
नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ
नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य के दूसरे सम्राट थे. वे बाबर के पुत्र थे, जो मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक भी थे. हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 में हुआ था और उनकी मृत्यु 27 जनवरी 1556 में हुई थी.
हुमायूँ का शासनकाल उतार-चढ़ाव भरा रहा. उन्हें शेर शाह सूरी के हाथों अपनी राजधानी दिल्ली खोनी पड़ी थी और वे कई सालों तक निर्वासन में रहे. इस दौरान वे पर्शिया और अफगानिस्तान में रहे. हालांकि, बाद में उन्होंने अपनी खोई हुई सत्ता को पुनः प्राप्त किया और दोबारा मुग़ल साम्राज्य के सम्राट बने.
हुमायूँ के शासनकाल का महत्वपूर्ण हिस्सा उनकी वापसी और फिर से सत्ता स्थापित करने में गया. उनका निधन एक दुर्घटना में हुआ था जब वे अपनी पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर गए थे. हुमायूँ के बाद उनके पुत्र अकबर मुग़ल साम्राज्य के महान सम्राटों में से एक बने.
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रामशरण जोशी
रामशरण जोशी हिन्दी के प्रसिद्ध पत्रकार, संपादक, मीडिया के अध्यापक और समाजविज्ञानी हैं. उनका जन्म 6 मार्च 1944 को हुआ था. उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में ‘आदमी, बैल और सपने’, ‘आदिवासी समाज और विमर्श’, ’21वीं सदी के संकट’, ‘मीडिया विमर्श’, ‘यादों का लाल गलियारा : दंतेवाड़ा’, और ‘मैं बोनसाई अपने समय का’ शामिल हैं.
उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं जिनमें बिहार सरकार द्वारा ‘राजेन्द्र माथुर राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’, मध्य प्रदेश सरकार का ‘राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान’, और ‘हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘पत्रकारिता सम्मान’ शामिल हैं.
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शास्त्रीय गायिका देवकी पंडित
देवकी पंडित एक भारतीय शास्त्रीय गायिका हैं, जिन्होंने अपनी आवाज़ और विशिष्ट गायन शैली के माध्यम से कई लोगों के दिल जीते हैं. वे महाराष्ट्र में एक संगीतमय परिवार में जन्मी थीं और उन्होंने बहुत कम उम्र से ही संगीत की शिक्षा शुरू कर दी थी. उनके प्रमुख गुरुओं में पद्म विभूषण गणसरस्वती किशोरी अमोनकर और पद्मश्री पंडित जितेंद्र अभिषेकी शामिल हैं. देवकी पंडित को संगीत में उनकी माँ उषा पंडित ने प्रशिक्षित किया था. उन्होंने अपना पहला स्टेज प्रदर्शन 9 साल की उम्र में किया था और 12 साल की उम्र में पहली बार रिकॉर्डिंग की थी.
उन्होंने आगरा घराने के पंडित बबनराव हल्दनकर और डॉ. अरुण द्रविड़ से भी मार्गदर्शन प्राप्त किया, जो खुद किशोरी अमोनकर के शिष्य थे. देवकी पंडित ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ भजन, गजल, अभंग और फिल्मों के लिए गाने जैसे विभिन्न शैलियों में अपनी आवाज़ दी है. उन्होंने पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, उस्ताद रईस खान, गुलज़ार, विशाल भारद्वाज, नौशाद, जयदेव, जतिन-ललित, और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के साथ काम किया है.
उनकी उपलब्धियों में कई पुरस्कार शामिल हैं जैसे कि अल्फा गौरव गौरव पुरस्कार, मेवाती घराना पुरस्कार, और आदित्य बिड़ला कला किरण पुरस्कार. उन्होंने ‘इंडियन आयडल मराठी’ जैसे रियलिटी शो में भी मार्गदर्शन प्रदान किया है, जिससे उनकी व्यापक पहुंच और प्रभाव स्पष्ट होता है.
