
स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह पठानिया
राम सिंह पठानिया भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में से एक थे. वे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से थे और ब्रिटिश राज के विरुद्ध उनके संघर्षों के लिए प्रसिद्ध हैं. वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. राम सिंह पठानिया का जन्म 10 अप्रैल 1824 को हुआ था और उनका निधन 11 नवंबर 1849 को हुआ था.
राम सिंह पठानिया ने ब्रिटिश फौजों के खिलाफ कई लड़ाइयों में नेतृत्व किया और उनके बहादुरी के कई किस्से हैं. उनकी वीरता और संघर्ष ने हिमाचल प्रदेश के लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया. उनके योगदान को आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद किया जाता है.
उनकी वीरता और त्याग को भारतीय इतिहास में उच्च स्थान प्राप्त है, और उन्हें हिमाचल प्रदेश में एक नायक के रूप में सम्मानित किया जाता है. उनका जीवन और संघर्ष आज भी देशभक्ति और स्वतंत्रता की भावना को प्रेरित करता है.
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सी. वाई. चिन्तामणि
सी. वाई. चिन्तामणि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. वह एक सशक्त विचारक, लेखक और संपादक थे जिन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर गहरी दृष्टि रखी थी. उनका जन्म 10 अप्रैल 1880 को हुआ था और वह शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध थे.
चिन्तामणि ने पत्रकारिता को एक मंच के रूप में इस्तेमाल करके लोगों को जागरूक करने और उन्हें प्रेरित करने का कार्य किया. उनके नेतृत्व में ‘लीडर’ नामक अखबार ने राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाई.
इसके अतिरिक्त, सी. वाई. चिन्तामणि ने कई साहित्यिक और राजनीतिक लेख लिखे जो आज भी प्रेरणादायक माने जाते हैं. उनके विचार और लेखन ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला. उन्होंने पत्रकारिता को सिर्फ एक माध्यम नहीं, बल्कि एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में देखा.
उनकी मृत्यु 2 जुलाई 1941 को हुई, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय पत्रकारिता और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में आदर्श के रूप में जीवित है. उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.
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उद्योगपति घनश्यामदास बिड़ला
घनश्यामदास बिड़ला भारतीय उद्योग के प्रमुख स्तंभों में से एक थे. वे एक प्रतिष्ठित व्यवसायी, परोपकारी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समर्थनकर्ता थे. उनका जन्म 10 अप्रैल 1894 को पिलानी, राजस्थान के एक मारवाड़ी व्यापारी परिवार में हुआ था और उनकी मृत्यु 11 जून 1983 को मुंबई में हुआ. उनके पिता बल्देवदास बिड़ला भी एक सफल व्यापारी थे. युवा घनश्यामदास ने अपने परिवार के व्यापार को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया और व्यापार में नई ऊंचाइयाँ हासिल कीं.
घनश्यामदास बिड़ला ने पारिवारिक व्यापार को न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विस्तार दिया। उन्होंने कपड़ा, चीनी, सीमेंट, रसायन, और एल्यूमिनियम जैसे विभिन्न उद्योगों में निवेश किया. उनके नेतृत्व में बिरला समूह ने तेजी से प्रगति की और भारत के सबसे बड़े और प्रभावशाली व्यापारिक समूहों में से एक बन गया. उन्होंने कई वित्तीय संस्थानों की स्थापना की, जिनमें यूनाइटेड कमर्शियल बैंक (अब यूको बैंक) भी शामिल है.
घनश्यामदास बिड़ला ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का समर्थन किया और उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की. वे कांग्रेस पार्टी के साथ भी जुड़े रहे और स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई. घनश्यामदास बिड़ला एक महान परोपकारी थे. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और कला के क्षेत्र में कई संस्थानों की स्थापना की, जैसे: – बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (BITS), पिलानी: यह संस्थान भारत के प्रमुख तकनीकी शिक्षण संस्थानों में से एक है.
