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व्यक्ति विशेष

भाग – 449.

इतिहासकार कर्नल टॉड

कर्नल जेम्स टॉड एक अंग्रेजी अधिकारी और इतिहासकार थे, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रति उनकी गहन रुचि के लिए विख्यात हैं. उनका जन्म  20 मार्च 1782 को  इंग्लैंड में हुआ था  और वर्ष 1799 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में भारत आए. टॉड को राजस्थान के राजपूत राज्यों के राजनीतिक एजेंट के रूप में नियुक्त किया गया था. वहाँ उनकी भूमिका में, उन्होंने राजपूताना के इतिहास, संस्कृति, और भूगोल पर गहराई से अध्ययन किया.

जेम्स टॉड ने “Annals and Antiquities of Rajasthan” नामक कृति लिखी, जिसमें उन्होंने राजपूताना के विभिन्न राजवंशों के इतिहास को विस्तार से दर्ज किया. इस पुस्तक में, उन्होंने राजपूतों के पराक्रम, उनकी सामाजिक रीति-नीति, और उनकी कला एवं वास्तुकला पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया. टॉड का काम राजपूताना की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को दस्तावेजीकृत करने में महत्वपूर्ण है, और उन्हें अक्सर “राजपूताना के इतिहासकार” के रूप में जाना जाता है.

हालांकि, टॉड के काम को लेकर कुछ आलोचनाएं भी हैं. कुछ आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि उनकी लेखनी में राजपूतों की रोमांटिक छवि को अधिक महिमामंडित किया गया है और कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को आदर्शवादी तरीके से पेश किया गया है. फिर भी, उनका काम राजस्थान के इतिहास और संस्कृति के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है. कर्नल जेम्स टॉड का निधन 18 नवंबर 1835 को हुई थी. 

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पार्श्वगायिका अलका

अलका याग्निक भारतीय संगीत जगत की एक जानी-मानी पार्श्वगायिका हैं, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज और सुरीले गीतों से लाखों श्रोताओं के दिलों में अपनी पहचान बनाई है. उनका जन्म 20 मार्च 1966 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. संगीत का संस्कार उन्हें उनके परिवार से मिला, क्योंकि उनकी मां शुभा याग्निक भी एक शास्त्रीय गायिका थीं.

अलका याग्निक ने बहुत छोटी उम्र में ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था. उन्होंने छह साल की उम्र में आकाशवाणी के लिए गाना शुरू किया. वर्ष 1979 में, जब वे मात्र 13 साल की थीं, तब उन्होंने बॉलीवुड में पदार्पण किया. उनकी पहली बड़ी सफलता वर्ष 1981 में फ़िल्म लावारिस के गाने “मेरे अंगने में” के साथ आई, और इसके बाद उनके कैरियर ने उड़ान भर ली.

लका याग्निक ने वर्ष 90 के दशक में अपने कैरियर का स्वर्णिम युग देखा. इस दौरान उन्होंने अनगिनत हिट गाने दिए, जिनमें “तेरे नाम,” “पर्देसिया,” “कहो ना प्यार है,” और “तुम ही हो” जैसे गीत शामिल हैं. उन्होंने सभी प्रमुख संगीतकारों और गायकों के साथ काम किया, और उनकी आवाज़ हर पीढ़ी के दिल को छूने वाली रही.

अलका याग्निक को अपने कैरियर में कई बड़े पुरस्कार मिले हैं. उन्होंने 07 बार फिल्मफेयर अवार्ड जीता और 02 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी हासिल किए. इसके साथ ही, उन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायक के लिए दर्जनों नामांकन भी मिले. अपने पेशेवर जीवन के अलावा, अलका याग्निक एक संवेदनशील और दयालु व्यक्तित्व की धनी हैं. वे सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखती हैं और संगीत शिक्षा को बढ़ावा देने में योगदान देती हैं.

अलका याग्निक भारतीय संगीत का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. उनकी आवाज़ और उनके गाने सदियों तक भारतीय संगीत प्रेमियों के बीच जिंदा रहेंगे. उनका योगदान न केवल भारतीय सिनेमा के लिए, बल्कि संगीत की व्यापक दुनिया के लिए भी अमूल्य है.

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तैराक निशा मिलेट

निशा मिलेट भारतीय तैराकी की एक प्रमुख हस्ती हैं, जिन्होंने अपने अद्वितीय कौशल और समर्पण से देश का नाम रोशन किया है. उनका जन्म 20 मार्च 1982 को हुआ था. निशा ने अपने कैरियर में कई उपलब्धियां हासिल की हैं और भारतीय खेल जगत में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में जानी जाती हैं.

