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व्यक्ति विशेष

भाग – 442.

चिकित्सक  चुनीलाल बसु

चुनीलाल बसु, जिनका जन्म 13 मार्च, 1861 को कोलकाता में हुआ था, एक प्रसिद्ध रसायनज्ञ, चिकित्सक और समाज सुधारक थे. उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज और कोलकाता मेडिकल कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की थी. उनकी आर्थिक स्थिति के बावजूद वे एक महान चिकित्सक बने और “चेचक की रोकथाम” और “भारत में मधुमेह के बारे में कुछ प्रेक्षण” जैसे लेखों के जरिए अपनी विद्वता का प्रमाण दिया.

बसु ने रसायन विज्ञान, खाद्य विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. वे बंगाल सरकार के वर्ष 1889 -1920 तक रासायनिक परीक्षक रहे और उन्होंने ‘भारतीय विष अधिनियम’ को पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके द्वारा विषकारक पदार्थों के मुक्त क्रय-विक्रय पर रोक लगाई गई थी. उनके इस उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1898 में ब्रितानी सरकार द्वारा राय बहादुर की पदवी से सम्मानित किया गया था.

चुनीलाल बसु ने कई लेखन कृतियाँ भी प्रकाशित कीं, जिनमें ‘स्वास्थ्य पञ्चक’, ‘जल’, ‘वायु’, ‘फलित रसायन’, ‘पल्ली स्वास्थ्य’ (ग्रामीण स्वास्थ्य) और ‘शरीर स्वास्थ्य विधान’ (शरीर स्वास्थ्य के नियम) शामिल हैं. उन्होंने ‘गुरुदास बनर्जी की जीवनी’ भी लिखी, जो बांग्ला में है.

चुनीलाल बसु का जीवन और कार्य उन्हें एक अद्वितीय व्यक्तित्व बनाते हैं. उनकी चिकित्सा शिक्षा, सामाजिक सुधारों के प्रति योगदान और लेखन कृतियाँ उन्हें उनके समय से आगे का व्यक्ति दर्शाती हैं. उनकी कठिनाइयों से जूझते हुए सफलता पाने की कहानी आज भी प्रेरणादायक है. उनके द्वारा लिखित लेख “चेचक की रोकथाम” और “भारत में मधुमेह के बारे में कुछ प्रेक्षण” चिकित्सा क्षेत्र में उनकी गहरी समझ को दर्शाते हैं.

राय बहादुर की पदवी से सम्मानित होना और खाद्य एवं रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान ने उन्हें एक असाधारण स्थिति प्रदान की. ग्रामीण बंगाल में स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रसार के लिए उनके प्रयासों ने सामाजिक स्तर पर बड़े परिवर्तन किए. चुनीलाल बसु का निधन 02 अगस्त 1930 को हुआ था.

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राजनीतिज्ञ बुर्गुला रामकृष्ण राव

बुर्गुला रामकृष्ण राव एक राजनैतिक व्यक्तित्व थे, जिनका जन्म 13 मार्च, 1899 को महबूबनगर, आंध्र प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 15 सितंबर, 1967 को हुई थी​​​​. उन्होंने अपनी शिक्षा धर्मवंत और एक्सेलसियर हाई स्कूल, हैदराबाद में पूरी की और बाद में वर्ष 1923 में फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे और मुंबई विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की​​​​.

रामकृष्ण राव ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1924 में हैदराबाद में वकालत से की. वे ‘हैदराबाद सामाजिक सम्मेलन’ के सचिव, ‘हैदराबाद सुधार समिति’ और ‘हैदराबाद राजनैतिक सम्मेलन’ के सदस्य रहे. वर्ष 1938 में उन्हें राज्य कांग्रेस का कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया और वर्ष 1937 में वे प्यूपिल्स कन्वेंशन के सचिव निर्वाचित हुए. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और कई बार जेल गए. आन्ध्र प्रदेश सरकार में वे वर्ष 1950- 52 तक राजस्व एवं शिक्षामंत्री और वर्ष 1952-56 तक हैदराबाद राज्य के मुख्यमंत्री रहे​​.