बिड़ला मंदिर: – उन्होंने देशभर में कई बिड़ला मंदिरों का निर्माण करवाया साथ ही उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थानों की स्थापना की, जिनमें बिड़ला अस्पताल और बिड़ला स्कूल शामिल हैं. घनश्यामदास बिड़ला अपने नैतिक मूल्यों और अनुशासन के लिए जाने जाते थे. उनका जीवन भारतीय व्यापारिक समुदाय और समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत है.
घनश्यामदास बिड़ला ने भारतीय उद्योग और समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके योगदान और परोपकारी कार्यों को आज भी याद किया जाता है, और वे भारतीय उद्योगपति समुदाय में एक महान हस्ती के रूप में सम्मानित किए जाते हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी प्रफुल्लचंद्र सेन
प्रफुल्लचंद्र सेन एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और पश्चिम बंगाल के तीसरे मुख्यमंत्री थे. उनका जन्म 10 अप्रैल 1897 को तत्कालीन बंगाल के खंडा (अब बांग्लादेश) में हुआ था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसक साधनों और सत्याग्रह के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
प्रफुल्लचंद्र सेन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए. उनकी गतिविधियों के चलते ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल भेजा. वे गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे और देश की आजादी के लिए सत्याग्रह और अहिंसा को एकमात्र मार्ग मानते थे. उन्होंने अपने जीवन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ किसानों और मजदूरों के अधिकारों के प्रति समर्पित किया.
भारत की स्वतंत्रता के बाद, प्रफुल्लचंद्र सेन ने भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 1961- 67 तक कार्यरत रहे. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई आर्थिक और सामाजिक सुधार किए, जिनमें भूमि सुधार और गरीबी उन्मूलन की नीतियों पर जोर दिया. उनका भूमि सुधार कार्यक्रम खासकर किसानों और गरीबों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ, जिससे बंगाल के ग्रामीण इलाकों में उन्हें व्यापक समर्थन मिला.
उनकी सरकार के दौरान कई विकासशील नीतियां बनाई गईं, लेकिन साथ ही उन्हें राज्य में बढ़ती नक्सलवादी गतिविधियों और राजनीतिक अस्थिरता का भी सामना करना पड़ा. प्रफुल्लचंद्र सेन का निधन 25 सितंबर 1990 को हुआ. उनके योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पश्चिम बंगाल की राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा.
प्रफुल्लचंद्र सेन का जीवन राष्ट्र-सेवा और समाज सेवा के प्रति समर्पण का प्रतीक था, और उन्होंने आज़ाद भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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वैज्ञानिक नौतम भट्ट
डॉ. नौतम भट्ट भारतीय रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में एक प्रमुख वैज्ञानिक थे, जिन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 10 अप्रैल 1909 को गुजरात के जामनगर में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा भावनगर और अहमदाबाद में पूरी करने के बाद, उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. सी. वी. रमन के मार्गदर्शन में भौतिकी में एम.एस.सी की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद, उन्होंने अमेरिका के मेसेचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की.
डॉ. भट्ट ने भारतीय रक्षा अनुसंधान की नींव रखी. उन्होंने नई दिल्ली में रक्षा विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की और स्वदेशी रक्षा तकनीकों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई. उनके मार्गदर्शन में अग्नि, पृथ्वी, त्रिशूल, नाग, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों और राजेंद्र तथा इंद्र जैसे रडार का विकास हुआ. उन्होंने ठोस राज्य भौतिकी प्रयोगशाला और सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सी.ई.ई.आर.आई) की स्थापना की.
डॉ. भट्ट को वर्ष 1969 में “विज्ञान और इंजीनियरिंग” के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनका निधन 6 जुलाई 2005 को हुआ था. उनकी विरासत आज भी भारतीय रक्षा अनुसंधान में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.