निशा मिलेट का तैराकी से परिचय एक असामान्य घटना के कारण हुआ. पांच साल की उम्र में डूबने के अनुभव के बाद, उनके पिता ने उन्हें तैराकी सीखने के लिए प्रेरित किया. वर्ष 1991 में, उन्होंने चेन्नई के ऑबरे शेनयायनगर क्लब में तैराकी की शुरुआत की. वर्ष 1992 में, उन्होंने 50 मीटर फ्रीस्टाइल में अपना पहला राज्य स्तर का पदक जीता.

निशा ने वर्ष 1994 में हांगकांग में आयोजित एशियाई आयु समूह चैंपियनशिप में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता. वर्ष 1999 में, उन्होंने राष्ट्रीय खेलों में 14 स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया. वर्ष 2000 के सिडनी ओलंपिक में, निशा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और 200 मीटर फ्रीस्टाइल में भाग लिया. वह 100 मीटर फ्रीस्टाइल में एक मिनट की बाधा को तोड़ने वाली पहली भारतीय तैराक भी बनीं.

निशा मिलेट को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार मिले जिनमें प्रमुख हैं : –

वर्ष 1997 – 99 में राष्ट्रीय खेलों की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार.

वर्ष  2002 में कर्नाटक राज्य का एकलव्य पुरस्कार.

वर्ष  2003 में एफ्रो-एशियन गेम्स में महिला बैकस्ट्रोक में रजत पदक.

निशा मिलेट ने अपने कैरियर के बाद तैराकी कोचिंग में कदम रखा और युवा तैराकों को प्रशिक्षित करने में योगदान दिया. उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करते हुए भारतीय तैराकी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का प्रयास किया.

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गोल्फ खिलाड़ी अर्जुन अटवाल

अर्जुन अटवाल भारतीय पेशेवर गोल्फ खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सफलता हासिल की है. वह 20 मार्च 1973 को असम, भारत में जन्मे थे. अटवाल ने अपने कैरियर में कई बड़ी गोल्फ चैंपियनशिप जीती हैं और उन्हें भारतीय गोल्फ के सबसे सफल खिलाड़ियों में से एक माना जाता है.

अर्जुन अटवाल पहले भारतीय हैं जिन्होंने यूरोपीय टूर और एशियन टूर पर जीत हासिल की है. वे पीजीए टूर पर जीतने वाले पहले भारतीय और पहले भारतीय मूल के खिलाड़ी भी हैं. उनकी जीत ने भारत में गोल्फ के खेल को एक नई पहचान दी और इस खेल के प्रति युवाओं में रुचि बढ़ाई।

अटवाल की प्रमुख उपलब्धियों में से एक उनकी व्याट क्लासिक में जीत शामिल है, जो उन्होंने पीजीए टूर पर हासिल की थी. उनकी इस जीत ने न केवल उन्हें विश्व गोल्फ के मानचित्र पर स्थापित किया, बल्कि भारतीय गोल्फ के लिए भी एक नई पहचान स्थापित की. अर्जुन अटवाल का योगदान और प्रभाव भारतीय गोल्फ में महत्वपूर्ण है, और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत हैं.

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अभिनेत्री गायत्री जोशी

गायत्री जोशी भारतीय सिनेमा की एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने अपनी सादगी और अभिनय कौशल से दर्शकों का दिल जीता। उनका जन्म 20 मार्च 1977 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था. गायत्री ने अपने कैरियर में सीमित लेकिन प्रभावशाली काम किया है, और उनकी पहचान मुख्य रूप से फिल्म स्वदेश से होती है.

गायत्री जोशी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नागपुर के माउंट कार्मेल हाई स्कूल से पूरी की. बाद में, उनका परिवार मुंबई स्थानांतरित हो गया, जहां उन्होंने जे. बी. वाचा हाई स्कूल में पढ़ाई की. उन्होंने सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की.

