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व्यक्ति विशेष

भाग – 465.

सिक्खों के तीसरे गुरु गुरु अमरदास

सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास का जन्म 5 अप्रैल 1479 को हुआ था और उन्होंने वर्ष 1552 – 74 तक गुरु के रूप में सेवा की. उन्हें सिख धर्म की परंपराओं और रीतियों में कई महत्वपूर्ण बदलावों के लिए जाना जाता है. गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म में एकता और समाजिक न्याय के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उन्होंने लंगर (सामूहिक भोजन) की प्रथा को मजबूत किया, जिसमें सभी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग समान रूप से भोजन करते हैं, जिससे समाज में बराबरी और एकता को बढ़ावा मिलता है. इस प्रथा ने समाजिक विभाजन को कम करने और समानता को बढ़ावा देने में मदद की.

गुरु अमरदास जी ने अनुष्ठानिक पवित्रता और बाहरी रूप से अधिक आंतरिक भक्ति और नैतिकता पर जोर दिया. उन्होंने सिख धर्म की शिक्षाओं को व्यवस्थित करने और उन्हें व्यापक बनाने में भी योगदान दिया. गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को फैलाने के लिए वारिस (धार्मिक उत्तराधिकारी) और मंजी (धार्मिक केंद्र) की व्यवस्था की स्थापना की.

गुरु अमरदास जी के कार्यकाल में, उन्होंने विभिन्न धार्मिक यात्राओं (तीर्थ) के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई, जोर देकर कहा कि सच्चा तीर्थ गुरु के प्रति समर्पण और आत्मिक पवित्रता में है. उन्होंने गोइंदवाल साहिब में एक विशेष कुआँ, बाउली साहिब का निर्माण करवाया, जो आज भी सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. गुरु अमरदास का निधन 01 सितंबर 1574 को गोइंदवाल साहिब, पंजाब में हुआ था. उनके निधन के बाद, उनके पोते गुरु राम दास जी सिख धर्म के चौथे गुरु बने.

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राजनीतिज्ञ जगजीवन राम

जगजीवन राम भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे. उन्हें बाबूजी के नाम से भी जाना जाता है. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और आज़ादी के बाद भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. जगजीवन राम का जन्म 05 अप्रैल 1908 को चांदवा, भोजपुर जिला, बिहार, ब्रिटिश भारत में हुआ था और उनका निधन 06 जुलाई 1986 को हुआ.

जगजीवन राम ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई. वे दलित समुदाय के प्रमुख नेता थे और उनके अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे. उन्होंने वर्ष  1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आजादी के बाद, जगजीवन राम ने कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों में कार्य किया. वे वर्ष 1946 में अंतरिम सरकार में शामिल हुए और कृषि मंत्री बने.

वर्ष 1952 – 84 तक उन्होंने लगातार भारतीय संसद के सदस्य के रूप में कार्य किया और विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उन्होंने रक्षा मंत्री, श्रम मंत्री, संचार मंत्री, और रेल मंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वर्ष 1977 में वे जनता पार्टी की सरकार में उप प्रधानमंत्री बने.

जगजीवन राम ने दलित समुदाय के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उन्होंने भारतीय संविधान में दलितों के लिए आरक्षण और अन्य अधिकारों के लिए जोर दिया. उन्होंने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की स्थापना की, जो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दलित विंग बना.

वर्ष  1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे. उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. जगजीवन राम ने समाज सुधारक के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने दलितों की शिक्षा, सामाजिक स्थिति और रोजगार के अवसरों में सुधार के लिए कार्य किया.

जगजीवन राम को उनके योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. दिल्ली में उनके नाम पर कई स्मारक और संस्थान हैं, जो उनके योगदान को सम्मानित करते हैं. जगजीवन राम का जीवन और कार्य आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनके द्वारा दलित समुदाय के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए किए गए प्रयासों को हमेशा याद रखा जाएगा.

जगजीवन राम का जीवन संघर्ष, समर्पण, और सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण है. उन्होंने भारतीय समाज में समानता, न्याय और सामाजिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में जीवंत है.