रामकृष्ण राव को वर्ष 1956 में केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और वे वर्ष 1960 तक इस पद पर रहे. उसके बाद, उन्हें 1 जुलाई, 1960 को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वे 15 अप्रैल, 1962 तक इस पद पर कार्यरत रहे​​.

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कवि  आत्मा रंजन

कवि आत्मा रंजन हिंदी साहित्य जगत के एक प्रतिष्ठित और लोकप्रिय कवि हैं, जिनकी रचनाएँ अपनी सरलता, गहन भावनाओं और मानवीय संवेदनाओं के कारण पाठकों के दिलों में विशेष स्थान रखती हैं. उनकी कविताएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं, प्रेम, प्रकृति, संघर्ष और आशा को बहुत ही मार्मिक और सहज ढंग से व्यक्त करती हैं. आत्मा रंजन की कविताएँ न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी पाठकों को प्रेरित करती हैं.

आत्मा रंजन का जन्म 13 मार्च 1971 को शिमला के निकट गाँव हरीचोटी चनारडी (धामी) में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने हिंदी साहित्य में एम्.फिल शिमला विश्वविद्यालय से की थी. उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया है और अपनी कविताओं के माध्यम से पाठकों के मन में एक विशेष स्थान बनाया है.

आत्मा रंजन की कविताएँ हिंदी साहित्य में अपनी सरलता और गहन अर्थ के लिए जानी जाती हैं. उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से प्रेम, विरह, जीवन के संघर्ष, प्रकृति और मानवीय भावनाओं को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं. उनकी कविताएँ पाठकों को जीवन के सच्चे रंगों से परिचित कराती हैं और उन्हें आशा और सकारात्मकता की ओर प्रेरित करती हैं.

प्रमुख कृतियाँ: – तुम्हारी याद, जिंदगी के रंग, ख्वाबों के पंख, प्रेम की गहराई.

कवि आत्मा रंजन की कविताएँ हिंदी साहित्य प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.उनकी कविताएँ न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी लोगों को प्रेरित करती हैं.उनकी कविताओं में प्रेम, संघर्ष, प्रकृति और मानवीय भावनाओं का सुंदर चित्रण मिलता है, जो उन्हें हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान दिलाता है.आत्मा रंजन की कविताएँ न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी लोगों को प्रेरित करती हैं और उन्हें जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.

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अभिनेत्री दुर्गाबाई कामत

दुर्गाबाई कामत भारतीय सिनेमा की पहली महिला अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1900 के दशक की शुरुआत में, जब महिलाओं का थिएटर या फिल्मों में अभिनय करना समाज में निषेध था, उस वक्त उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा. दादा साहेब फाल्के की फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ (1913) में उन्होंने देवी पार्वती का किरदार निभाकर भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री का खिताब हासिल किया. उनकी बेटी, कमलाबाई गोखले भी इसी फिल्म में मोहिनी की भूमिका में थीं और वे भारतीय सिनेमा की पहली बाल कलाकार बनीं.

दुर्गाबाई कामत का जन्म 1879 को मुंबई में हुआ था. उनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा. उनकी शादी आनंद नानोस्कर से हुई थी, लेकिन यह विवाह ज्यादा दिनों तक नहीं चला और उन्होंने अपनी बेटी कमलाबाई के साथ अकेले जीवन-यापन का निर्णय लिया. उस समय महिलाओं के लिए नौकरी पाना कठिन था, खासकर जब वे अकेली माँ हों. ऐसे कठिन समय में, दुर्गाबाई ने फिल्म उद्योग में काम करने का निर्णय लिया और समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हुए अभिनय के क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित की.

दुर्गाबाई कामत ने अपने समय में सिनेमा और समाज की परंपरागत भूमिकाओं को चुनौती दी और महिला अभिनेत्रियों के लिए नई राहें खोलीं. उनका योगदान और साहस आज भी कई महिला कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. दुर्गाबाई कामत का निधन 17 मई 1997 को पुणे में हुआ था.