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अभिनेता मकरंद देशपांडे
मकरंद देशपांडे हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं. उन्होंने कई फ़िल्मों में काम किया है जैसे ‘सरफ़रोश’, ‘सत्या’, ‘चमेली’, ‘स्वदेश’, ‘मकड़ी’, और ‘रोड’. मकरंद ने न केवल अभिनेता के रूप में बल्कि लेखक और निर्देशक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई है.
मकरंद देशपांडे का जन्म 06 मार्च 1966 को हुआ था. वे ‘RRR’ जैसी फिल्म में भी दिखाई दिए हैं जहाँ उन्होंने पेद्दन्ना की भूमिका निभाई. इस फिल्म में उनके कुछ सीन्स काट दिए गए थे, पर उन्होंने इसे पेशेवर रूप से संभाला.
हाल ही में, मकरंद देशपांडे ने टेलीविज़न पर बेताल की भूमिका निभाई है, जो कि एक पारंपरिक कथा पर आधारित सीरीज है. इस भूमिका के बारे में बोलते हुए, उन्होंने अपने बचपन की यादें और वेताळ के प्रति अपनी भावनाओं को साझा किया. वे इस भूमिका को निभाकर बहुत खुश हैं और इसे अपने कैरियर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं.
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अभिनेत्री जाह्नवी कपूर
जाह्नवी कपूर एक अभिनेत्री हैं जिनका जन्म 6 मार्च 1997 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वह बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता बोनी कपूर और लेजेंडरी अभिनेत्री श्रीदेवी की बेटी हैं. उनकी एक छोटी बहन, खुशी कपूर, भी है. जाह्नवी ने अपनी शिक्षा मुंबई के धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल से पूरी की और बाद में फिल्म निर्माण और अभिनय में कैरियर बनाने के लिए उन्होंने ली स्ट्रासबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टीट्यूट, न्यूयॉर्क में अध्ययन किया.
जाह्नवी कपूर ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2018 में धर्मा प्रोडक्शंस की फिल्म “धड़क” से की. यह फिल्म “सईरात” (2016) की हिंदी रीमेक थी, जो मराठी सिनेमा की एक सुपरहिट फिल्म थी. “धड़क” में जाह्नवी ने पटकथा लेखक पार्थवी (पारो) की भूमिका निभाई, जो एक छोटे शहर की लड़की है और उसकी जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आता है. उनके अभिनय की प्रशंसा की गई और उन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला पदार्पण के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.
फिल्में: –
गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल (2020): – यह फिल्म भारतीय वायुसेना की पहली महिला पायलट, गुंजन सक्सेना, की सच्ची कहानी पर आधारित है. जाह्नवी ने गुंजन की भूमिका निभाई और उनके अभिनय की प्रशंसा की गई.
रूरल (2021): – यह फिल्म कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर आधारित है. जाह्नवी ने इस फिल्म में एक युवा लड़की की भूमिका निभाई, जो अपने परिवार के साथ घर वापस जाने की कोशिश करती है.
गुडलक ज़री (2022): – यह फिल्म एक रोमांटिक कॉमेडी है, जिसमें जाह्नवी ने सिद्धांत मल्होत्रा के साथ अभिनय किया। फिल्म को दर्शकों और आलोचकों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली.
मिली (2022): – यह फिल्म एक थ्रिलर है, जिसमें जाह्नवी ने एक युवा लड़की की भूमिका निभाई, जो अपने जीवन के लिए लड़ती है. उनके अभिनय की प्रशंसा की गई और फिल्म को सफलता मिली.
जाह्नवी कपूर न केवल एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, बल्कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. वह महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए काम करती हैं. उन्होंने कई सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लिया है और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित किया है. जाह्नवी कपूर को अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. उन्हें “धड़क” के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पदार्पण का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.
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क्रांतिकारी अंबिका चकव्रती
क्रांतिकारी अंबिका चक्रवर्ती भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. वे चटगाँव जुगंतार पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्य थे और सूर्य सेन के नेतृत्व में हुए चटगाँव शस्त्रागार छापे में शामिल थे. यह छापा ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का एक हिस्सा था.
अंबिका चक्रवर्ती मास्टर सूर्यसेन के साथ काम करते थे, जो चटगाँव के राष्ट्रीय विद्यालय में शिक्षक थे और ‘मास्टर दा’ के नाम से प्रसिद्ध थे. चटगाँव आर्मरी रेड, 1930 में, अंबिका चक्रवर्ती सहित कई क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक बड़े विद्रोह का आयोजन किया था. इस विद्रोह के दौरान, उन्होंने चटगाँव के पुलिस और सैनिक शस्त्रागारों पर धावा बोला और ब्रिटिश संचार प्रणाली को नुकसान पहुंचाया. यद्यपि उन्हें अपने मिशन में पूरी तरह सफलता नहीं मिली, इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की.
अंबिका चक्रवर्ती ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ काम किया और असहयोग आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी.अम्बिका चक्रवर्ती का निधन 6 मार्च 1962 को एक सड़क दुर्घटना में हुआ था.
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राजनीतिज्ञ डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा
डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा एक भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, और संविधान विशेषज्ञ थे. उन्हें भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है. सचिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर 1871 को बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान बिहार में) के आरा में एक संपन्न श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था.
सच्चिदानंद सिन्हा की प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई और बाद में वे इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई करने लगे. लौटने के बाद, उन्होंने वकालत के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय योगदान दिया. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे और विभिन्न सामाजिक सुधार आंदोलनों से भी जुड़े रहे.
डॉ. सिन्हा भारतीय संविधान सभा के सदस्य बने और उनकी वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए उन्हें संविधान सभा के उद्घाटन सत्र के दौरान अस्थायी अध्यक्ष चुना गया. इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन संविधान निर्माण की प्रक्रिया में सच्चिदानन्द सिन्हा का योगदान सराहनीय रहा.
डॉ. सिन्हा का निधन 6 मार्च 1950 को हुआ था. उनकी स्मृति में पटना में सिन्हा लाइब्रेरी स्थापित किया गया था. राजनीति के साथ-साथ उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई. सच्चिदानन्द सिन्हा का जीवन प्रेरणादायक रहा और उनका योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा स्मरणीय रहेगा.
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मोटूरि सत्यनारायण
मोटूरि सत्यनारायण, जिनका जन्म 2 फ़रवरी, 1902 को आंध्र प्रदेश में कृष्णा ज़िले के दोण्डपाडू नामक गांव में हुआ था और मृत्यु 6 मार्च, 1995 को हुई, एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उद्यमी और स्वतंत्रता सेनानी थे. वे आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के एक छोटे से गांव मोटूरि के निवासी थे.
मोटूरि सत्यनारायण ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भाग लिया और स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन दिया. उन्होंने नमक सत्याग्रह, खिलाफत आंदोलन, और विभाजन नहीं आंदोलन जैसे गांधीजी के आंदोलनों में भाग लिया और जेल जाने का भी अनुभव किया.
मोटूरि सत्यनारायण का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उन्होंने अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित किया. उनकी साहसिकता और प्रतिबद्धता को सलामी दी जाती है, और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सफलता में अपना योगदान दिया.
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राजनीतिज्ञ राम सुंदर दास
राम सुंदर दास भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्होंने न केवल बिहार की राजनीति में बल्कि पूरे देश में अपने विचारों और कार्यों से एक अमिट छाप छोड़ी. वे एक सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले नेता थे, जिन्होंने समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. वे बिहार के मुख्यमंत्री और हाजीपुर से लोकसभा सांसद भी रहे. उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्य और राजनीतिक उपलब्धियाँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
राम सुंदर दास का जन्म 9 जनवरी 1921 को सारन, बिहार में हुआ था. वे एक सामान्य परिवार से थे, लेकिन शिक्षा और सामाजिक उत्थान के प्रति उनकी गहरी रुचि थी. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में प्राप्त की और युवावस्था में ही समाज सेवा और राजनीति की ओर आकर्षित हुए.
