
उद्योगपति जमशेदजी नसरवानजी टाटा
जमशेदजी नसरवानजी टाटा भारतीय उद्योग जगत के एक अग्रणी पुरोधा माने जाते हैं. उनका जन्म 3 मार्च 1839 को नवसारी, गुजरात में हुआ था. टाटा ने भारतीय उद्योग क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की, जिनमें टाटा स्टील, जो एशिया की पहली स्टील मिल थी, और टाटा पावर, जो भारत का पहला हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्लांट है, शामिल हैं.
जमशेदजी की दूरदृष्टि ने उन्हें औद्योगिकीकरण की ओर प्रेरित किया, जिसके फलस्वरूप उन्होंने भारत में आधुनिक उद्योगों की नींव रखी. उनका सपना था कि भारत स्वयं के संसाधनों का उपयोग करके अपने उद्योग खड़े करे, और इस दिशा में उन्होंने भारी निवेश किया. उन्होंने जमशेदपुर शहर की स्थापना की, जिसे उनके सम्मान में ‘टाटानगर’ के नाम से भी जाना जाता है.
जमशेदजी टाटा ने शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बंगलुरु की स्थापना के लिए धनराशि और जमीन प्रदान की, जो आज भी भारत के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में से एक है.
जमशेदजी टाटा की 19 मई 1904 को मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी विरासत आज भी टाटा समूह के विशाल औद्योगिक साम्राज्य के रूप में जीवित है, जो विश्वभर में अपनी उत्कृष्टता और नैतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है.
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संगीतकार रवि
संगीतकार रवि, जिनका पूरा नाम रविशंकर शर्मा था, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय संगीत निर्देशकों में से एक थे. उन्होंने वर्ष 1950 के दशक से लेकर वर्ष 1980 के दशक तक, हिंदी फिल्मों के लिए कई यादगार और लोकप्रिय गीत बनाए. उनके संगीत में एक विशिष्ट शैली और मिठास थी, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी.
रवि का जन्म 3 मार्च 1926 को दिल्ली में हुआ था. इनका पूरा नाम रवि शंकर शर्मा था. वर्ष 1950 में मुंबई आये. वर्ष 1952 में फ़िल्म ‘आनंद मठ’ में ‘वंदे मातरम्’ गीत के लिए संगीत देने का मौका संगीतकार हेमंत कुमार ने दिया था जिसके बाद उनहोने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
रवि के संगीत में शास्त्रीय भारतीय संगीत के तत्वों का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन उन्होंने अपने गीतों में लोक संगीत के तत्वों को भी समावेश किया. उन्होंने बॉलीवुड की कई प्रसिद्ध फिल्मों जैसे – ‘छोटी बहू’, ‘गुमराह’, ‘हमराज़’, ‘नील कमल’, और ‘खानदान’ के लिए संगीत दिया. उनके द्वारा रचित गीतों में ‘बाबुल की दुआएँ लेती जा’, ‘चौदहवीं का चांद हो’, और ‘तुम बिन जाऊं कहां’ जैसे क्लासिक हिट शामिल हैं.
संगीतकार रवि का निधन 7 मार्च 2012 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ था. रवि ने अपने संगीत के माध्यम से न सिर्फ भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया, बल्कि अपने समय के कई महान गायकों और गायिकाओं के साथ काम करके उन्हें भी एक नई पहचान दी. उनका संगीत आज भी लोकप्रिय है और भारतीय संगीत के प्रेमियों द्वारा बहुत सराहा जाता है.
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शास्त्रीय संगीत गायक ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान
ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान एक प्रमुख भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे, और वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने अपने जीवन के दौरान भारतीय संगीत के विभिन्न पहलुओं में माहिर होने का सबूत दिया और उन्होंने शास्त्रीय गायन की अद्वितीय भूमिका निभाई. ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान का जन्म 3 मार्च 1931 को हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत संगीत विद्यापीठ से की और वहां से शास्त्रीय संगीत में मास्टरी हासिल की. वे अल्गवादी संगीतकार और गायक रहे हैं, और उन्होंने अपने गायन की अद्वितीय भूमिका से भारतीय संगीत को नया दिशा देने में मदद की.
ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान का गायन अत्यंत गंभीर और भावपूर्ण होता था, और वे ख़ुद भी एक उच्च शिक्षक और गुरु थे. उन्होंने अपने जीवन में अनेक शिष्यों को शास्त्रीय संगीत का उच्च स्तर पर सिखाया और प्रशिक्षित किया.
ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान को भारत सरकार द्वारा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, और उन्हें भारतीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए बहुत प्रशंसा मिली. उनका निधन 17 जनवरी 2021 को हुआ, लेकिन उनका संगीत और उनकी शिक्षा आज भी भारतीय संगीत के अद्वितीय धरोहर के रूप में जीवित है.
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अभिनेता जसपाल भट्टी
जसपाल भट्टी एक प्रसिद्ध भारतीय टेलीविजन और फिल्म अभिनेता थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी सटायरिकल हास्य शैली के लिए जाना जाता था. वे वर्ष 1980- 90 के दशक में अपने टीवी शो ‘फ्लॉप शो’ और ‘उल्टा पुल्टा’ के माध्यम से घर-घर में लोकप्रिय हुए. इन शोज में उन्होंने समाज की विभिन्न समस्याओं और विसंगतियों को हास्य के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को न केवल हंसाया बल्कि सोचने पर भी मजबूर किया.
जसपाल भट्टी का जन्म 03 मार्च 1955 को अमृतसर में हुआ था और उनका निधन 25 अक्टूबर 2012 को हुआ. भट्टी की हास्य शैली विशेष रूप से उनके समय की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों पर तीखी टिप्पणी प्रस्तुत करती थी. उनके हास्य में व्यंग्य का ऐसा तत्व था जो आम आदमी की दैनिक चुनौतियों और विडम्बनाओं को उजागर करता था.
उन्होंने न केवल टेलीविजन पर बल्कि कई हिंदी और पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया. जसपाल भट्टी की अचानक मृत्यु ने उनके प्रशंसकों और समकालीन हास्य अभिनेताओं को गहरा दुःख पहुंचाया. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका काम और उनकी शैली भारतीय हास्य कला के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में याद की जाती है. उनके काम ने उन्हें भारतीय हास्य के एक अमर चरित्र के रूप में स्थापित किया.
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संगीतकार शंकर महादेवन
शंकर महादेवन एक भारतीय गायक और संगीतकार हैं, जो मुख्यतः हिन्दी, तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्मों के लिए अपने संगीत के लिए प्रसिद्ध हैं. वे शंकर-एहसान-लॉय (SEL) संगीत तिकड़ी के सदस्य के रूप में सबसे अधिक पहचाने जाते हैं, जो भारतीय फिल्म संगीत उद्योग में अपने अद्वितीय और नवीन संगीत शैली के लिए प्रसिद्ध है.शंकर महादेवन का जन्म 03 मार्च 1967 को चेंबूर, मुंबई में हुआ था.
शंकर महादेवन की शैली विविधतापूर्ण है, और वे क्लासिकल, जैज़, रॉक और इलेक्ट्रॉनिक संगीत के तत्वों को अपने संगीत में मिश्रित करते हैं. उन्होंने ब्रीथलेस जैसे गाने के साथ अपार लोकप्रियता प्राप्त की, जिसमें उन्होंने लगभग बिना रुके गाया, जिससे यह एक “ब्रीथलेस” प्रदर्शन की तरह प्रतीत होता है.
उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया है, जैसे – ‘दिल चाहता है’, ‘कल हो ना हो’, ‘लक्ष्य’, ‘रॉक ऑन!!’,और ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’. उनके संगीत ने उन्हें न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्धि दिलाई है.
शंकर महादेवन ने अपने संगीत कैरियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं. वे एक प्रशिक्षित शास्त्रीय गायक भी हैं, और उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपने संगीत में एक आधुनिक स्पर्श दिया है. उनके संगीत और गायन का अनूठा मिश्रण उन्हें एक विशिष्ट पहचान देता है.
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राइफलमैन संजय कुमार
राइफलमैन संजय कुमार एक भारतीय सेना के जवान हैं, जिन्हें उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए प्रतिष्ठित परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया है. परम वीर चक्र भारतीय सेना में सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है, जो युद्ध के मैदान में असाधारण वीरता और बलिदान के लिए दिया जाता है.