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राजनेता वरुण गांधी

राजनेता वरुण गांधी भारतीय राजनीति के एक प्रमुख चेहरे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े हुए हैं. वरुण गांधी ने अपनी राजनीतिक पहचान न केवल अपने परिवार की विरासत के कारण बनाई है, बल्कि अपने कार्यों और विचारों के माध्यम से भी उन्होंने खुद को एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित किया है. उनकी राजनीतिक यात्रा, विचारधारा और सामाजिक योगदान उन्हें भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बनाते हैं.

वरुण गांधी का जन्म 13 मार्च 1980 को नई दिल्ली में हुआ था. वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी और सोनिया गांधी के भतीजे हैं. उनके पिता का नाम संजय गांधी और माता का नाम मेनका गांधी है. वरुण गांधी ने अपनी शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) से पूरी की. उन्होंने अर्थशास्त्र और इतिहास में विशेषज्ञता हासिल की है.

वरुण गांधी ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत वर्ष 2009 में की, जब वे उत्तर प्रदेश के पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. उस समय वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की. इसके बाद वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने पीलीभीत से जीत दर्ज की. वरुण गांधी ने अपनी राजनीतिक पहचान को अपने परिवार की विरासत से अलग करके स्थापित किया है. उन्होंने भाजपा के साथ जुड़कर अपनी एक अलग छवि बनाई है और पार्टी के भीतर एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे हैं.

वरुण गांधी एक मजबूत राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक रूढ़िवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं. उनकी विचारधारा भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांतों के अनुरूप है, जिसमें राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक विकास शामिल हैं. उन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किए हैं. हालांकि, वरुण गांधी ने कई मौकों पर पार्टी लाइन से हटकर भी अपनी राय रखी है. उन्होंने किसानों के हितों, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज उठाई है, जिससे उनकी एक स्वतंत्र और जनहितैषी छवि बनी है.

वरुण गांधी अपने राजनीतिक कैरियर में कई विवादों में भी घिरे हैं. उन पर कई बार आपत्तिजनक बयान देने के आरोप लगे हैं. वर्ष 2009 में उनके एक भाषण को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें उन पर धर्म और समुदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊ बयान देने का आरोप लगा था. हालांकि, उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि उनके शब्दों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है.

वरुण गांधी ने वर्ष 2011 में यामिनी रॉय चौधरी से शादी की. यामिनी एक फैशन डिजाइनर हैं. इस जोड़े की एक बेटी है, जिसका नाम अनसूया गांधी है. वरुण गांधी अपने निजी जीवन को लेकर काफी संयमित रहते हैं और सार्वजनिक जीवन में उनकी छवि एक गंभीर और समर्पित नेता की है.

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अभिनेत्री सुप्रिया कार्णिक

अभिनेत्री सुप्रिया कार्णिक भारतीय सिनेमा और टेलीविजन जगत की एक लोकप्रिय अभिनेत्री हैं. उन्होंने अपने अभिनय कौशल और बहुमुखी प्रतिभा के दम पर दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई है. सुप्रिया ने हिंदी, मराठी और दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा है. उनकी सादगी, ऊर्जा और प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है.

सुप्रिया कार्णिक का जन्म 13 मार्च 1975 को महाराष्ट्र में हुआ था. उनका पूरा नाम सुप्रिया सुनील कार्णिक है. उन्होंने अपनी शिक्षा मुंबई में पूरी की और बचपन से ही अभिनय के प्रति उनका झुकाव था. सुप्रिया ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग और विज्ञापनों से की, जिसके बाद उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा.

सुप्रिया कार्णिक ने अपने कैरियर की शुरुआत मराठी सिनेमा से की. उनकी पहली फिल्म “घावघव” (2009) थी, जिसमें उन्होंने एक छोटी भूमिका निभाई. इसके बाद, उन्होंने मराठी फिल्मों में अपनी पहचान बनानी शुरू की और कई सफल फिल्मों में अभिनय किया.