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अभिनेत्री रश्मिका मंदाना

 रश्मिका मंदाना भारतीय सिनेमा जगत की एक अभिनेत्री हैं, जिन्होंने कन्नड़, तेलुगु, तमिल और हिंदी फिल्मों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. उन्हें “नेशनल क्रश” और “साउथ की नयी सेंसेशन” के रूप में भी जाना जाता है.

रश्मिका मंदाना का जन्म 5 अप्रैल 1996 को कर्नाटक के वीराजपेट (कोडागु) में हुआ था. उनके पिता मंदाना मधुसुदन एक बिजनेसमैन हैं और माता सुमन मंदाना एक गृहिणी हैं. उनकी एक छोटी बहन भी है. रश्मिका ने अपनी स्कूली शिक्षा कूर्ग पब्लिक स्कूल से पूरी की और बाद में मैसूर यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी, जर्नलिज्म और इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुएशन किया है.

रश्मिका ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2016 में कन्नड़ फिल्म “किरिक पार्टी” से की, जिसमें उन्होंने साना की भूमिका निभाई थी. वर्ष 2018 में, रश्मिका ने तेलुगु फिल्म “चल मोहन रंगा” के साथ तेलुगु इंडस्ट्री में डेब्यू किया. इसके बाद उन्होंने “देवदास” (2018), “सरिलेरू नीकेव्वारु” (2020) और “बहुबली: द बिगिनिंग” के फेमस डायरेक्टर एस.एस. राजमौली की फिल्म “पुष्पा: द राइज” (2021) में स्रीवल्ली की भूमिका निभाई.

वर्ष 2022 में, रश्मिका ने बॉलीवुड में डेब्यू किया, विक्रम वेधा (2022) के साथ, जिसमें उन्होंने सैफ अली खान और हृितिक रोशन के साथ काम किया. इसके बाद उन्होंने “अनिमल” (2023) में रानी की भूमिका निभाई, जिसमें रणबीर कपूर मुख्य भूमिका में थे.

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पंडिता रमाबाई

पंडिता रमाबाई एक असाधारण भारतीय समाज सुधारक, शिक्षाविद, और महिला अधिकारों की अग्रणी थीं. उनका जन्म 23 अप्रैल 1858 में हुआ था और उनका निधन 5 अप्रैल 1922 को हुआ. वे अपने समय में उच्च शिक्षित महिलाओं में से एक थीं और उन्होंने संस्कृत में गहन विद्वता प्राप्त की थी, जिसके लिए उन्हें ‘पंडिता’ की उपाधि मिली थी.

रमाबाई का मुख्य योगदान महिला शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए उनकी अथक कार्यवाही में देखा जा सकता है. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके सशक्तिकरण के लिए कई संस्थाएँ स्थापित कीं. उन्होंने ‘शारदा सदन’ नामक एक स्कूल की स्थापना की जहां अनाथ महिलाओं और विधवाओं को शिक्षित किया जाता था. उनकी यह पहल उस समय के भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी विचारों को चुनौती देने वाली थी.

रमाबाई का जीवन और कार्य आज भी कई लोगों को प्रेरणा देता है और वह भारतीय महिलाओं के लिए एक आदर्श और प्रेरणा स्रोत के रूप में सम्मानित की जाती हैं. उनके जीवन पर कई पुस्तकें और शोधपत्र लिखे गए हैं, जो उनके व्यापक योगदान और महत्वपूर्ण प्रभाव को दर्शाते हैं.

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गाँधीजी के सहायक सी. एफ़. एंड्रयूज

चार्ल्स फ्रेर एंड्रयूज जिन्हें गरीबों के मित्र के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें  महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख सहयोगी के रूप में जानते हाँ. उनका जन्म 12 फरवरी 1871 को इंग्लैंड में हुआ था और उनकी मृत्यु 5 अप्रैल 1940 को हुई. वे एक अंग्रेज़ ईसाई मिशनरी, शिक्षाविद्, और समाज सुधारक थे जिन्होंने अपना जीवन भारत और अन्य उपनिवेशित देशों में सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता की खोज में समर्पित कर दिया.

एंड्रयूज वर्ष 1904 में भारत आए और कोलकाता में सेंट स्टीफेन्स कॉलेज में अध्यापन कार्य किया. उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म को समझने में गहरी रुचि दिखाई और भारतीय समाज में गहराई से शामिल हुए. उन्होंने महात्मा गांधी से मिलने के बाद उनके साथ गहरी मित्रता और सहयोग का संबंध विकसित किया. एंड्रयूज ने गांधीजी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका समर्थन किया.

