासी समाज के लिए एक प्रमुख नेता बने. वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे और आदिवासियों के अधिकारों की पुरजोर वकालत की. उन्होंने झारखंड राज्य के गठन की मांग को भी प्रमुखता से उठाया. जयपाल सिंह ने “आदिवासी महासभा” का नेतृत्व किया, जिसे बाद में “झारखंड पार्टी” में बदल दिया गया.

जयपाल सिंह का निधन 20 मार्च 1970 को हुआ था.  उनके योगदान को झारखंड और पूरे देश में सम्मान दिया जाता है, और वे भारतीय हॉकी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम हैं. उन्हें झारखंड के आदिवासियों के मसीहा के रूप में देखा जाता है. वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने खेल, राजनीति और सामाजिक सुधार के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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फ़िल्म निर्माता-निर्देशक चेतन आनंद

चेतन आनन्द फ़िल्म सदाबहार अभिनेता देव आनन्द के बड़े भाई साथ ही उनकी बहन का नाम  शान्ता कपूर (जो फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ ) था. वो भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे.

कभी इतिहास के शिक्षक रहे चेतन ने 1940 के दशक में सम्राट अशोक पर एक फ़िल्म की पटकथा लिखी थी. चेतन आनन्द का फ़िल्मी सफर वर्ष 1944 में आई फणी मजूमदार की फ़िल्म ‘राजकुमार’ से शुरू हुआ था लेकिन, एक्टिंग छोड़कर वे 1946  में फ़िल्म नीचा नगर का निर्देशन किया जिसे  कान फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार मिला था.

निर्देशित फ़िल्में : –  आखरी खत, हिंदुस्तान की कसम, कुदरत, हीर रांझा हक़ीक़त अफसर, टैक्सी ड्राइवर, आंधियां , हीर रांझा, हंसते जख्म और हिन्दुस्तान की कसम आदि.

 हिंदी सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की शुरुआत करने वाले चेतन आनन्द ने  6 जुलाई 1997 को दुनिया से विदा ले ली.

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अभिनेत्री वहीदा रहमान

वहीदा रहमान एक फ़िल्म अभिनेत्री हैं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के विभिन्न युगों में अपनी महत्वपूर्ण कला के लिए प्रसिद्ध हुई हैं. उनका जन्म 3 फ़रवरी 1938 को आंध्र प्रदेश, भारत में हुआ था. वहीदा रहमान का अभिनय कैरियर 1955 में फ़िल्म सर्कस से शुरू हुआ और उन्होंने बॉलीवुड में अपनी उपस्थिति बनाई. वे कई प्रमुख फ़िल्मों में काम कर चुकी हैं.

फ़िल्में: – कागज़ के फूल, सहिब बिबी और गुलाम, चौदहवें का चांद , बात एक रात की , तीसरी कसम , नील कमल और ख़ामोशी.

वहीदा रहमान को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं, जैसे कि नेशनल फ़िल्म अवार्ड और फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड. उन्होंने अपने कैरियर में अपने शानदार अभिनय के लिए उन्हें सिनेमा इंडस्ट्री के सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री में मान्यता दी गई है.

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अभिनेत्री दीप्ति नवल

दीप्ति नवल का जन्म 3 फ़रवरी 1952 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था. वो एक फ़िल्म अभिनेत्री हैं. दीप्ति नवल अपने कलात्मक एवं अर्थपूर्ण फिल्मों में अपने सशक्त अभिनय के लिए जानी जाती हैं.  दीप्ति नवल ने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत 1978 में फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल की फिल्म जूनुन से की थी लेकिन, उन्हें लोकप्रियता 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘एक बार फिर’ से मिली थी.

फिल्मे: – श्रीमान श्रीमती, जुनून, चश्मे बद्दूर, कथा और साथ-साथ.

दीप्ति नवल को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं, जैसे कि – नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड और फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड.

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रॉकेट वैज्ञानिक सतीश धवन

 डॉ. सतीश धवन भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक और अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे, जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डॉ. धवन का जन्म 25 सितंबर 1920 को श्रीनगर में हुआ था. उन्होंने शिक्षा का सफर भारत के विभिन्न स्थानों पर किया और इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की. उन्होंने अंतरिक्ष और रॉकेट विज्ञान में अपनी प्राधिकृतिक अध्ययन की और इस विषय में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हुए.

डॉ. धवन ने इसरो के प्रमुख के रूप में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का प्रबंधन किया और इसरो को अंतरिक्ष क्षेत्र में विश्वस्तर संगठन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. डॉ. धवन के नेतृत्व में, इसरो ने कई महत्वपूर्ण प्रक्षेपणों का सफलतापूर्वक आयोजन किया, जैसे कि – इन्सैट-एक दूरसंचार उपग्रह, आईआरएस-भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) जैसी प्रचालनात्मक प्रणालियों का मार्ग प्रशस्त हुआ.

डॉ. सतीश धवन का निधन 2002 में  हुआ था, लेकिन उनका योगदान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में आज भी स्मृतिमें बसा है.

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वायलिन वादक एम. एस. गोपालकृष्णन

एम. एस. गोपालकृष्णन (मणकुदी श्रीनिवास अय्यर गोपालकृष्णन) भारतीय कर्नाटक संगीत के प्रसिद्ध वायलिन वादक थे. उनका जन्म 10 जून 1931 को मद्रास (अब चेन्नई), तमिलनाडु में हुआ था. वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक प्रमुख कलाकार थे और अपनी अद्वितीय वायलिन वादन शैली के लिए प्रसिद्ध थे.

एम. एस. गोपालकृष्णन ने संगीत की शिक्षा अपने पिता मणकुदी श्रीनिवास अय्यर से प्राप्त की, जो स्वयं एक उत्कृष्ट वायलिन वादक और संगीत शिक्षक थे. बचपन से ही संगीत के प्रति उनकी गहरी रुचि और समर्पण ने उन्हें एक महान कलाकार बना दिया.

 गोपालकृष्णन की वादन शैली कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत का अनूठा मिश्रण थी. उन्होंने दोनों शैलियों में निपुणता हासिल की और अपने वादन में इन्हें उत्कृष्ट रूप से प्रस्तुत किया. उन्होंने भारत और विदेशों में कई प्रमुख संगीत समारोहों में प्रदर्शन किया और अपने वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया. उनकी प्रस्तुतियों में तान, लयकारी और स्वरों का सुंदर संयोजन देखने को मिलता था.

गोपालकृष्णन ने अनेक छात्रों को संगीत की शिक्षा दी और कई प्रतिभाशाली वायलिन वादकों को प्रशिक्षित किया. उनके शिक्षण विधि और अनुशासन ने अनेक संगीत विद्यार्थियों को प्रेरित किया. एम. एस. गोपालकृष्णन को उनके संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया. इनमें से कुछ प्रमुख सम्मान इस प्रकार हैं: – पद्म भूषण (1997), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1979) और  कर्नाटक संगीत का शीर्ष सम्मान कचर शेषागिरि राव पुरस्कार.

एम. एस. गोपालकृष्णन का जीवन संगीत के प्रति समर्पित था. उनकी विनम्रता, अनुशासन और संगीत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें न केवल एक महान कलाकार बल्कि एक महान व्यक्ति भी बनाया. उनका निधन 3 जनवरी 2013 को हुआ, लेकिन उनके संगीत और योगदान की विरासत आज भी जीवित है.

एम. एस. गोपालकृष्णन की वायलिन वादन शैली और संगीत के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक अमूल्य स्थान दिलाया है. उनकी संगीत यात्रा और योगदान को भारतीय संगीत प्रेमी सदैव याद रखेंगे.

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