सुप्रिया कार्णिक ने हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान “कहानी” (2012) फिल्म से बनाई. इस फिल्म में उन्होंने एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों और आलोचकों ने खूब सराहा. इसके बाद, उन्होंने “एक था टाइगर” (2012) और “हॉलीडे: ए सोल्जर इज नेवर ऑफ ड्यूटी” (2014) जैसी बड़ी फिल्मों में भी काम किया.

टेलीविजन के क्षेत्र में सुप्रिया ने “सास बिना ससुराल” और “महिसागर” जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया. उनकी टेलीविजन शोज़ में उनकी भूमिकाएँ दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुईं.

सुप्रिया कार्णिक ने दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. उन्होंने तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में काम किया है. उनकी कुछ प्रमुख दक्षिण भारतीय फिल्मों में “चेलुवे” (कन्नड़), “राजा रानी” (तमिल) और “रुद्रमादेवी” (तेलुगु) शामिल हैं। इन फिल्मों में उनके अभिनय को खूब सराहा गया.

फिल्में और भूमिकाएँ: –

“कहानी” (2012) –                                                इस फिल्म में सुप्रिया ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की एक अधिकारी की भूमिका                                                                                    निभाई, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद  किया.

“एक था टाइगर” (2012) –                                      इस फिल्म में उन्होंने एक छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई.

“रुद्रमादेवी” (2015) –                                             इस तेलुगु फिल्म में उन्होंने एक मजबूत और स्वतंत्र चरित्र को जीवंत किया.

“हॉलीडे: ए सोल्जर इज नेवर ऑफ ड्यूटी” (2014) – इस फिल्म में उन्होंने एक सैन्य अधिकारी की भूमिका निभाई.

सुप्रिया कार्णिक ने वर्ष 2015 में अभिनेता और निर्देशक सुनील बर्गे से शादी की. सुनील बर्गे मराठी सिनेमा और टेलीविजन के जाने-माने निर्देशक हैं. इस जोड़े की एक बेटी है, जिसका नाम रेणुका है. सुप्रिया अपने निजी जीवन को लेकर काफी संयमित रहती हैं और सोशल मीडिया पर भी अपने परिवार और कैरियर के बारे में सीमित जानकारी ही साझा करती हैं.

सुप्रिया कार्णिक ने सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी आवाज उठाई है. उन्होंने महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और बाल अधिकारों के लिए कई अभियानों में भाग लिया है. वे पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूक हैं और इसके लिए कई पहलों में शामिल रही हैं.

सुप्रिया कार्णिक को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. उन्हें मराठी और दक्षिण भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से सराहा गया है. उनकी फिल्म “रुद्रमादेवी” के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिसमें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार भी शामिल है.

सुप्रिया कार्णिक भारतीय सिनेमा और टेलीविजन की एक प्रतिभाशाली और बहुमुखी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने अभिनय कौशल और मेहनत के दम पर दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई है. उनकी सादगी, ऊर्जा और प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है.

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अभिनेत्री निम्रत कौर

निम्रत कौर एक भारतीय अभिनेत्री हैं जो मुख्यतः हिंदी फिल्मों में काम करती हैं. उन्हें उनकी फिल्म ‘द लंचबॉक्स’ में उनके प्रदर्शन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जिसमें इरफान खान भी मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म वैश्विक स्तर पर प्रशंसित हुई और निम्रत को एक विशेष पहचान दिलाई.

इसके अलावा, उन्होंने ‘एयरलिफ्ट’ फिल्म में अक्षय कुमार के साथ काम किया, जिसमें उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. निम्रत कौर ने अंतरराष्ट्रीय टीवी सीरीज ‘होमलैंड’ में भी अभिनय किया है, जो उनकी वैश्विक पहचान को और बढ़ाता है.

निम्रत कौर अपने चुनौतीपूर्ण रोल्स और सशक्त अभिनय के लिए जानी जाती हैं. निम्रत कौर का जन्म 13 मार्च 1982 को पिलानी, राजस्थान में हुआ था. 

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अभिनेत्री गीता बसरा

गीता बसरा एक ब्रिटिश-भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई. उनका जन्म 13 मार्च 1984 को इंग्लैंड के पोर्ट्समाउथ में हुआ था. गीता ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2006 में फिल्म दिल दिया है से की, जिसमें उन्होंने इमरान हाशमी के साथ अभिनय किया. इसके बाद उन्होंने द ट्रेन जैसी फिल्मों में भी काम किया, जो उनके करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म मानी जाती है.

गीता बसरा की निजी जिंदगी भी काफी चर्चा में रही है. उन्होंने भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह से 29 अक्टूबर 2015 को शादी की. यह जोड़ी भारतीय फिल्म और क्रिकेट जगत के सबसे चर्चित कपल्स में से एक है. उनके दो बच्चे हैं, और गीता ने शादी के बाद अपने परिवार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए फिल्मों से दूरी बना ली थी.

हालांकि, गीता ने हाल ही में बड़े पर्दे पर वापसी करने की घोषणा की है. उनका कहना है कि हर कलाकार के जीवन में कुछ महत्वाकांक्षाएं होती हैं, और अब वह अपने अभिनय कैरियर को फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं. गीता बसरा का जीवन और कैरियर प्रेरणादायक है, जो यह दर्शाता है कि कैसे एक व्यक्ति अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बना सकता है. उनकी कहानी न केवल उनके प्रशंसकों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को पूरा करने की चाह रखते हैं.

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फिल्म निर्देशक अनुषा रिजवी

अनुषा रिजवी एक भारतीय फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक हैं, जिन्होंने अपनी पहली फिल्म पीपली लाइव के माध्यम से भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई. उनका जन्म 13 मार्च 1978 को दिल्ली में हुआ था. फिल्म निर्देशन में आने से पहले, अनुषा एनडीटीवी में पत्रकार के रूप में काम करती थीं.

पीपली लाइव उनकी पहली फिल्म थी, जो किसानों की आत्महत्या और ग्रामीण भारत की समस्याओं पर आधारित थी. इस फिल्म ने न केवल दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया. डरबन फिल्म समारोह में इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला. अनुषा रिजवी की कहानी यह दर्शाती है कि कैसे एक पत्रकार अपनी संवेदनशीलता और दृष्टिकोण को सिनेमा के माध्यम से व्यक्त कर सकता है. उनकी फिल्में सामाजिक मुद्दों पर गहरी दृष्टि डालती हैं और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती हैं.

उनकी यात्रा प्रेरणादायक है और यह दिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने जुनून और मेहनत के बल पर नई ऊंचाइयों को छू सकता है। अनुषा रिजवी भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उनकी रचनात्मकता और दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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राजनीतिज्ञ नाना फड़नवीस

नाना फडनवीस, जिनका वास्तविक नाम बालाजी जनार्दन भानु था, वर्ष 1741 -1800 तक जीवित रहे. वे एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा राजनीतिज्ञ थे, जिनका जन्म 12 फरवरी 1742 को सतारा में हुआ था. उन्हें अपनी स्वामिभक्ति, स्वाभिमान और स्वदेशाभिमान के लिए जाना जाता था. नाना फडनवीस के सामने मुख्य रूप से तीन प्रमुख समस्याएँ थीं: पेशवा पद को स्थिर रखना, मराठा संघ को बनाए रखना और विदेशी शक्तियों से मराठा राज्य की रक्षा करना.

नाना ने वर्ष 1774 से अपनी मृत्यु तक वर्ष 1800 ई. में मराठा राज्य का संचालन किया. उन्होंने मराठा संघ के विभिन्न घटकों, जैसे कि सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ और भोसले के बीच के विवादों और अंतर्द्वंद्वों को सुलझाने के लिए अपनी राजनीतिक चतुराई और कूटनीतिक कौशल का प्रयोग किया. उन्होंने अंग्रेजों और अन्य विदेशी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध करके मराठा राज्य की रक्षा की और समय-समय पर विभिन्न संधियों के माध्यम से अपने राज्य को सशक्त बनाया. नाना फड़नवीस का निधन 13 मार्च 1800 को हुआ था.

