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व्यक्ति विशेष

भाग – 423.

स्वतंत्रता सेनानी सरदार अजीत सिंह

सरदार अजीत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता और क्रांतिकारी थे. वे पंजाब के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ सक्रिय रूप से संघर्ष किया. उनके कार्य और प्रयास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. सरदार अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को पंजाब के संगरूर जिले के एक गांव खटकड़ कलां में हुआ था. वे एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार से थे, जो स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना.

सरदार अजीत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया. उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों और आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया. वे “गदर पार्टी” के एक प्रमुख सदस्य थे, जो भारत में स्वतंत्रता के लिए एक क्रांतिकारी आंदोलन था. गदर पार्टी का उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था और स्वतंत्रता प्राप्त करना था.

गदर पार्टी की स्थापना वर्ष 1913 में अमरीका में की गई थी, और सरदार अजीत सिंह ने इस पार्टी के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गदर पार्टी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र संघर्ष की योजना बनाई, और सरदार अजीत सिंह इस योजना के प्रमुख नेताओं में से एक थे. गदर पार्टी की गतिविधियाँ और उनके द्वारा की गई क्रांतिकारी योजनाएँ ब्रिटिश सरकार के लिए एक बड़ा खतरा थीं. वर्ष 1915 में, गदर कांड के दौरान, सरदार अजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें विभिन्न आरोपों के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ा.

सरदार अजीत सिंह की देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण और सम्मानित नेता बना दिया. उनके संघर्ष और बलिदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विशेष महत्व दिया गया है. सरदार अजीत सिंह का निधन 15 अगस्त 1947 को हुआ. वे स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे, जिनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. उनके जीवन और कार्यों ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष को जीवित रखा.

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जादूगर  पी. सी. सरकार

जादूगर पी. सी. सरकार भारतीय जादू के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध नाम हैं. उन्हें अक्सर पी. सी. सरकार सीनियर के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उनके बेटे और पोते ने भी जादू के क्षेत्र में अपना नाम बनाया है. पी. सी. सरकार का जन्म 23 फरवरी 1913 को बंगाल के अशोकनगर में हुआ था और उन्होंने विश्व भर में भारतीय जादू की अनूठी शैली को प्रस्तुत किया.

पी. सी. सरकार ने अपने जादू के कैरियर के दौरान कई प्रकार के जादूई प्रदर्शन किए, जिनमें इंडियन रोप ट्रिक, फ्लोटिंग लेडी और वाटर ऑफ इंडिया जैसे प्रसिद्ध इल्यूजन शामिल हैं. उनके प्रदर्शन न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत प्रसिद्ध थे.

पी. सी. सरकार को उनकी असाधारण प्रतिभा और जादू के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया. उनका नाम जादू के क्षेत्र में एक लीजेंड के रूप में स्थापित है. उनके द्वारा प्रस्तुत जादू के कुछ कार्यक्रम आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और उनके बेटे, पी. सी. सरकार जूनियर, और पोते ने भी इस विरासत को आगे बढ़ाया है. पी. सी. सरकार का निधन 6 जनवरी 1971 को असाहिकावा, होक्काइदो, जापान में हुआ था.

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आध्यात्मिक गुरु  बाबा हरदेव सिंह

बाबा हरदेव सिंह भारतीय धार्मिक समुदाय संत निरंकारी मिशन के पूर्व आध्यात्मिक नेता और गुरु थे. उनका जन्म 23 फरवरी 1954 को हुआ था, और उन्होंने वर्ष 1980 से अपने निधन तक वर्ष 2016 में, संत निरंकारी मिशन का नेतृत्व किया था.

बाबा हरदेव सिंह को उनकी सादगी, उनकी शिक्षाओं की गहराई और धार्मिक समरसता के प्रति उनके समर्पण के लिए जाना जाता है. उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और विश्व शांति की वकालत की, और उनका मानना था कि सच्चा धर्म मानवता की सेवा करने में निहित है. उनके नेतृत्व में, संत निरंकारी मिशन ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहुंच बढ़ाई और विभिन्न सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों को आयोजित किया.

उनकी मृत्यु 13 मई 2016 को कनाडा में एक सड़क दुर्घटना में हो गई, जिसने उनके अनुयायियों और समुदाय के सदस्यों को गहरे दुख में डाल दिया. उनके निधन के बाद, उनके बेटे सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने संत निरंकारी मिशन के आध्यात्मिक नेता के रूप में उनकी जगह ली.

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अभिनेत्री भाग्यश्री

भाग्यश्री एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने वर्ष 1980- 90 के दशक में भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्हें विशेष रूप से वर्ष 1989 में रिलीज हुई फिल्म “मैंने प्यार किया” के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने सलमान खान के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फिल्म ने न केवल भाग्यश्री को रातों-रात स्टार बना दिया, बल्कि उन्हें एक प्रमुख फिल्म अभिनेत्री के रूप में भी स्थापित किया.