संजय कुमार को यह सम्मान करगिल युद्ध (1999) के दौरान उनके असाधारण साहस और निडरता के लिए दिया गया था. वे उस समय 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स के साथ सेवा में थे और उन्होंने करगिल के पहाड़ी क्षेत्र में भारी गोलाबारी और मुश्किल परिस्थितियों में भी असाधारण वीरता दिखाई.
उनकी वीरता की कहानियां और उनकी बहादुरी भारतीय सैन्य इतिहास में उल्लेखनीय हैं और उन्हें देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत माना जाता है. उनका साहस और दृढ़ता उन्हें भारतीय सेना के सबसे सम्मानित सैनिकों में से एक बनाती है.
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अभिनेत्री तनीषा मुखर्जी
तनीषा मुखर्जी एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं जो हिंदी और तमिल फिल्म उद्योग में काम कर चुकी हैं. वह प्रसिद्ध अभिनेत्री काजोल और निर्माता-निर्देशक तनुजा की छोटी बहन हैं, जिससे उन्हें भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित परिवार में 3 मार्च 1978 को जन्म हुआ.
तनीषा मुखर्जी ने वर्ष 2003 में फिल्म “स्स्स्श… फिर कोई है” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने बाद में “नील एन निक्की”, “सरकार” और “तमिल फिल्म “उन्नाले उन्नाले” में भी अभिनय किया. हालांकि, वे अपनी बड़ी बहन काजोल या अपनी मां तनुजा की तरह बॉलीवुड में उतनी सफल नहीं हुईं, लेकिन उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में अपनी पहचान बनाई.
तनीषा रियलिटी टीवी शो “बिग बॉस 7” में अपनी उपस्थिति के लिए भी जानी जाती हैं, जहां उन्होंने अपनी मजबूत प्रतियोगिता और व्यक्तित्व के साथ काफी ध्यान आकर्षित किया. शो में उनके प्रदर्शन ने उन्हें घरेलू नाम बना दिया और उन्हें एक नई पहचान मिली. वे अपने फिल्मी कैरियर के अलावा विभिन्न टेलीविजन शो और इवेंट्स में भी सक्रिय रही हैं.
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अभिनेत्री श्रद्धा कपूर
श्रद्धा कपूर एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं जो मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम करती हैं. वह अभिनेता शक्ति कपूर और शिवांगी कोल्हापुरे की बेटी हैं, और प्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे की भतीजी हैं. श्रद्धा की फिल्मी बैकग्राउंड उन्हें भारतीय सिनेमा में एक पहचान देती है.
श्रद्धा कपूर का जन्म 03 मार्च 1987 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म “तीन पत्ती” से की थी, लेकिन उन्हें असली पहचान वर्ष 2011 में आई फिल्म “लव का दी एंड” से मिली. हालांकि, उनके कैरियर का बड़ा ब्रेक वर्ष 2013 में आई फिल्म “आशिकी 2” से मिला, जिसमें उनके अभिनय और गायन ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई. इस फिल्म के लिए उन्हें कई पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया और उन्होंने इसमें अपनी गायन प्रतिभा भी प्रदर्शित की.
इसके बाद, श्रद्धा ने “एक विलेन”, “हैदर”, “एबीसीडी 2”, “बागी”, “स्त्री” और “छिछोरे” जैसी फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें उनके विविध अभिनय कौशल को सराहा गया. उनकी फिल्में न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, बल्कि आलोचकों ने भी उनके काम की भी प्रशंसा हुई.
श्रद्धा कपूर की अभिनय प्रतिभा के अलावा, वे अपने गायन कौशल के लिए भी जानी जाती हैं. उन्होंने अपनी कई फिल्मों में गाने गाए हैं और उन्हें एक प्रतिभाशाली गायिका के रूप में भी माना जाता है. श्रद्धा की फैशन सेंस और उनकी सार्वजनिक उपस्थितियाँ भी चर्चा में रहती हैं.
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औरंगजेब
औरंगजेब भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद और प्रभावशाली सम्राटों में से एक थे, जिन्होंने वर्ष 1658 से वर्ष 1707 तक मुगल साम्राज्य पर शासन किया. वह मुगल सम्राट शाहजहां और मुमताज महल के तीसरे पुत्र थे. औरंगजेब का शासनकाल भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक उल्लेखनीय अवधि थी, जिसमें उन्होंने मुगल साम्राज्य को इसकी सर्वोच्च सीमा तक विस्तारित किया.
