
वैज्ञानिक वसंत रणछोड़ गोवारिकर
वसंत रणछोड़ गोवारिकर एक भारतीय वैज्ञानिक थे, जो अंतरिक्ष अनुसंधान, मौसम विज्ञान और जनसंख्या के क्षेत्र में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्ष 1991 – 93 तक भारत के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया. गोवारिकर का जन्म 25 मार्च 1933 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर बर्मिंघम विश्वविद्यालय से रासायनिक इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
गोवारिकर ने वर्ष 1967 में इसरो में शामिल हुए और संगठन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने भारत के पहले उपग्रह, आर्यभट्ट के प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने भारत को उपग्रह प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर बनने में मदद की. वर्ष 1991- 93 तक, गोवारिकर ने भारत के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया. इस क्षमता में, उन्होंने सरकार को विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति पर सलाह दी.
गोवारिकर को उनके काम के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं: – पद्म भूषण (2008), शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (1978), विक्रम साराभाई पुरस्कार (1987).
गोवारिकर को भारत के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है. उन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान, मौसम विज्ञान और जनसंख्या के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनने में मदद की. उन्होंने भारत के पहले उपग्रह, आर्यभट्ट के प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.उन्होंने भारत में मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए एक प्रणाली विकसित की.
गोवारिकर एक दूरदर्शी वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वसंत रणछोड़ गोवारिकर का निधन 2 जनवरी 2015 को हुआ था.
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कवि तेज राम शर्मा
तेजराम शर्मा हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि थे. उनकी कविताएँ मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों को गहराई से छूती हैं. तेजराम शर्मा का जन्म 25 मार्च 1943 को हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में हुआ था.
तेजराम शर्मा ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया. उनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं, सामाजिक विषमताओं और प्रकृति के प्रति गहरा लगाव दिखता है. उनकी कविताएँ सरल और सहज भाषा में लिखी गई हैं, जो पाठकों को आसानी से समझ में आती हैं. उनकी प्रमुख कृतियाँ में – “धूप की छाया” (1984), “बंदनवार” (2000).
तेजराम शर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उनका निधन 20 दिसंबर 2017 को हुआ था.
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अभिनेता फ़ारुख़ शेख़
फ़ारुख़ शेख़ एक भारतीय अभिनेता और टेलीविजन प्रस्तोता थे. उन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक की फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई. फ़ारुख़ शेख़ का जन्म 25 मार्च 1948 को गुजरात के वडोदरा में हुआ था. उन्होंने मुंबई के सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाई की और फिर सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया. उन्होंने सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ से कानून की पढ़ाई भी पूरी की.
फ़ारुख़ शेख़ ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1973 में एम.एस. सथ्यू की फिल्म ‘गरम हवा’ से की. इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया. उन्होंने ‘चश्मे बद्दूर’, ‘उमराव जान’, ‘बाजार’, ‘कथा’, ‘साथ साथ’, ‘किसी से ना कहना’, ‘रंग बिरंगी’ और ‘सागर सरहदी’ सहित कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया.
फ़ारुख़ शेख़ को समानांतर सिनेमा में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी और सत्यजित राय जैसे प्रसिद्ध निर्देशकों के साथ भी काम किया. फ़ारुख़ शेख़ ने टेलीविजन पर भी अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने ‘श्रीकांत’ और ‘कहकशां’ जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया. उन्होंने ‘जीना इसी का नाम है’ नामक एक टॉक शो की मेजबानी भी की, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.
फ़ारुख़ शेख़ को वर्ष 2008 में फिल्म ‘लाहौर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. उन्हें इंडियन टेली अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ एंकर का पुरस्कार भी मिला.
फ़ारुख़ शेख़ का निधन 28 दिसंबर 2013 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था. फ़ारुख़ शेख़ एक बहुमुखी अभिनेता थे. उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई. उन्हें हमेशा एक विनम्र और प्रतिभाशाली अभिनेता के रूप में याद किया जाएगा.
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स्वतंत्रता सेनानी गणेशशंकर विद्यार्थी
गणेशशंकर विद्यार्थी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता, स्वतंत्रता सेनानी, और पत्रकार थे. उन्होंने अपने जीवन को देश की स्वतंत्रता और समाज सुधार के लिए समर्पित किया. विद्यार्थी एक साहसी पत्रकार थे, जो सत्य और न्याय के पक्षधर रहे, और अपने लेखन के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत की आलोचना करते हुए सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई.
गणेशशंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले के हाथगांव के कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता मुंशी जयनारायण एक स्कूल में हेडमास्टर थे. गणेशशंकर विद्यार्थी का निधन 25 मार्च 1931 को कानपूर में हुआ था.
गणेशशंकर विद्यार्थी ने वर्ष 1913 में हिंदी साप्ताहिक अखबार ‘प्रताप’ की शुरुआत की, जिसने अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ जनजागरण किया. इस अखबार के माध्यम से उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष को उजागर किया और लोगों को एकजुट होने का संदेश दिया. “प्रताप” में छपे उनके लेख अंग्रेजों के खिलाफ तीखे और सटीक होते थे, जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.
