
स्वतंत्रता सेनानी पुष्पलता दास
पुष्पलता दास एक गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने बचपन से ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया था. उन्होंने महज 06 वर्ष की उम्र में मंकी ब्रिगेड में शामिल हो गईं, जो लड़कियों का एक स्थानीय रूप से संगठित स्वयंसेवी समूह था, जो स्वदेशी को बढ़ावा देने और लोगों के बीच खादी को लोकप्रिय बनाने के लिए काम करता था. पुष्पलता का जन्म 27 मार्च 1915 को उत्तरी लखीमपुर, असम में हुआ था.
पुष्पलता दास ने महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विचारों से प्रभावित होकर भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में सक्रिय भाग लिया. उन्होंने असम में जनजागरण अभियान चलाया और महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. वर्ष 1942 में, उन्होंने शिवसागर जिले में एक विशाल जुलूस का नेतृत्व किया, जिसके कारण ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर तीन वर्ष की सजा सुनाई गई और जोरहाट एवं गुवाहाटी जेल में रखा गया. आजादी के बाद, उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और वर्ष 1951 में असम विधानसभा के लिए चुनी गईं.
पुष्पलता ने कस्तूरबा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई साथ ही असम में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई स्कूल और संस्थान खोले. उन्होंने हरिजन और आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए भी काम किया.
पुष्पलता दास के उत्कृष्ट योगदान देने के लिए असम सरकार द्वारा उनके नाम पर “पुष्पलता दास फाउंडेशन” की स्थापना की गई वहीं, वर्ष 1999 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया. स्वतंत्रता सेनानी पुष्पलता दास को वर्ष 1969 में ताइवान की सरकार द्वारा “मैडम चियांग काई-शेक पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था.
पुष्पलता दास का निधन 9 नवंबर, 2003 को हुआ था. उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र सेवा, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया था.
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नारीवादी विद्वान लीला दूबे
प्रोफेसर लीला दूबे एक प्रसिद्ध नारीवादी विद्वान हैं, जिन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति, उनकी भूमिकाओं, और सामाजिक संरचनाओं पर गहराई से अध्ययन किया है. उनका काम मुख्य रूप से समाजशास्त्र और नारीवादी अध्ययनों पर केंद्रित है. लीला दूबे का जन्म 27 मार्च, 1923 को हुआ था.
उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में शिक्षा प्राप्त की और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से जुड़कर अध्ययन व अध्यापन कार्य किया. उनके पति श्यामाचरण दूबे भी एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री थे, जिनके साथ उन्होंने कई शोध परियोजनाओं में सहयोग किया.
लीला दूबे ने विवाह, परिवार, लिंग संबंधों, और किन्नर समुदायों पर विस्तृत शोध किया है. उन्होंने भारतीय समाज में लिंग और जाति की परतों को उजागर करने वाले अनेक पेपर्स और किताबें लिखी हैं. उनके शोध ने नारीवादी चिंतन और सामाजिक न्याय के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
प्रोफेसर लीला दूबे को कई सम्मानों से सम्मानित किया गया था जिनमें प्रमुख हैं – इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी द्वारा सम्मानित.
लीला दूबे का निधन 20 मई, 2012 को हुआ था. उनकी लेखनी ने नारीवादी अध्ययनों के क्षेत्र में भारतीय संदर्भों और परिप्रेक्ष्यों को महत्वपूर्ण बनाया है. लीला दूबे के काम ने न केवल भारतीय समाज में महिलाओं के जीवन को समझने में मदद की है, बल्कि वैश्विक नारीवादी चिंतन में भी एक अहम योगदान दिया है.
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उद्योगपति धर्मपाल गुलाटी
धर्मपाल गुलाटी भारतीय व्यापार जगत की एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. उन्हें अधिकतर लोग ‘मसाला किंग’ के नाम से जानते हैं. धर्मपाल गुलाटी MDH (महाशियां दी हट्टी) मसालों के मालिक और संस्थापक थे, जो भारत के सबसे प्रसिद्ध मसाला ब्रांडों में से एक है. धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च, 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था और उनका निधन 3 दिसंबर, 2020 को हुआ था.
उनकी कहानी एक उत्तरजीविता और सफलता की कहानी है. विभाजन के समय, गुलाटी अपने परिवार के साथ पाकिस्तान से भारत आए थे. यहाँ आने के बाद, उन्होंने दिल्ली में एक छोटी सी दुकान से अपने व्यापारिक यात्रा की शुरुआत की. उनकी मेहनत, लगन, और उद्यमिता की भावना ने उन्हें इस क्षेत्र में एक विशाल साम्राज्य बनाने में मदद की.
