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व्यक्ति विशेष

भाग – 466.

निज़ाम उस्मान अली

निज़ाम उस्मान अली, जिन्हें मीर उस्मान अली खान भी कहा जाता है, हैदराबाद राज्य के आखिरी निज़ाम थे. वह वर्ष 1911-48 तक हैदराबाद राज्य के शासक रहे. उनका शासनकाल ब्रिटिश भारत में राजनीतिक उथल-पुथल और बदलावों के दौरान आया, जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी शामिल था. उस्मान अली का जन्म 06 अप्रैल 1886 को हैदराबाद में हुआ था.

निज़ाम उस्मान अली को उनके समय में दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक माना जाता था. उन्होंने हैदराबाद के विकास और आधुनिकीकरण में कई योगदान दिए, जिसमें स्कूल, कॉलेज, और अस्पतालों की स्थापना शामिल है. उन्होंने अपने राज्य को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुधारने की दिशा में कई कदम उठाए.

वर्ष 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद, निज़ाम ने हैदराबाद को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन वर्ष 1948 में भारतीय सेना के ऑपरेशन पोलो के बाद वे भारतीय संघ में शामिल हो गए. इसके बाद वह एक राज-प्रमुख के रूप में बने रहे और उन्होंने सार्वजनिक जीवन से अपनी प्रत्यक्ष भागीदारी कम कर दी.

निज़ाम उस्मान अली का निधन 24 फरवरी 1967 को हुआ. उनकी मृत्यु के समय, वह अभी भी बहुत बड़ी संपत्ति और ऐतिहासिक महत्व के विरासती गहनों के मालिक थे. उनका शासन और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी हैदराबाद में उनकी विरासत के रूप में याद किए जाते हैं.

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राजनीतिज्ञ प्यारेलाल खण्डेलवाल

प्यारेलाल खण्डेलवाल एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जो भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे. उनका जन्म 14 अक्टूबर 1931 को सीहोर ज़िला, मध्य प्रदेश हुआ था और उनकी मृत्यु 7 अक्टूबर 2018 को दिल्ली में  हुई. खण्डेलवाल ने राजस्थान और भारतीय राजनीति में काफी लंबा समय बिताया और विभिन्न प्रमुख पदों पर कार्य किया.

उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विशेष रूप से राजस्थान में पार्टी के आधार को मजबूत करने में योगदान दिया. वह राजस्थान की राजनीति में एक प्रमुख आवाज थे और उन्होंने विधायिका में कई वर्षों तक सेवा की.

प्यारेलाल खण्डेलवाल अपने समय के प्रतिष्ठित और सम्मानित राजनीतिक व्यक्तित्वों में से एक थे, जिन्होंने अपनी नीतियों और कार्यों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा की. उनकी मृत्यु पर राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में गहरी शोक की लहर दौड़ गई थी.

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अभिनेत्री सुचित्रा सेन

सुचित्रा सेन, भारतीय सिनेमा की एक अत्यंत प्रसिद्ध और सम्मानित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से बंगाली फिल्मों में काम किया. उनका जन्म 6 अप्रैल 1931 को पबना जिले में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है, और उनका निधन 17 जनवरी 2014 को हुआ. सुचित्रा सेन को उनकी गहरी अभिव्यक्तियों, खूबसूरती और उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा के लिए जाना जाता है.

सुचित्रा सेन ने वर्ष 1950 – 60 के दशकों में अपने कैरियर के चरम पर बंगाली और हिंदी सिनेमा पर राज किया. उन्होंने उत्तम कुमार के साथ कई फिल्मों में अभिनय किया, जो बंगाली सिनेमा के स्वर्ण युग के दौरान उनके सबसे प्रसिद्ध और सफल सह-कलाकार थे. दोनों की जोड़ी को बेहद लोकप्रिय माना जाता था और उनकी फिल्मों को आज भी बहुत पसंद किया जाता है.

सुचित्रा सेन की कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “आगमन”, “देवदास”, “सप्तपदी”, “इंद्राणी”, “उत्तर फाल्गुनी”, और “दीप ज्वेले जाई” शामिल हैं. उन्होंने हिंदी सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी, जिसमें “देवदास” (1955 में दिलीप कुमार के साथ) और “बम्बई का बाबू” जैसी फिल्में शामिल हैं.

सुचित्रा सेन का निधन 17 जनवरी 2014 को कोलकाता में हुआ था. उनके अभिनय कैरियर के अलावा, सुचित्रा सेन का जीवन उनकी गोपनीयता और सार्वजनिक जीवन से दूरी के लिए भी जाना जाता था. वह अपने अंतिम वर्षों में बहुत कम ही सार्वजनिक रूप से दिखाई दीं, जिससे उनके चारित्रिक और निजी जीवन के बारे में एक रहस्यमयी आभा बनी रही. उनके निधन पर, भारतीय सिनेमा और बंगाली समुदाय ने एक महान कलाकार और आइकॉन को खो दिया.