विद्यार्थी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और उन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. वह न केवल स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे, बल्कि सामाजिक समानता, जातिवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ भी सक्रिय रूप से काम किया. वर्ष 1931 में कानपुर में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे. गणेशशंकर विद्यार्थी ने अपने जीवन को खतरे में डालकर दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास किया. दुर्भाग्यवश, इस प्रयास में वे हिंसक भीड़ का शिकार हो गए और उनका बलिदान हो गया. उनकी शहादत को आज भी सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है.
गणेशशंकर विद्यार्थी का जीवन समाज की सेवा, समानता और स्वतंत्रता के लिए समर्पित था. उन्होंने हमेशा गरीबों, कमजोरों, और शोषितों की आवाज़ उठाई. वह एक आदर्शवादी और निडर पत्रकार थे, जिन्होंने अन्याय के खिलाफ अपनी कलम को हथियार बनाया.उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. उनके बलिदान और योगदान को हर साल उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.
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आलोचक कमला प्रसाद
कमला प्रसाद प्रसिद्ध हिंदी आलोचक, साहित्यकार और अकादमिक विद्वान हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर गहन शोध और विश्लेषण किया है. कमला प्रसाद जी का काम मुख्य रूप से हिंदी साहित्यिक आलोचना, थियोरी और समकालीन साहित्यिक चलनों पर केंद्रित है. उनके आलोचनात्मक लेखन और विचार उन्हें हिंदी आलोचना के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं.
कमला प्रसाद का जन्म 14 फ़रवरी, 1938 को रैगाँव, सतना (मध्य प्रदेश) में हुआ था. कमला प्रसाद ने 70 के दशक में ‘पहल’ का सम्पादन किया, फिर 90 के दशक से वे ‘प्रगतिशील वसुधा’ के मृत्युपर्यंत सम्पादक रहे.
कृतियाँ: – आलोचना – साहित्य-शास्त्र, छायावाद : प्रकृति और प्रयोग, रचना और आलोचना की द्वंद्वात्मकता, कविता तीरे…
कमला प्रसाद ने साहित्यिक आलोचना के साथ-साथ भाषा विज्ञान, सामाजिक मुद्दे और साहित्यिक सिद्धांतों पर भी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख लिखे हैं. उनका कार्य व्यापक रूप से पढ़ा और सराहा जाता है. उनकी आलोचना शैली में गहराई, स्पष्टता और विचारशीलता का मेल है, जिससे पाठकों और अध्येताओं को हिंदी साहित्य के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद मिलती है.
कमला प्रसाद का निधन 25 मार्च 2011 को दिल्ली में हुआ था. उनकी आलोचना और विचार आधुनिक हिंदी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में नई दिशाएं और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं.
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अभिनेत्री नन्दा
अभिनेत्री नंदा भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1950 के दशक से वर्ष 1970 के दशक तक कई हिंदी फिल्मों में काम किया. वे अपनी विनम्र अभिनय शैली, सादगी और खूबसूरती के लिए जानी जाती थीं. नंदा का जन्म 8 जनवरी 1939 को हुआ था, और वे फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध परिवार से आई थीं.
नंदा ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की थी, लेकिन जल्द ही वे एक सफल अभिनेत्री के रूप में उभरीं. उन्होंने ‘आंचल’, ‘चोटी बहू’, ‘इत्तेफाक’ और ‘जब जब फूल खिले’ जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया. उनकी फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ में उनके अभिनय को विशेष रूप से सराहा गया, जिसमें उन्होंने राज कपूर के साथ अभिनय किया था.
नंदा की ऑन-स्क्रीन उपस्थिति ने उन्हें उस समय की सबसे पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक बना दिया और उनकी फिल्मों को बड़ी सफलता मिली. उनकी सादगी और प्राकृतिक अभिनय शैली ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई. अभिनेत्री नन्दा का निधन 25 मार्च 2014 को हुआ था. नंदा के निधन से भारतीय सिनेमा ने एक महान अभिनेत्री खो दी, लेकिन उनकी फिल्में और उनका अभिनय आज भी उन्हें जीवित रखते हैं.
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अभिनेत्री निम्मी
अभिनेत्री निम्मी भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1940- 50 के दशक में अपने अभिनय से बहुत नाम कमाया. उनका असली नाम नवाब बानू था, लेकिन फिल्म जगत में उन्होंने निम्मी के नाम से ख्याति प्राप्त की. निम्मी का जन्म 18 फरवरी 1933 को हुआ था.
निम्मी ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1949 में फिल्म ‘बरसात’ से की, जिसमें उन्होंने एक पहाड़ी लड़की की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म में उनके अभिनय को बहुत सराहा गया और इसके बाद वे बहुत से हिट फिल्मों में दिखाई दीं. उन्होंने ‘दीदार’, ‘आन’, ‘उड़न खटोला’, ‘कुंदन’, ‘मेरे मेहबूब’ और ‘पूजा के फूल’ जैसी फिल्मों में काम किया और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.
निम्मी को उनकी आँखों के अभिव्यक्ति और गहरी भावनात्मक अभिनय क्षमता के लिए जानी जाती थी. उनका अभिनय उस समय के दर्शकों को बहुत भावुक और यथार्थवादी लगा. उनके अभिनय में एक खास प्रकार की मासूमियत और गर्मजोशी थी, जिसने उन्हें दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई. निम्मी की फिल्मों और उनकी अभिनय शैली ने उन्हें भारतीय सिनेमा की एक अमर अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है. अभिनेत्री निम्मी का निधन 25 मार्च 2020 को हुआ था.