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मेजर धनसिंह थापा
मेजर धनसिंह थापा एक भारतीय सैनिक थे. उन्हें भारतीय सैन्य इतिहास में उनके वीरता और साहस के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. मेजर थापा को वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनके अद्भुत साहस और नेतृत्व के लिए सर्वोच्च भारतीय वीरता पुरस्कार, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
धनसिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल, 1928 को शिमला में हुआ था. उन्होंने वर्ष 28 अक्तूबर 1949 को एक कमीशंड अधिकारी के रूप में सेवा दी थी. धनसिंह थापा का निधन 6 सितम्बर 2005 को हुआ था. उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य नामका चू घाटी में था, जहाँ उन्होंने अपने छोटे से दल के साथ चीनी सेना के विशाल बल का सामना किया. उन्होंने भारी शत्रु आक्रमण के बावजूद अपनी स्थिति को मजबूती से बनाए रखा और अंतिम समय तक लड़े. उनकी यह वीरता और दृढ़ता भारतीय सैन्य इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय के रूप में दर्ज है.
मेजर धनसिंह थापा की कहानी न केवल एक योद्धा की वीरता की कहानी है, बल्कि यह नेतृत्व, समर्पण और अपने देश के प्रति असीम प्रेम की भी कहानी है. उनकी वीरता और बलिदान आज भी भारतीय सैनिकों और नागरिकों को प्रेरित करते हैं.
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गायिका किशोरी अमोनकर
किशोरी अमोनकर भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक उल्लेखनीय गायिका थीं. जिन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की जयपुर-अतरौली घराने में अपनी गहरी पैठ बनाई. उनका जन्म 10 अप्रैल 1932 को हुआ था और उनका देहांत 3 अप्रैल 2017 को हुआ. उनकी माँ, मोगुबाई कुर्डीकर, जो खुद एक प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायिका थीं, ने उन्हें संगीत की शिक्षा दी. किशोरी अमोनकर की संगीत शैली उनके गहन भावनात्मक अभिव्यक्ति, रागों के सूक्ष्म नुकसान, और संगीत के प्रति उनकी आध्यात्मिक दृष्टिकोण के लिए जानी जाती है.
उनकी गायकी में अद्वितीय व्याख्या और गहराई थी, जिसे उन्होंने अपने रागों की व्याख्या में प्रदर्शित किया. अमोनकर ने शास्त्रीय संगीत के परंपरागत ढांचे के भीतर रचनात्मकता और नवीनता का संचार किया, जिससे उन्होंने संगीत की एक व्यापक श्रोता वर्ग को आकर्षित किया. किशोरी अमोनकर को उनके असाधारण योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म भूषण (1987) और पद्म विभूषण (2002) शामिल हैं. उन्होंने संगीत के क्षेत्र में शिक्षा और प्रदर्शन दोनों ही स्तरों पर अपने जीवन को समर्पित किया और आगामी पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनी रहीं.
किशोरी अमोनकर के संगीत में व्यक्त भावनात्मक गहराई और तकनीकी कुशलता ने उन्हें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महानतम गायकों में से एक के रूप में स्थापित किया. उनकी विरासत उनके शिष्यों और उनकी रिकॉर्डिंग्स के माध्यम से जीवित है, जो आज भी विश्वभर के संगीत प्रेमियों द्वारा सुनी और प्रशंसित की जाती हैं.
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अभिनेत्री आयशा टाकिया
आयशा टाकिया एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी फिल्म उद्योग में काम किया है. वह अपने चुलबुले व्यक्तित्व और प्रभावशाली अभिनय कौशल के लिए जानी जाती हैं. टाकिया ने अपने कैरियर की शुरुआत बहुत कम उम्र में विज्ञापन जगत से की थी और जल्द ही उन्होंने फिल्मों में अपनी पहचान बना ली. आयशा टाकिया का जन्म 10 अप्रैल 1986 को मुंबई में हुआ था.