धर्मपाल गुलाटी न केवल एक सफल उद्योगपति थे बल्कि एक महान समाजसेवी भी थे. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण के कई प्रोजेक्ट्स में भी अपना योगदान दिया.
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राजनीतिज्ञ बनवारी लाल जोशी
बनवारी लाल जोशी एक अनुभवी भारतीय प्रशासक थे, जिन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में लंबी और उल्लेखनीय सेवा दी. वे भारत के विभिन्न राज्यों में राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दी. बनवारी लाल जोशी का जन्म 27 मार्च 1936 को राजस्थान के नागौर ज़िले के छोटी खाटू में हुआ था.
जोशी को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मेघालय और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के राज्यपाल के रूप में सेवा करने का अनुभव है. उन्होंने अपनी प्रशासनिक और गवर्नेंस क्षमताओं को इन विविध और चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं में सिद्ध किया.
बनवारी लाल जोशी का निधन 22 दिसंबर 2017 को नई दिल्ली में हुआ था. बनवारी लाल जोशी को उनकी ईमानदारी, अखंडता और जनसेवा के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता था. उनका कार्यकाल अक्सर उनकी समझदारी, जनहित के प्रति उनके दृष्टिकोण और प्रशासनिक नीतियों में उनकी प्रगतिशीलता के लिए प्रशंसित किया जाता था. उनकी सेवाओं ने उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में एक सम्मानित स्थान दिलाया.
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इस्लामिक नेता सर सैयद अहमद खां
सर सैयद अहमद ख़ान भारत के एक प्रमुख इस्लामी नेता, समाज सुधारक और शिक्षाविद थे. वे मुस्लिम समुदाय के लिए आधुनिक शिक्षा के महत्त्व को समझते थे और उसे बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए. उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की स्थापना है, जिसे उन्होंने 1875 में ‘मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज’ के रूप में शुरू किया था.
सर सैयद अहमद ख़ान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के सादात (सैयद) ख़ानदान में हुआ था और उनका निधन 27 मार्च 1898 को अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में हृदय गति रुक जाने के कारण हुई थी.
सर सैयद अहमद ख़ान ने मुस्लिम समुदाय में सुधार और सामाजिक जागरूकता लाने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. उनका मानना था कि आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को अपनाने से मुस्लिम समाज पिछड़ेपन से उभर सकता है. इसके साथ ही, उन्होंने अंग्रेजी शासन के साथ बेहतर संबंधों की वकालत की, ताकि भारतीय मुस्लिम समुदाय का विकास हो सके.
उनकी लिखी गई कई पुस्तकें और लेख भी प्रसिद्ध हैं, जिनमें ऐतिहासिक और धार्मिक मुद्दों पर उनके विचार व्यक्त किए गए हैं. उनका सबसे प्रसिद्ध लेखन कार्य “असार-उस-सनादीद” (दिल्ली का इतिहास और उसकी सांस्कृतिक धरोहरों पर आधारित) और “तहज़ीब-उल-अख़लाक़” (सामाजिक और नैतिक मुद्दों पर आधारित पत्रिका) है.
सर सैयद अहमद ख़ान के विचारों और उनके प्रयासों ने भारतीय मुस्लिम समाज में आधुनिकता की नई दिशा दी, और उन्हें इस्लामी पुनर्जागरण के एक प्रमुख नेता के रूप में याद किया जाता है.
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अभिनेत्री प्रिया राजवंश
प्रिया राजवंश, भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम किया. वह वर्ष 1960 – 70 के दशक के दौरान सक्रिय रहीं और विशेष रूप से फिल्म निर्माता चेतन आनंद की फिल्मों में अपने अभिनय के लिए जानी जाती थीं. प्रिया ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम किया, जिसमें ‘हकीकत’, ‘हीर रांझा’, और ‘हंसते जख्म’ शामिल हैं.
उनका जन्म 30 दिसंबर 1937 को शिमला में हुआ था, और उनका निधन 27 मार्च 2000 को हुआ था. प्रिया राजवंश की मृत्यु बहुत ही विवादित रही, क्योंकि उनकी हत्या उनके घर में हुई थी. उनकी मृत्यु के मामले में कई लोगों को आरोपी बनाया गया, जिसमें चेतन आनंद के बेटे के नाम भी शामिल थे. प्रिया राजवंश की मृत्यु अभी भी कई लोगों के लिए एक रहस्य बनी हुई है और उनकी मौत भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक दुखद कहानी के रूप में याद की जाती है.