गायत्री ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. उन्होंने कई प्रमुख ब्रांड्स जैसे गोदरेज, एलजी, पॉन्ड्स, बॉम्बे डाइंग और फिलिप्स के लिए विज्ञापन किए. इसके अलावा, उन्होंने शाहरुख खान के साथ हुंडई के विज्ञापनों में भी काम किया. वर्ष  1999 में, उन्होंने फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और शीर्ष पांच फाइनलिस्ट में शामिल हुईं. वर्ष 2000 में, उन्होंने मिस इंडिया इंटरनेशनल का खिताब जीता और जापान में आयोजित मिस इंटरनेशनल प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

गायत्री जोशी ने वर्ष  2004 में आशुतोष गोवारिकर की फिल्म स्वदेश से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इस फिल्म में उन्होंने शाहरुख खान के साथ मुख्य भूमिका निभाई. फिल्म में उनके किरदार गीता ने दर्शकों और समीक्षकों से खूब सराहना पाई. स्वदेश उनकी एकमात्र फिल्म है, लेकिन इस फिल्म में उनके प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक खास स्थान दिलाया.

गायत्री जोशी ने 27 अगस्त 2005 को विकास ओबेरॉय से विवाह किया, जो ओबेरॉय कंस्ट्रक्शन्स के प्रबंध निदेशक हैं. शादी के बाद, उन्होंने फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली और अपने परिवार पर ध्यान केंद्रित किया.

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क्रांतिकारी  एस. सत्यमूर्ति

एस. सत्यमूर्ति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी और राजनीतिक नेता थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सक्रिय सदस्य थे और तमिलनाडु में उनकी गहरी राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव था. सत्यमूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1887 को हुआ था और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

सत्यमूर्ति एक प्रभावशाली वक्ता और कुशल राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए विभिन्न आंदोलनों और अभियानों में भाग लिया और खासकर तमिलनाडु में उनके प्रयासों ने कई लोगों को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने में मदद की. उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ विरोध और सत्याग्रह का आयोजन किया, जिससे उनकी गिरफ्तारी और कारावास भी हुई.

सत्यमूर्ति ने अपनी राजनीतिक यात्रा में शिक्षा, समाज सुधार और स्वराज्य के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे मद्रास प्रेसीडेंसी के लिए कांग्रेस के सचिव और बाद में अध्यक्ष के रूप में कार्य किए.

उनकी मृत्यु 20 मार्च 1943 को हुई, लेकिन उनकी विरासत और उनके द्वारा किए गए कार्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक के रूप में याद किए जाते हैं. उनके नेतृत्व और आदर्शों ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरी छाप छोड़ी.

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राजनीतिज्ञ प्रेमनाथ डोगरा

प्रेमनाथ डोगरा एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेता थे. वे जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक थे, जो एक राजनीतिक संगठन था जिसने जम्मू क्षेत्र के लिए समान अधिकारों और जम्मू के लोगों के प्रतिनिधित्व की मांग की थी. डोगरा का राजनीतिक कैरियर उस समय के दौरान खासतौर से महत्वपूर्ण था जब जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन तेजी से हो रहे थे.

राजनीतिज्ञ प्रेमनाथ डोगरा का जन्म 24 अक्टूबर 1884 को जम्मू के निकट समाइलपुर में हुआ था. उनके पिता पंडित अनंतराम लाहौर में कश्मीर राज्य की संपत्ति के प्रबंधक थे. उन्होंने जम्मू क्षेत्र के लोगों की आवाज को मजबूती से उठाया और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए काम किया। प्रेमनाथ डोगरा का योगदान जम्मू और कश्मीर के इतिहास और उसके राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण रहा है. वे एक राजनीतिक विचारक के रूप में भी जाने जाते थे जिन्होंने क्षेत्र के विकास और लोगों के कल्याण के लिए कई पहल की.

प्रेमनाथ डोगरा जम्मू कश्मीर राज्य में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संचालक थे. उन्हें वर्ष 1948 में नजरबंद किया गया. वर्ष 1949- 50 में प्रेमनाथ फिर गिरफ्तार हुए थे. वर्ष 1955-56 में उन्हें भारतीय जन संघ का अध्यक्ष चुना गया. प्रेमनाथ डोगरा अनेक वर्षों तक राज्य की विधान सभा में जम्मू नगर के प्रतिनिधि भी रहे थे.

प्रेमनाथ डोगरा का निधन 20 मार्च 1972 को हुआ था. उनका कार्य और विचारधारा आज भी जम्मू क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण मानी जाती है, और उनके योगदान को कई सम्मान और स्मारकों के माध्यम से याद किया जाता है.