आयशा टाकिया ने वर्ष 2004 में फिल्म “टार्ज़न: द वंडर कार” से अपनी फिल्मी शुरुआत की, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट डेब्यू (महिला) अवार्ड से सम्मानित किया गया था. उन्होंने “दिल माँगे मोर”, “सोचा ना था”, “डोर”, और “वांटेड” जैसी फिल्मों में अपनी विविध अभिनय क्षमता दिखाई. विशेष रूप से, “डोर” में उनके प्रदर्शन की व्यापक प्रशंसा की गई, जहां उन्होंने एक गंभीर और भावपूर्ण भूमिका निभाई थी.
आयशा टाकिया की खासियत उनकी विविधतापूर्ण भूमिकाओं में निभाई गई थी, जिसमें वे रोमांटिक कॉमेडी से लेकर गंभीर ड्रामा तक में अपनी अभिनय प्रतिभा का परिचय देती रहीं. उन्होंने न केवल अपने अभिनय के जरिए, बल्कि अपने व्यक्तित्व और सकारात्मकता के जरिए भी बहुत से लोगों के दिलों में खास जगह बनाई.
आयशा टाकिया ने समय के साथ फिल्म उद्योग में अपनी उपस्थिति कम कर दी और निजी जीवन में अधिक समय बिताने लगीं. उन्हें अपने पशु कल्याण के प्रति समर्थन और वेगन लाइफस्टाइल को प्रोत्साहित करने के लिए भी जाना जाता है.
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कोरियोग्राफर टेरेंस लेईस
टेरेंस लेविस भारतीय डांस और कोरियोग्राफी जगत के एक प्रसिद्ध हस्ती हैं. उनका जन्म 10 अप्रैल 1975 को मुंबई में हुआ था. वह विशेष रूप से आधुनिक नृत्य शैलियों में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं, जिसमें कंटेम्पोरेरी डांस से लेकर जैज़ तक शामिल हैं. उन्होंने नृत्य की दुनिया में अपनी अद्वितीय शैली और नवीनता के साथ एक खास पहचान बनाई है.
लेविस ने अपने कैरियर की शुरुआत एक डांस इंस्ट्रक्टर के रूप में की थी, और बाद में वे एक लोकप्रिय कोरियोग्राफर बन गए. उन्होंने विभिन्न फिल्मों, म्यूज़िक वीडियो, और विज्ञापनों में अपने कोरियोग्राफी कौशल का प्रदर्शन किया है. टेरेंस ने कई रियलिटी डांस शोज़ जैसे कि “डांस इंडिया डांस” और “सो यू थिंक यू कैन डांस” इंडिया वर्जन में जज और मेंटर के रूप में भी काम किया है.
उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण विदेशों में भी हुई है, जहां उन्होंने नृत्य की विभिन्न विधाओं में महारत हासिल की है. उनका डांस स्टूडियो, टेरेंस लेविस प्रोफेशनल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (TLPTI), नृत्य शिक्षा और प्रशिक्षण में एक प्रमुख संस्थान है जो युवा प्रतिभाओं को उच्चतम स्तर पर तैयार करता है.
टेरेंस लेविस की कोरियोग्राफी में नवीनता, भावनात्मक गहराई, और तकनीकी कुशलता का संगम होता है, जो उन्हें उनके समकालीनों में विशिष्ट बनाता है. उनके काम में व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और कलात्मकता की मजबूत भावना दिखाई देती है, जिसने उन्हें भारतीय नृत्य जगत में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है.
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स्वाधीनता सेनानी मोरारजी देसाई
मोरारजी देसाई भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अग्रणी स्वाधीनता सेनानी थे. मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भडेली गाँव में हुआ था. वे भारतीय जनता के बीच अपनी नैतिकता और सादगी के लिए विख्यात थे.
मोरारजी देसाई ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पद संभाले. वे भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे. और उन्होंने 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक इस पद पर कार्य किया. उन्होंने वित्त मंत्री, उप प्रधानमंत्री और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी अपनी सेवाएँ दीं.
स्वाधीनता संग्राम के दौरान, मोरारजी देसाई ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल गए. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उनकी राजनीतिक दृष्टि और साहस ने उन्हें भारतीय जनता के बीच एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया.