भाग्यश्री का जन्म 23 फरवरी 1969 को सांगली संस्थान के शाही पटवर्धन परिवार में हुआ था. इनका पूरा नाम श्रीमंत राजकुमारी भाग्यश्री राजे पटवर्धन है. इनके पिता का नाम राजा श्रीमंत विजयसिंह राव माधव राव पटवर्धन है. भाग्यश्री ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत फिल्म मैंने प्यार किया से की थी.

“मैंने प्यार किया” की सफलता के बाद, भाग्यश्री ने कई हिंदी और अन्य भाषाई फिल्मों में काम किया. भाग्यश्री का विवाह हिमालय दासानी से हुआ. विवाह के बाद अपने फिल्मी कैरियर में एक लंबा ब्रेक लिया. उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन पर अधिक ध्यान केंद्रित किया. हालांकि, वह समय-समय पर विभिन्न टीवी शोज और रियलिटी शोज में दिखाई दी हैं.

भाग्यश्री अपनी निजी जिंदगी में अपने स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति बहुत सजग रही हैं, और वह सोशल मीडिया पर अपने फिटनेस रूटीन और स्वास्थ्य टिप्स को साझा करती रहती हैं.  उनके फिटनेस मंत्र और स्वस्थ जीवनशैली के टिप्स को काफी पसंद करते हैं. भाग्यश्री ने अपने कैरियर में विविधता और गहराई दोनों दिखाई है, चाहे वह फिल्मों में उनकी भूमिकाएं हों या उनकी व्यक्तिगत जिंदगी में उनके शौक, जीवन और कैरियर नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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चिकित्सक महेन्द्रलाल सरकार

महेन्द्रलाल सरकार एक प्रसिद्ध भारतीय चिकित्सक, समाज सुधारक और विज्ञान के प्रचारक थे, जिनका जन्म 2 नवंबर 1833 को हुआ था. वे 19वीं शताब्दी के बंगाल रेनेसांस के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक थे और भारत में वैज्ञानिक शोध और शिक्षा के प्रसार के लिए काफी प्रसिद्ध हुए.

महेन्द्रलाल सरकार ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से की थी और उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक चिकित्सक के रूप में की. हालांकि, उनकी रुचि केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं रही, वे विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान में भी गहरी दिलचस्पी रखते थे.

उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय विज्ञान समाज (Indian Association for the Cultivation of Science, IACS) की स्थापना थी, जो 1876 में कलकत्ता में स्थापित की गई थी. यह संस्था भारत में विज्ञान के प्रचार और शोध कार्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. महेन्द्रलाल सरकार ने इस संस्थान के माध्यम से विज्ञान शिक्षा और शोध को आम लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया.

वे एक आधुनिक विचारक थे जिन्होंने विज्ञान के प्रति जनता की समझ बढ़ाने और भारत में वैज्ञानिक ज्ञान के विकास के लिए काम किया. महेन्द्रलाल सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण योगदान दिए. उनकी मृत्यु 23 फरवरी 1904 को हुई, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य और विचार आज भी भारतीय विज्ञान और समाज के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं.

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उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा

वृंदावनलाल वर्मा एक प्रमुख हिंदी उपन्यासकार और निबंधकार थे. उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं. वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 18 जनवरी 1889 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी और फिर उन्होंने अपनी लेखनी का कार्य शुरू किया.

वृंदावनलाल वर्मा के प्रमुख उपन्यास में “चित्त-चोर” और “दिनकर” शामिल हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया. उनके उपन्यास समाज में जातिवाद, जाति प्रतिष्ठा, और मानवीय समस्याओं पर विचार करते थे.

वृंदावनलाल वर्मा ने निबंध, कविता, और उपन्यास के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया और वे अपने साहित्यिक कौशल के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वृंदावनलाल वर्मा का निधन 1969 में हुआ, लेकिन उनके लेखन का प्रभाव और महत्व आज भी हिंदी साहित्य के इतिहास में बना हुआ है.

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अभिनेत्री मधुबाला

मधुबाला, जिनका असली नाम मुमताज़ जहान बेगम देहलवी था, भारतीय सिनेमा की एक अत्यंत प्रतिष्ठित और चिरस्मरणीय अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 14 फ़रवरी 1933 को दिल्ली में हुआ था, और उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत बहुत ही कम उम्र में की थी. मधुबाला को हिंदी सिनेमा की “वीनस” और “ब्यूटी विद ट्रेजेडी” के रूप में जाना जाता है. उनकी सुंदरता और अभिनय कौशल ने उन्हें अपने समय की सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय अभिनेत्रियों में से एक बना दिया था.

धुबाला ने वर्ष 1942 में फिल्म “बसंत” से बॉलीवुड में अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की, और जल्द ही वे अपने समय की सबसे बड़ी स्टार बन गईं. उन्होंने “महल” (1949), “अमर” (1954), “मिस्टर & मिसेज़ ’55” (1955), “चलती का नाम गाड़ी” (1958), और “मुगल-ए-आज़म” (1960) जैसी कई हिट फिल्मों में अभिनय किया. इनमें से “मुगल-ए-आज़म” उनके कैरियर की सबसे यादगार फिल्मों में से एक है, जिसमें उन्होंने अनारकली की भूमिका निभाई थी.