राम सुंदर दास का राजनीति में प्रवेश स्वतंत्रता संग्राम के समय हुआ. वे सामाजिक न्याय और दलित उत्थान के पक्षधर थे और इसी सोच के साथ उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. वे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया. वे जनता पार्टी के सदस्य बने और बाद में जनता दल (यूनाइटेड) से जुड़े. उन्होंने बिहार में जनता पार्टी के गठन और उसके विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राम सुंदर दास 21 अप्रैल 1979 से 17 फरवरी 1980 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनका यह कार्यकाल भले ही छोटा था, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण नीतियाँ लागू कीं. उनकी सरकार का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय, दलित उत्थान और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना था.
मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने गरीब और पिछड़े वर्गों के बच्चों के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने की पहल की. उन्होंने अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए नई योजनाएँ शुरू कीं साथ ही किसानों की सहायता के लिए विभिन्न योजनाओं की भी शुरुआत की. उन्होंने सरकारी तंत्र में पारदर्शिता लाने की दिशा में कार्य किया.हालाँकि, राजनीतिक अस्थिरता के कारण उनका कार्यकाल लंबा नहीं चल सका, लेकिन उन्होंने अपनी ईमानदारी और दूरदर्शी सोच के कारण जनता के बीच एक अलग पहचान बनाई.
राम सुंदर दास दो बार हाजीपुर से लोकसभा सांसद रहे: – वर्ष 1991-1996 और वर्ष 2009-2014. सांसद के रूप में उन्होंने बिहार और देश के विकास से जुड़े कई मुद्दे संसद में उठाए। वे सामाजिक न्याय, शिक्षा और गरीबों के कल्याण से जुड़े मुद्दों पर विशेष रूप से सक्रिय रहे. हाजीपुर क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि वे वहां के लोगों के दिलों में बस गए थे.
राजनीति के अलावा राम सुंदर दास समाज सेवा में भी सक्रिय थे. उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं पर काम किया। वे सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के पक्षधर थे और जीवनभर इसके लिए संघर्ष करते रहे. उनके कार्यों ने बिहार की राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद की.
राम सुंदर दास का 6 मार्च 2015 को निधन हुआ था. उनके निधन से भारतीय राजनीति ने एक सच्चे और ईमानदार नेता को खो दिया. उनकी सादगी, ईमानदारी और समाज के प्रति उनकी निष्ठा उन्हें आज भी एक प्रेरणा के रूप में जीवित रखती है. राम सुंदर दास भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से थे जिन्होंने सत्ता को सेवा का माध्यम माना. उन्होंने दलितों, पिछड़ों और गरीबों के उत्थान के लिए जीवनभर संघर्ष किया.
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अभिनेत्री शम्मी
अभिनेत्री शम्मी जिन्हें शम्मी आंटी के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित कलाकार थीं. जिनका असली नाम नरगिस रबाड़ी था, और उनका जन्म 24 अप्रैल 1929 को एक पारसी परिवार में हुआ था. शम्मी ने वर्ष 1950 के दशक से लेकर वर्ष 1990 के दशक तक हिंदी सिनेमा में अभिनय किया और अपने कैरियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया.
उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें वह कभी मुख्य नायिका, कभी सहायक अभिनेत्री और कभी कॉमिक रोल में नजर आईं. शम्मी को विशेष रूप से उनके कॉमेडी किरदारों के लिए याद किया जाता है. उन्होंने अपने चुटीले संवाद और अनोखे अभिनय शैली के द्वारा दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई थी.
उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में “कूली नंबर 1”, “खुशबू”, “हम”, और “द बर्निंग ट्रेन” शामिल हैं. उनका निधन 6 मार्च 2018 को हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनकी अद्वितीय भूमिकाएं आज भी उन्हें भारतीय सिनेमा की एक यादगार शख्सियत के रूप में जीवित रखती हैं.