मोरारजी देसाई ने अपने जीवन में कई उपलब्धियाँ हासिल कीं और उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया, जो कि भारतीय नागरिकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. उनका निधन 10 अप्रैल 1995 को हुआ.
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अभिनेता सतीश कौल
सतीश कौल एक भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी और पंजाबी फिल्मों में काम किया. उनका जन्म 08 सितंबर 1946 को कश्मीर में हुआ था. उन्हें अपने समय के सबसे प्रमुख और लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक माना जाता था. कौल ने वर्ष 1970 – 80 के दशक में अपने अभिनय कैरियर के चरम पर बहुत सी फिल्मों में काम किया और विविध भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा दिखाई.
सतीश कौल को विशेष रूप से पंजाबी फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है, जहां उन्होंने कई हिट फिल्मों में अभिनय किया. वे अपने विविध अभिनय कौशल के लिए प्रसिद्ध थे, जिसमें वे नायक, सहायक भूमिका और यहाँ तक कि खलनायक के रूप में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते थे.
उन्होंने न केवल फिल्मों में, बल्कि टेलीविजन पर भी काम किया. सतीश कौल ने धारावाहिकों में भी अभिनय किया, जिसमें सबसे उल्लेखनीय भूमिका बी.आर. चोपड़ा की महाभारत में थी, जहाँ उन्होंने इंद्र की भूमिका निभाई थी. उनके व्यापक अभिनय कैरियर के बावजूद, सतीश कौल के बाद के जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसमें वित्तीय संकट और स्वास्थ्य समस्याएं शामिल थीं. उनके जीवन के इस पहलू ने मनोरंजन उद्योग के प्रति लोगों की सहानुभूति और चिंता को आकर्षित किया.
सतीश कौल का 10 अप्रैल 2021 को निधन हो गया, लेकिन उनके अभिनय का योगदान और उनकी फिल्में आज भी उनके प्रशंसकों द्वारा याद की जाती हैं. उनके निधन के समय, फिल्म और टेलीविजन उद्योग के कई सदस्यों और प्रशंसकों ने उनके योगदान को याद किया और शोक व्यक्त किया.
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शास्त्रीय संगीतज्ञ शांति हीरानंद
शांति हीरानंद एक प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय गायिका थीं, जिन्हें उनकी खयाल गायकी और ठुमरी प्रस्तुतियों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. उन्हें अपनी गुरु, भारतीय शास्त्रीय संगीत की महान गायिका बेगम अख्तर की शिष्या होने का गौरव प्राप्त था. शांति हीरानंद ने बेगम अख्तर से संगीत की शिक्षा प्राप्त की और उनकी गायन शैली को आगे बढ़ाया. शांति हीरानंद का जन्म 1932 में एक व्यावसायिक परिवार में लखनऊ शहर में हुआ था.
शांति हीरानंद ने अपने संगीत कैरियर में विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुतियाँ दीं और उनकी गायकी को व्यापक पहचान और प्रशंसा मिली. उनकी गायकी में गहराई, भावना और तकनीकी कौशल का अद्भुत समावेश था, जिससे वे श्रोताओं को अपने संगीत में डुबो देती थीं.
उन्होंने बेगम अख्तर के जीवन और संगीत पर आधारित एक पुस्तक “आवाज़ की दुनिया” भी लिखी, जो संगीत-प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय हुई. इस पुस्तक के माध्यम से, शांति हीरानंद ने बेगम अख्तर के संगीत, उनके जीवन के अनुभवों और उनकी गायकी की बारीकियों को साझा किया, जिससे आगामी पीढ़ियों को इस महान गायिका के जीवन और कला की गहरी समझ मिल सके.
शांति हीरानंद शांति हीरानंद का निधन 10 अप्रैल, 2020 को हुआ था. उनका योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहा है, और उनकी विरासत आज भी संगीत-प्रेमियों और उनके शिष्यों के माध्यम से जीवित है. उनके निधन के बाद भी, उनका संगीत और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी.