
अभिनेता और निर्देशक धीरेन्द्र नाथ गांगुली
धीरेन्द्र नाथ गांगुली भारतीय सिनेमा, विशेषकर बंगाली फिल्म उद्योग, के एक प्रमुख अभिनेता, निर्देशक और निर्माता थे. उन्हें भारतीय सिनेमा के “पायनियर” में से एक माना जाता है, जिन्होंने मूक फिल्मों के युग से लेकर बोलती फिल्मों तक में अपना योगदान दिया. उनकी रचनात्मकता और साहसिक फिल्म निर्माण ने बंगाली सिनेमा को नई दिशा दी.
धीरेन्द्र नाथ गांगुली का जन्म 26 मार्च 1893 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था और उनका निधन 18 नवंबर 1978 को हुआ. उनकी शिक्षा ढाका और कोलकाता में हुई थी. उनकी पत्नी सुप्रभा देवी भी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं. धीरेन्द्र नाथ गांगुली ने भारतीय सिनेमा में अपना कैरियर मूक फिल्मों के युग में शुरू किया और बाद में बोलती फिल्मों में भी सक्रिय रहे. उन्होंने वर्ष 1921 में बनी पहली बंगाली मूक फिल्म “बिल्वमंगल” में अभिनय किया. “भक्त विदुर” (1921) और “ययाति” (1922) जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को खूब सराहा गया.
वर्ष 1929 में उन्होंने “ब्रिटिश डोमिनियन फिल्म कंपनी” की स्थापना की, जो भारत की पहली फिल्म निर्माण कंपनियों में से एक थी. उनकी प्रसिद्ध फिल्म “चंडीदास” (1932) पहली बंगाली बोलती फिल्म (टॉकी) मानी जाती है, जिसमें उन्होंने निर्देशन किया और अभिनय भी किया.
फिल्में: – “पुराण भक्त” (1933), “कृष्णसुदामा” (1934), “बिष्णु माया” (1935).
धीरेन्द्र नाथ गांगुली ने बंगाली फिल्म उद्योग को एक नई पहचान दी. उनकी फिल्मों में धार्मिक और सामाजिक संदेश होते थे, जो उस समय के लिए क्रांतिकारी थे. उनका अभिनय स्वाभाविक और भावप्रवण था, जिसने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया. धीरेन्द्र नाथ गांगुली को वर्ष 1975 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार ने उनके योगदान को सिनेमा जगत में सराहा.
धीरेन्द्र नाथ गांगुली न केवल एक महान अभिनेता और निर्देशक थे, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक प्रेरणास्रोत भी रहे. उन्होंने बंगाली सिनेमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत नींव रखी. आज भी उनकी फिल्में और योगदान सिनेप्रेमियों के लिए प्रेरणादायक हैं.
========== ========= ===========
कुबेरनाथ राय…
कुबेरनाथ राय भारतीय साहित्य के एक प्रमुख निबंधकार और चिंतक थे. उनका जन्म 26 मार्च 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मतसा गाँव में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की. राय ने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया और असम के नलबारी कॉलेज में लंबे समय तक अध्यापन किया. बाद में वे गाजीपुर लौटे और स्वामी सहजानंद महाविद्यालय के प्राचार्य बने.
कुबेरनाथ राय को भारतीय ललित निबंध परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. उनके निबंधों में भारतीय संस्कृति, साहित्य, और दर्शन की गहरी समझ दिखाई देती है. उनकी प्रमुख कृतियों में “प्रिया नीलकंठी,” “गंधमादन,” “कामधेनु,” “निषाद-बांसुरी,” और “रामायण महातीर्थम” शामिल हैं. उनके निबंधों में पुराण, मिथक और समसामयिक विषयों का सुंदर समन्वय होता है. उनकी लेखनी में सौंदर्य और गहराई का अद्भुत मेल है.
राय ने भारतीयता और लोकमंगल को अपने साहित्य का केंद्र बनाया. उन्होंने आधुनिक तकनीक और बड़े उद्योगों के महत्व को स्वीकारते हुए भी लघु उद्योगों को प्राथमिकता दी. उनका मानना था कि साहित्य को समाज के हित में होना चाहिए. उन्होंने गांधीवादी विचारधारा को अपनाया और अपने लेखन में सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को प्रमुखता दी.
कुबेरनाथ राय का निधन 5 जून 1996 को हुआ था. कुबेरनाथ राय को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार प्राप्त हुआ. उनकी कृतियों ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी और उन्हें साहित्यिक जगत में अमर बना दिया.
========== ========= ===========
साहित्यकार महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की एक प्रमुख लेखिका, कवयित्री और निबंधकार थीं. उन्हें हिंदी की “छायावादी” काव्यधारा की एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है. उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था. महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं में प्रेम, करुणा, पीड़ा और समाज में महिलाओं की स्थिति को अभिव्यक्ति दी है.
उनकी कुछ प्रमुख काव्य कृतियाँ “यामा,” “नीरजा,” “रश्मि,” और “सांध्यगीत” हैं. इसके अलावा, महादेवी वर्मा ने कई प्रसिद्ध निबंध भी लिखे, जिनमें उन्होंने समाज और महिलाओं से जुड़े विषयों पर गहराई से विचार किया. उनके निबंध संग्रहों में “अतीत के चल चित्र” और “पथ के साथी” विशेष रूप से चर्चित हैं. महादेवी वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं: -साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956, यामा के लिए), पद्म भूषण (1956), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), पद्म विभूषण (1988).