नाना फडनवीस को उनकी मृत्यु के बाद ही मराठा संघ का अंत हो गया था, जो उनके नेतृत्व और प्रबंधन की क्षमता को दर्शाता है. वे न केवल एक योग्य राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक ईमानदार और उच्च आदर्शों से प्रेरित व्यक्ति भी थे​.

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अभिनेता शफ़ी ईनामदार

शफ़ी ईनामदार एक प्रतिभाशाली भारतीय अभिनेता और निर्देशक थे, जिन्होंने अपने अभिनय और निर्देशन के माध्यम से भारतीय सिनेमा और टेलीविज़न में गहरी छाप छोड़ी. उनका जन्म 23 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के दापोली में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और गुजराती, हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी में कई नाटकों का निर्देशन और अभिनय किया.

शफ़ी ईनामदार ने वर्ष 1982 में फिल्म विजेता से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने अर्ध सत्य जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं। उनकी सबसे प्रसिद्ध टेलीविज़न भूमिका दूरदर्शन के धारावाहिक ये जो है ज़िंदगी में थी, जिसने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया।

उन्होंने निर्देशन में भी हाथ आजमाया और फिल्म हम दोनों का निर्देशन किया, जिसमें नाना पाटेकर, ऋषि कपूर और पूजा भट्ट ने अभिनय किया। शफ़ी ईनामदार का कैरियर उस समय चरम पर था, जब 13 मार्च 1996 को एक क्रिकेट मैच देखते समय उनका निधन हो गया.

उनकी अभिनय शैली और योगदान आज भी याद किए जाते हैं. शफ़ी ईनामदार ने भारतीय सिनेमा और टेलीविज़न को समृद्ध किया और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी.

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सितार वादक विलायत ख़ाँ

उस्ताद विलायत खाँ, जिनका जन्म 28 अगस्त, 1928 को गौरीपुर, बांग्लादेश में हुआ था, भारतीय संगीत जगत में एक प्रसिद्ध सितार वादक के रूप में जाने जाते हैं. उनके पिता उस्ताद इनायत हुसैन ख़ाँ भी एक प्रख्यात सितार वादक थे. विलायत ख़ाँ ने अपनी संगीत शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की और उनकी मृत्यु के बाद उनके चाचा और अन्य पारिवारिक सदस्यों से संगीत की शिक्षा जारी रखी.

उस्ताद विलायत ख़ाँ ने सितार वादन में अपनी एक विशिष्ट शैली विकसित की, जिसे ‘गायकी शैली’ कहा जाता है. उन्होंने अपनी वादन शैली में गायकी की बारीकियों को समाविष्ट किया, जिससे उनका संगीत और भी गहरा और भावपूर्ण बन गया. उनकी इस विशेषता ने उन्हें संगीत जगत में एक अलग पहचान दिलाई.

विलायत खाँ ने अपने जीवन में दो शादियाँ कीं और उनके दोनों बेटे सुजात हुसैन ख़ाँ और हिदायत ख़ाँ भी प्रसिद्ध सितार वादक बने. उन्होंने अपनी शैली को और विकसित किया और अपने प्रदर्शनों में अक्सर गायन भी शामिल किया. उनके योगदान के सम्मान में उन्हें ‘आफताब-ए-सितार’ का सम्मान दिया गया था.

विलायत ख़ाँ की आलोचनात्मक सोच भी उन्हें विशेष बनाती है. उन्होंने भारतीय सम्मान प्रणाली और आकाशवाणी के प्रचालन को लेकर कटु आलोचना की. उन्होंने पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान भी ठुकरा दिए थे, क्योंकि वे मानते थे कि भारत सरकार ने उनके संगीत में योगदान को सही तरीके से सम्मानित नहीं किया. उन्होंने अपने जीवनकाल में केवल ‘आफताब-ए-सितार’ सम्मान को स्वीकार किया था.

उस्ताद विलायत खाँ का निधन 13 मार्च, 2004 को मुंबई में फेफड़ों के कैंसर के कारण हुआ था. उनकी मृत्यु के समय वे 75 वर्ष के थे. उनका अंतिम संस्कार कोलकाता में किया गया था, जहाँ वे अधिकतर अपने जीवन का समय बिताते थे.

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