एंड्रयूज ने न केवल भारत में, बल्कि फिजी, दक्षिण अफ्रीका, और अन्य स्थानों पर भी श्रमिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए काम किया. उन्होंने विशेष रूप से भारतीय मजदूरों की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित किया जो विदेशी उपनिवेशों में काम कर रहे थे. एंड्रयूज ने अपने लेखन और व्याख्यानों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, और शांति के मुद्दों पर बात की. उन्होंने गांधीजी और अन्य भारतीय नेताओं के साथ मिलकर कई पुस्तकें और लेख लिखे.

एंड्रयूज ने विशेष रूप से भारत में जाति प्रथा और असमानता के खिलाफ बोला. वे अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में विश्वास रखते थे. एंड्रयूज का जीवन और कार्य उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सहयोगी के रूप में पहचानते हैं. उनका समर्पण और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता आज भी प्रेरणादायक है.

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साहित्यकार पन्नालाल पटेल

पन्नालाल पटेल, गुजराती साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार और कथाकार थे, जिन्होंने गुजराती भाषा और साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की. उनका जन्म 7 मई 1912 को गुजरात के दांडी गांव में हुआ था. पटेल ने अपने साहित्यिक कैरियर में 200 से अधिक लघु कथाएं, उपन्यास, निबंध और बाल साहित्य की रचनाएँ कीं.

पन्नालाल पटेल के सबसे प्रमुख उपन्यासों में “मानवी नी भवाई” शामिल है, जिसे गुजराती साहित्य में एक क्लासिक माना जाता है. इस उपन्यास में उन्होंने ग्रामीण गुजरात के जीवन, उसके संघर्षों, सामाजिक संरचना और मानवीय संबंधों को बड़ी सजीवता से चित्रित किया है. यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे फिल्म और टेलीविजन श्रृंखला में भी अनुकूलित किया गया.

पटेल की रचनाओं में गुजराती समाज के विभिन्न वर्गों की जीवन शैली, उनकी भाषा और संस्कृति का बहुत ही सूक्ष्म और सटीक वर्णन मिलता है. उन्होंने अपने लेखन में सामाजिक मुद्दों को उठाया और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को अपनी लेखनी से उकेरा.

पन्नालाल पटेल को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसमें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी शामिल है, जो उन्हें वर्ष 1985 में प्रदान किया गया था. उनका निधन 1989 को हुआ. पन्नालाल पटेल की रचनाएँ गुजराती साहित्य के खजाने में एक अमूल्य निधि के रूप में संजोई गई हैं.

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अभिनेत्री दिव्या भारती

दिव्या भारती एक फिल्म अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में हिंदी और तेलुगु सिनेमा में काम किया. उनका जन्म 25 फरवरी, 1974 को हुआ था और उनका निधन 5 अप्रैल, 1993 को मात्र 19 वर्ष की उम्र में हो गया. दिव्या भारती ने अपने छोटे फिल्मी कैरियर में बहुत ही कम समय में बड़ी सफलता हासिल की. उन्होंने अपनी पहली फिल्म “बॉबी” (तेलुगु) से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और फिर “शोला और शबनम”, “दिल का क्या कसूर”, “दीवाना” जैसी हिंदी फिल्मों में अभिनय करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.

दिव्या भारती का निधन एक रहस्यमयी घटना थी, जब वह अपने मुंबई स्थित अपार्टमेंट की पांचवीं मंजिल से गिर गईं. उनकी मौत को लेकर कई अटकलें और सिद्धांत प्रस्तुत किए गए, लेकिन आज तक उनकी मौत का सही कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है. उनकी मौत के बाद, उन्हें फिल्म इंडस्ट्री और उनके प्रशंसकों द्वारा बहुत याद किया गया और उनकी अचानक और असमय मौत ने सभी को गहरा दुख पहुंचाया. दिव्या भारती का नाम आज भी उन चंद अभिनेत्रियों में गिना जाता है, जिन्होंने बहुत कम समय में अपने अभिनय से अमिट छाप छोड़ी.

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