औरंगज़ेब का जन्म 3 नवम्बर 1618 को दाहोद, गुजरात में हुआ था. वो शाहजहाँ और मुमताज़ महल की छठी सन्तान और तीसरा बेटा था. औरंगज़ेब का निधन 3 मार्च 1707 को अहमदनगर में हुआ था. औरंगजेब अपनी धार्मिक नीतियों और इस्लामिक कानूनों (शरिया) के सख्त अनुपालन के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने साम्राज्य में धार्मिक नीतियों को सख्त किया, जैसे कि जजिया कर की पुनः स्थापना और गैर-इस्लामी धार्मिक स्थलों पर प्रतिबंध. उनकी इन नीतियों ने कई बार साम्राज्य के विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न किया.
औरंगजेब के शासनकाल में, मुगल साम्राज्य ने भौगोलिक रूप से अपना विस्तार दक्षिण भारत तक किया, जिसमें दक्कन, मैसूर और अन्य क्षेत्र शामिल थे. हालांकि, उनके शासन के अंतिम वर्षों में, साम्राज्य विभिन्न आंतरिक विद्रोहों और आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त हो गया. औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य की शक्ति धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगी, जिसने अंततः ब्रिटिश उपनिवेशवाद के लिए मार्ग प्रशस्त किया.
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बालकृष्ण शिवराम मुंजे
बालकृष्ण शिवराम मुंजे, जिन्हें डॉ. बी. एस. मुंजे भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास में एक जटिल व्यक्तित्व हैं. वे मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मेंटर के रूप में जाने जाते हैं और हिन्दु महासभा के प्रमुख सदस्य थे. उनकी गिनती स्वतंत्रता सेनानी के रूप में नहीं होती है, बल्कि वे एक राजनीतिक और सामाजिक विचारक के रूप में अधिक प्रसिद्ध हैं.
बालकृष्ण शिवराम मुंजे का जन्म 12 दिसंबर 1872 को मध्य प्रान्त (वर्तमान में छत्तीसगढ़) के बिलासपुर में हुआ था. उन्होंने वर्ष 1898 में मुम्बई में ग्रांट मेडिकल कॉलेज से मेडिकल डिग्री ली. फिर मुम्बई नगर निगम में चिकित्सा अधिकारी के रूप में काम करने लगे. गांधीजी से मतभेद होने के कारण डॉ. मुंजे कांग्रेस से अलग हो गए और उनकी गिनती हिन्दू महासभा के तेजस्वी नेताओं में होने लगी. वर्ष 1930 – 31 के गोलमेज सम्मेलनों में वे हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप में गए थे जबकि गांधीजी केवल वर्ष 1931 के गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में गए थे.
मुंजे एक शिक्षाविद और चिकित्सक थे और उन्होंने जापान और अन्य देशों की यात्राएं कीं, जहाँ उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण और राष्ट्रवादी शिक्षा प्रणालियों का अध्ययन किया. उनके विचारों ने बाद में RSS की स्थापना और इसके संगठनात्मक ढांचे पर गहरा प्रभाव डाला. मुंजे ने भारतीय युवाओं में सैन्य अनुशासन और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने के लिए विद्यार्थी संघ और अन्य संगठनों की स्थापना की. उन्होंने भारतीय राजनीति और समाज में गहरे विचारों को प्रेरित किया.
बालकृष्ण शिवराम मुंजे का निधन 3 मार्च, 1948 को हुआ था. हालांकि, उनका योगदान और उनकी विचारधारा विवादास्पद रही है, और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सम्मेलनीय स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में नहीं आते. उनका जीवन और काम भारतीय इतिहास में विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से देखा जाता है.
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उर्दू शायर फ़िराक़ गोरखपुरी
फ़िराक़ गोरखपुरी, जिनका असली नाम रघुपति सहाय था, उर्दू साहित्य के प्रसिद्ध शायरों में से एक थे. वे 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे थे और उन्होंने उर्दू शायरी में अपनी अनूठी शैली और गहरी फिलॉसफिकल अंतर्दृष्टि के लिए व्यापक प्रशंसा प्राप्त की. फ़िराक़ ने अपने शायरी में प्रेम, नैतिकता, और सामाजिक मुद्दों को स्पर्श किया और उनकी रचनाएँ उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.
फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपने लेखन में जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया, जिसमें व्यक्तिगत अनुभवों से लेकर राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान तक शामिल हैं. उनकी शायरी में गहरी मानवीय संवेदनाएँ और फिलॉसफिकल गहराई दिखाई देती है. फ़िराक़ ने अपने शैक्षिक जीवन में भी उल्लेखनीय योगदान दिया. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर थे. उनकी शिक्षा और व्यावसायिक जीवन ने उनकी लेखनी को भी प्रभावित किया.
फ़िराक़ गोरखपुरी को उनके लेखन के लिए कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण शामिल हैं. उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों में ‘गुल-ए-नग़मा’, ‘रूबाइयात-ए-फ़िराक़’, और ‘शबिस्तान-ए-वजूद’ शामिल हैं. उनकी शायरी उर्दू साहित्य में उनकी अमर उपस्थिति को सुनिश्चित करती है और आज भी उनकी रचनाएँ उर्दू शायरी के प्रेमियों द्वारा पढ़ी और सराही जाती हैं.फ़िराक़ गोरखपुरी का निधन 3 मार्च, 1892 को हुआ था.
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मोहिंदर सिंह रंधावा
मोहिंदर सिंह रंधावा एक प्रमुख भारतीय सिआसी नेता और किसान आंदोलन के प्रमुख आवाज़ थे. उनका जन्म 2 फ़रवरी, 1909 को हुआ था. मोहिंदर सिंह रंधावा का पूरा नाम “मोहिंदर सिंह रंधावा” है और वे पंजाब के मानसा जिले के मांसा शहर के गांव मोटा बाबरिया में पैदा हुए थे.
मोहिंदर सिंह रंधावा का नाम खासकर उनके भूमिहीन किसानों के लिए पंजाब के किसान आंदोलन के साथ जुड़ा है. उन्होंने अपनी भूमिहीन किसानों की मुद्दों को सामाजिक और सिआसी मंचों पर उठाया और उनकी आवाज़ को नेतृत्व किया. वे पंजाब किसान संगठन “भरतीय किसान यूनियन (एक्सटेंडेड)” के प्रमुख रूप से प्रसिद्ध हुए थे.
मोहिंदर सिंह रंधावा ने किसानों के मुद्दों पर ध्यान देने के लिए कई आंदोलन और प्रदर्शन का आयोजन किया और उन्होंने उनकी मांगों के लिए जूझने का संकल्प दिखाया. मोहिंदर सिंह रंधावा का निधन 3 मार्च 1986 को हुआ था.
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अभिनेत्री अमीरबाई कर्नाटकी
अमीरबाई कर्नाटकी भारतीय संगीत और सिनेमा की एक प्रतिष्ठित हस्ती थीं. वे मुख्य रूप से वर्ष 1940 – 50 के दशक की फिल्मों में अपने गायन और अभिनय के लिए जानी जाती थीं. अमीरबाई मूल रूप से कर्नाटक की थीं और उन्होंने हिंदी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं में गाने गाए.
अमीरबाई कर्नाटकी का जन्म कर्नाटक के बीजापुर जिले के बिलगी शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में वर्ष 1906 को हुआ था. अमीरबाई एक प्रतिभाशाली गायिका और अभिनेत्री थीं, जो कन्नड़ (मातृभाषा) और गुजराती भाषाओं में पारंगत थीं. वे विशेष रूप से अपनी गायिकी के लिए प्रसिद्ध थीं, जिसमें उन्होंने कई भजन, ग़ज़ल और फिल्मी गीत गाए. उनका गायन शैली भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित थी, और उन्होंने अपने समय की कई प्रमुख फिल्मों में अपनी आवाज दी. उनके कुछ प्रसिद्ध गानों में “बईयाँ ना धरो” और “दूर पपीहा बोला” शामिल हैं.
अमीरबाई कर्नाटकी ने अपनी गायिकी के माध्यम से उस समय के संगीत प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया और उनके योगदान को भारतीय संगीत इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है. उनका निधन 3 मार्च1965 को हुआ, लेकिन उनके गीत और संगीत आज भी उनके प्रशंसकों द्वारा सराहे जाते हैं.