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क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर

दिलीप वेंगसरकर एक प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेला. उनका जन्म 6 अप्रैल 1956 को हुआ था. वेंगसरकर मुख्य रूप से एक मध्य-क्रम बल्लेबाज थे और उन्हें अपने शानदार बल्लेबाजी कौशल के लिए जाना जाता था. उनकी तकनीक और स्थिरता ने उन्हें अपने समय के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक बना दिया.

वेंगसरकर को विशेष रूप से लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर उनके प्रदर्शन के लिए याद किया जाता है, जहाँ उन्होंने तीन शतक लगाए, जिसके लिए उन्हें ‘लॉर्ड ऑफ लॉर्ड्स’ का उपनाम दिया गया. वह पहले ऐसे अंतर्राष्ट्रीय बल्लेबाज बने, जिन्होंने लॉर्ड्स में तीन शतक लगाए.

वेंगसरकर ने अपने कैरियर के दौरान कई यादगार पारियाँ खेलीं और उन्होंने टेस्ट और वनडे दोनों प्रारूपों में भारत के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने कुछ समय के लिए प्रतिस्पर्धी क्रिकेट खेला, हालाँकि उनका कप्तानी कार्यकाल बहुत लंबा नहीं रहा.

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वेंगसरकर ने क्रिकेट प्रशासन और कोचिंग में भी अपना हाथ आजमाया. वह भारतीय टीम के चयन समिति के अध्यक्ष भी रहे और युवा प्रतिभाओं को तराशने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वेंगसरकर ने एक क्रिकेट अकादमी भी स्थापित की, जहाँ वह युवा क्रिकेटरों को प्रशिक्षित करते हैं. उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

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अभिनेता संजय सूरी

संजय सूरी एक भारतीय अभिनेता, निर्माता, और पूर्व मॉडल हैं, जिन्होंने वर्ष 1990 के दशक के अंत में अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. वह मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं और उन्हें अक्सर उनके गहन और विविध भूमिकाओं के लिए सराहा जाता है. संजय सूरी की फिल्में अक्सर सामाजिक और व्यक्तिगत मुद्दों की गहराई में जाती हैं, जिससे उन्होंने पारंपरिक बॉलीवुड फार्मूला से हटकर अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. संजय सूरी का जन्म 06 अप्रैल 1971 को श्रीनगर में हुआ था.

संजय ने “प्यार में कभी कभी” (1999) फिल्म के साथ अपनी अभिनय यात्रा शुरू की, लेकिन उन्हें असली पहचान “माई ब्रदर… निखिल” (2005) से मिली, जिसमें उन्होंने एक समलैंगिक तैराक की भूमिका निभाई, जिसे एचआईवी पॉजिटिव पाया जाता है. इस फिल्म ने न केवल समाज में एचआईवी/एड्स और समलैंगिकता के प्रति जागरूकता बढ़ाई, बल्कि संजय सूरी के अभिनय कौशल को भी सराहना मिली.

उन्होंने “जानकी विस” (2003), “फिर मिलेंगे” (2004), और “आई एम” (2010) जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं. “आई एम” में उनकी भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि इस फिल्म ने चार अलग-अलग कहानियों के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया. संजय सूरी ने इस फिल्म का निर्माण भी किया था.

संजय सूरी ने न केवल अभिनय में अपना नाम कमाया है, बल्कि वह फिल्म निर्माण में भी सक्रिय हैं, जिससे उन्होंने नई और अर्थपूर्ण सिनेमाई परियोजनाओं को साकार करने में मदद की है. उनका काम भारतीय सिनेमा में गंभीर और संवेदनशील विषयों को उठाने वाले अभिनेताओं और निर्माताओं की एक नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल

चौधरी देवी लाल भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री और भारत के उप-प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं. उनका जन्म 25 सितंबर 1914 को हुआ था और वे एक जमींदार परिवार से थे. उन्हें भारतीय किसान आंदोलन के नायक और किसानों के नेता के रूप में भी जाना जाता है.

चौधरी देवी लाल ने हरियाणा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने वर्ष 1987 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की और राज्य के मुख्यमंत्री बने. वे दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे (1977-79 और 1987-89).

देवी लाल को भारतीय राजनीति में एक सशक्त किसान नेता के रूप में पहचान मिली. उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, और उन्हें “ताऊ” के नाम से भी प्यार से पुकारा जाता था. वर्ष 1989 में, वे राष्ट्रीय स्तर पर जनता दल के नेता बने और केंद्र सरकार में उप-प्रधानमंत्री का पद संभाला, जिसमें उन्होंने वर्ष 1989 – 91 तक कार्य किया.

चौधरी देवी लाल का निधन 6 अप्रैल 2001को हुआ था. उनकी सादगी और जनसेवा के प्रति समर्पण ने उन्हें जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया.

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