उनकी कविताओं में एक प्रकार की करुणा और संवेदना देखने को मिलती है, जो उनके व्यक्तित्व और जीवन-दर्शन को भी दर्शाती हैं. महादेवी वर्मा का साहित्यिक योगदान न केवल हिंदी साहित्य में, बल्कि भारतीय समाज के सांस्कृतिक और मानसिक विकास में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उनका निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ, लेकिन उनका साहित्यिक योगदान आज भी अमर है.
========== ========= ===========
संगीत निर्देशक सरस्वती देवी
सरस्वती देवी एक भारतीय संगीत निर्देशक थीं, जिन्होंने विशेष रूप से हिंदी सिनेमा में अपनी संगीत प्रतिभा के लिए पहचान बनाई. उनका असली नाम खुर्शीद मिनोखर होमजी था, लेकिन वे सरस्वती देवी के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुईं. सरस्वती देवी का जन्म 1912 को हुआ था और उनका निधन 9 अगस्त 1980 को हुआ.
वर्ष 1930 – 40 के दशक में, वह उन पहली महिला संगीत निर्देशकों में से एक बनीं जिन्होंने भारतीय सिनेमा में संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. सरस्वती देवी ने बॉम्बे टॉकीज के लिए काम किया और उन्होंने फिल्म ‘जवानी की हवा’ (1935) से अपने संगीत निर्देशन कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने ‘अछूत कन्या’ (1936) और ‘बंधन’ (1940) जैसी कुछ प्रमुख फिल्मों में अपना संगीत दिया, जो उस समय बहुत लोकप्रिय हुईं.
सरस्वती देवी की संगीत शैली में विविधता और मौलिकता देखने को मिलती है. उन्होंने पारंपरिक भारतीय संगीत के साथ-साथ आधुनिक पश्चिमी संगीत तत्वों का भी समावेश किया. सरस्वती देवी ने संगीत उद्योग में महिलाओं के लिए एक नई दिशा निर्धारित की और उनके योगदान को भारतीय सिनेमा के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है.
========== ========= ===========
कलाकार के. के. हेब्बार
के. के. हेब्बार, पूरा नाम कट्टिंगेडी कृष्ण हेब्बार, भारतीय चित्रकला के प्रमुख कलाकारों में से एक थे. उनका जन्म 15 जून 1911 को कर्नाटक के कट्टिंगेडी गाँव में हुआ था और उनका निधन 26 मार्च, 1996 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुई थी. हेब्बार की कला में भारतीय परंपराओं और आधुनिक तकनीकों का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है. उन्होंने मुख्यतः लैंडस्केप, नृत्य, ग्रामीण और शहरी जीवन के दृश्यों को अपने चित्रों में उतारा.
हेब्बार की कला में रंगों का इस्तेमाल, लाइनों की सूक्ष्मता और रूपों की संरचना उनकी अद्वितीय शैली को प्रकट करती है. उन्होंने अपने चित्रों में भारतीय जीवन की विविधता और सौंदर्य को चित्रित किया. हेब्बार ने भारत और विदेश में कई प्रदर्शनियों में अपनी कलाकृतियों को प्रस्तुत किया और उन्हें उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया.
के. के. हेब्बार की कलाकृतियाँ भारतीय चित्रकला के इतिहास में एक अनूठी जगह रखती हैं. उनका काम भारतीय कला के विकास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है और उनकी कलाकृतियाँ दुनियाभर के कला संग्रहालयों और गैलरियों में प्रदर्शित की जाती हैं.
========== ========= ===========
गीतकार और संगीतकार आनंद शंकर
आनंद शंकर एक भारतीय संगीतकार और संगीत निर्देशक थे. जिन्होंने विशेष रूप से अपनी अद्वितीय संगीत शैली के लिए पहचान बनाई. वे भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी फ्यूज़न संगीत के मिलाप के लिए विख्यात थे. उनका संगीत भारतीय और पश्चिमी वाद्य यंत्रों के बीच एक अनूठा संतुलन प्रस्तुत करता है.
आनंद शंकर का जन्म 11 दिसंबर 1922 को हुआ था. वे पंडित रवि शंकर के भतीजे थे और संगीत के एक गौरवशाली परिवार से आए थे. उन्होंने विभिन्न संगीत शैलियों का अध्ययन किया और विशेष रूप से अपने संगीत में भारतीय और पश्चिमी तत्वों का समावेश किया.
आनंद शंकर के कुछ प्रसिद्ध कामों में उनके फ्यूज़न एल्बम शामिल हैं, जैसे कि ‘Ananda Shankar’ और ‘Ananda Shankar And His Music’, जिसमें उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी रॉक और इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक के साथ मिलाया. उनकी यह अनोखी संगीत शैली उन्हें विश्व संगीत के क्षेत्र में एक मान्यता प्राप्त नाम बनाती है.
आनंद शंकर का निधन 26 सितंबर 1999 को हुआ, लेकिन उनका संगीत आज भी उनके प्रशंसकों और संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है. उनका काम संगीत की दुनिया में एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है.
========== ========= ===========
राजनीतिज्ञ अनिल बिस्वास
राजनीतिज्ञ अनिल बिस्वास एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे. जिनका निधन 26 मार्च 2006 को हुआ था. वे माकपा के दिवंगत राज्य सचिव थे और उनकी बेटी अजंता बिस्वास राजनीतिक हलकों में चर्चा में रही हैं, खासकर जब उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के समर्थन में लेख लिखा था.
उनके इस कदम ने वामपंथी समर्थकों और सीपीएम के बीच काफी चर्चा और विवाद को जन्म दिया. अजंता बिस्वास को सीपीएम ने बाद में बहिष्कृत कर दिया था और उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता का नवीनीकरण नहीं कराया था.