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अभिनेता सोभन बाबू

सोभन बाबू एक भारतीय फिल्म अभिनेता थे, जिन्होंने मुख्य रूप से तेलुगु सिनेमा में काम किया. उनका जन्म 14 जनवरी 1937 को हुआ था और उनका निधन 20 मार्च 2008 को हुआ. सोभन बाबू ने 1950 – 90 के दशक तक तेलुगु फिल्म उद्योग में सक्रिय रहे और उन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा और सौम्यता से विशेष पहचान बनाई.

वे अपनी सजीव अभिनय शैली और विशेष रूप से रोमांटिक और पारिवारिक भूमिकाओं में उनके अद्वितीय प्रदर्शन के लिए जाने जाते थे. सोभन बाबू ने अपने कैरियर में कई हिट फिल्मों में काम किया जैसे कि ‘मनुषुलु मामतलु’, ‘खैदी बाबाई’, ‘गोरिंटाकु’, ‘जीवन ज्योति’, और ‘सोग्गाडु’.  उनकी फिल्में न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, बल्कि समीक्षकों से भी प्रशंसा प्राप्त की.

उन्होंने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते, जिनमें चार आंध्र प्रदेश राज्य नंदी पुरस्कार और पांच फिल्मफेयर पुरस्कार दक्षिण शामिल हैं. सोभन बाबू अपनी अद्वितीय अभिनय शैली और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण आज भी तेलुगु सिनेमा के प्रशंसकों के दिलों में जीवित हैं.

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उपन्यासकार खुशवंत सिंह

खुशवंत सिंह भारतीय साहित्य जगत के प्रमुख उपन्यासकार, व्यंग्यकार और पत्रकार थे. वे 2 फरवरी 1915 को पंजाब के हदाली में जन्मे थे (जो अब पाकिस्तान में है) और 20 मार्च 2014 को उनका निधन हुआ था. खुशवंत सिंह अपनी विवादास्पद और निर्भीक लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने अपनी लेखनी में विविध विषयों का समावेश किया, जिसमें इतिहास, राजनीति, समाज, धर्म और सेक्स शामिल हैं.

खुशवंत सिंह के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासों में “ट्रेन टू पाकिस्तान” शामिल है, जिसने वर्ष 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हुए मानवीय संकट का गहरा और मार्मिक चित्रण किया. यह उपन्यास उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक माना जाता है और इसने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई. उनकी अन्य लोकप्रिय कृतियों में “दिल्ली: ए नॉवेल”, “द कंपनी ऑफ वुमेन”, “द हिस्ट्री ऑफ सिख्स”, और “द एंड ऑफ इंडिया” शामिल हैं. खुशवंत सिंह की लेखनी में व्यंग्य और ईमानदारी का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है.

वे “द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया” के संपादक के रूप में भी काफी प्रसिद्ध रहे, जहाँ उन्होंने अपनी निर्भीक और विवादित संपादकीय नीतियों के लिए चर्चा बटोरी. उनका स्तंभ “With Malice towards One and All” भी काफी लोकप्रिय रहा. खुशवंत सिंह को उनके साहित्यिक और पत्रकारिता योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, हालांकि उन्होंने बाद में इसे लौटा दिया. उनके कार्य और व्यक्तित्व आज भी भारतीय साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रेरणास्रोत हैं.

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अभिनेता बोब क्रिस्टो

बोब क्रिस्टो, जिन्हें आम तौर पर एकअभिनेता के रूप में जाना जाता है, भारतीय सिनेमा में अपने विशेष रोलों के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने अक्सर फिल्मों में खलनायक के किरदार निभाए. वास्तव में, उनका जन्म ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और उन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग में अपना कैरियर बनाया. उनका वास्तविक नाम रॉबर्ट जॉन क्रिस्टो था.

बोब क्रिस्टो ने वर्ष 1980 – 90 के दशक में अपनी अभिनय प्रतिभा के जरिए ख्याति प्राप्त की. उन्होंने बॉलीवुड में कई मशहूर फिल्मों में काम किया, जैसे कि ‘अग्निपथ’, ‘मिस्टर इंडिया’, और ‘नसीब’ आदि में उन्होंने मुख्यतः विलेन के रूप में या उसके हेंचमैन के रूप में काम किया. उनकी शारीरिक बनावट और अभिनय कौशल ने उन्हें इस तरह के रोल के लिए एक आदर्श विकल्प बना दिया.

बोब क्रिस्टो ने भारतीय सिनेमा में एक विदेशी अभिनेता के रूप में सफलतापूर्वक पहचान बनाई और अपने योगदान के लिए याद किए जाते हैं. उनका निधन 20 मार्च 2011 को हुआ.

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