मधुबाला की खूबसूरती और प्रतिभा के बावजूद, उनका जीवन व्यक्तिगत संघर्षों और स्वास्थ्य समस्याओं से भरा रहा. उन्हें दिल की एक गंभीर बीमारी थी, जिसने उनके कैरियर और जीवन को काफी प्रभावित किया. इसके बावजूद, उन्होंने अपने काम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और जुनून को कभी कम नहीं होने दिया.

मधुबाला का 23 फ़रवरी 1969 को केवल 36 वर्ष की आयु में निधन हो गया, लेकिन उनकी फिल्में और उनकी अद्वितीय शैली आज भी हिंदी सिनेमा के प्रेमियों के बीच जीवित है. उनकी विरासत उनकी अद्भुत फिल्मों और उनके जीवन से जुड़ी कहानियों के माध्यम से आज भी प्रेरणा देती रहती है.

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साहित्यकार अमृतलाल नागर

अमृतलाल नागर हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. उनका जन्म 17 अगस्त 1916 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था, और उनका निधन 23 फरवरी 1990 को लखनऊ में हुआ. अमृतलाल नागर को कथा साहित्य, नाटक, रेडियो नाटक, बाल साहित्य और पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए जाना जाता है.

उपन्यास: – अमृतलाल नागर ने कई प्रसिद्ध उपन्यास लिखे, जिनमें “बूँद और समुद्र”, “शतरंज के मोहरे”, “मानस का हंस”, “अमृत और विष”, और “नाच्यो बहुत गोपाल” शामिल हैं.

कहानी संग्रह: – उन्होंने “जन्मभूमि” और “सेठ बांकेमल” जैसी प्रसिद्ध कहानियां लिखी हैं.

नाटक: – “एक था बादशाह”, “गड्डा” और “महाकवि कालिदास” जैसे नाटकों के लेखक भी रहे हैं.

बाल साहित्य: – नागर जी ने बच्चों के लिए भी साहित्य लिखा, जिसमें “विचित्र नगर की विचित्र कहानियाँ” विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

अमृतलाल नागर की लेखनी में समाज के विभिन्न पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं का अद्वितीय चित्रण होता है. उनकी रचनाएं प्राचीन और आधुनिक भारत के सामाजिक जीवन, समस्याओं, और संस्कृति का एक सजीव चित्र प्रस्तुत करती हैं. उनकी भाषा शैली सरल, सहज और जनसाधारण के लिए समझने योग्य होती थी, जिससे उनकी रचनाएं आम पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुईं.

अमृतलाल नागर को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, और हिंदी साहित्य सम्मेलन का सर्वोच्च सम्मान शामिल हैं. अमृतलाल नागर को हिंदी साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में हमेशा याद किया जाएगा.

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 निर्देशक विजय आनन्द

 विजय आनन्द, जिन्हें गोल्डी आनन्द के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के एक अत्यंत प्रतिभाशाली और बहुमुखी व्यक्तित्व थे. उनका जन्म 22 जनवरी 1934 को हुआ था, और उन्होंने अभिनेता, निर्माता, पटकथा-लेखक और निर्देशक के रूप में हिंदी सिनेमा में अपनी अमिट छाप छोड़ी. विजय आनन्द ने न केवल कुछ बेहद सफल और यादगार फिल्मों का निर्माण किया, बल्कि उन्होंने सिनेमाई शैली और तकनीकी नवाचारों में भी अपनी अनूठी पहचान बनाई.

उनके निर्देशन की कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “गाइड” (1965), “ज्वेल थीफ” (1967), “तीसरी मंजिल” (1966), और “जॉनी मेरा नाम” (1970) शामिल हैं. इन फिल्मों ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता प्राप्त की, बल्कि आलोचकों से भी प्रशंसा प्राप्त की. “गाइड”, जो आर.के. नारायण की एक उपन्यास पर आधारित थी, विशेष रूप से उनके कैरियर की एक मील का पत्थर फिल्म मानी जाती है.

विजय आनन्द की फिल्में अक्सर उनकी कहानी कहने की अनूठी शैली, गीत-संगीत के प्रति उनकी संवेदनशीलता, और पात्रों के मनोविज्ञान को गहराई से समझने की उनकी क्षमता के लिए सराही जाती हैं. उन्होंने अपनी फिल्मों में नृत्य और संगीत के दृश्यों को नवीन तरीके से पेश किया, जो उस समय के लिए काफी आगे था.

विजय आनन्द ने अपने भाई देव आनन्द के साथ भी कई फिल्मों में काम किया, जो खुद एक अभिनेता और निर्माता थे. उनका सहयोग भारतीय सिनेमा के कुछ सबसे यादगार क्षणों को जन्म दिया. विजय आनन्द का 23 फरवरी 2004 को निधन हो गया, लेकिन उनकी फिल्में और उनके द्वारा सिनेमा को दिया गया योगदान आज भी सिनेमा प्रेमियों और फिल्म निर्माताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनका काम भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा एक अमूल्य रत्न के रूप में याद किया जाएगा.

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