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व्यक्ति विशेष

भाग – 422.

स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी श्रद्धानन्द जिन्हें मूल रूप से मुंशीराम के नाम से जाना जाता था, भारतीय समाज सुधारक, आर्य समाज के एक प्रमुख नेता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सक्रिय सदस्य थे. उनका जन्म 22 फ़रवरी, 1856 ई. को पंजाब प्रान्त के जालंधर ज़िले में तलवान नामक ग्राम में हुआ था. स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने जीवन को भारतीय समाज के उत्थान और सुधार में समर्पित किया, विशेषकर आर्य समाज के माध्यम से.

उन्होंने शिक्षा के प्रसार, जाति प्रथा के उन्मूलन, और धार्मिक पुनर्जागरण के लिए काम किया. स्वामी श्रद्धानन्द ने शुद्धि आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य हिन्दू धर्म में वापस आने के इच्छुक उन लोगों को समर्थन प्रदान करना था जिन्होंने अन्य धर्मों को अपना लिया था.

स्वामी श्रद्धानन्द ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आज भी भारतीय शिक्षा के एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में कार्यरत है. उनका मानना था कि शिक्षा लोगों को सशक्त बनाती है और उन्हें अपने धार्मिक और सामाजिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाती है.

23 दिसम्बर 1926 को उनकी हत्या एक ऐसी घटना थी जिसने न केवल आर्य समाज बल्कि पूरे भारतीय समाज को हिला कर रख दिया. उनकी मृत्यु ने धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सुधार के लिए उनके संघर्ष को और भी अधिक प्रमुखता प्रदान की. स्वामी श्रद्धानन्द का जीवन और कार्य आज भी भारतीय समाज में एक प्रेरणास्रोत है, और उन्हें एक महान समाज सुधारक, धार्मिक नेता, और देशभक्त के रूप में याद किया जाता है.

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स्वतंत्रता सेनानी यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त

यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जन्म 22 फरवरी 1885 को चटगांव (वर्तमान में बांग्लादेश में) में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन का आरंभ एक वकील के रूप में किया लेकिन बाद में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े. वे मजदूर हितैषी थे और असम-बंगाल रेलवे की हड़ताल का संयोजन किया. बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. उनकी मृत्यु 22 जुलाई 1933 को राँची में हुई. वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए वर्ष 1904 में इंग्लैंड गए और 1909 में बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे. उन्होंने एक अंग्रेज़ लड़की, नेल्ली ग्रे से विवाह किया, जो बाद में नेल्ली सेनगुप्ता के नाम से प्रसिद्ध हुईं और स्वतंत्रता संग्राम में उनका साथ दिया.

उन्होंने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापन के साथ अपना व्यावसायिक जीवन आरंभ किया. वर्ष 1911 में वे कांग्रेस से जुड़े और मजदूरों और किसानों को संगठित करने में विशेष ध्यान दिया. वर्ष 1921 में सिलहट में चाय बागानों के मजदूरों के शोषण के विरुद्ध उनके प्रयत्नों से विभिन्न क्षेत्रों में हड़तालें हुईं, जिसके कारण उन्हें जेल भेज दिया गया. वर्ष 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद संभाला और अपने जनहित के कार्यों के लिए उन्हें पाँच बार कोलकाता का मेयर चुना गया. वर्ष 1928 के कोलकाता अधिवेशन में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में उन्होंने स्वागताध्यक्ष का पद संभाला और राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए.

वर्ष 1930 में, जब सरकार ने कांग्रेस को गैर-कानूनी घोषित किया, तो यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए लेकिन तुरंत ही गिरफ्तार कर लिए गए. उनकी पत्नी, नेल्ली सेनगुप्ता भी गिरफ्तार की गईं. वर्ष 1931 में उनका नाम फिर से अध्यक्ष पद के लिए उठाया गया था, लेकिन उन्होंने सरदार पटेल के पक्ष में नाम वापस ले लिया. वर्ष 1932 में वापस लौटते ही उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया.

वर्ष 1933 में कोलकाता में कांग्रेस का अधिवेशन प्रस्तावित था, जिसमें उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और कोलकाता जाने से रोका गया. इसके बाद उनकी पत्नी नेल्ली सेनगुप्त ने अधिवेशन की अध्यक्षता की लेकिन वे भी गिरफ्तार कर ली गईं. यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त की जेल में ही अस्वस्थ अवस्था में रहते हुए 22 जुलाई 1933 को निधन हो गया. उनका जीवन और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है.

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स्वामी सहजानंद सरस्वती

स्वामी सहजानंद सरस्वती, जिन्हें किसानों के महान नेता और एक प्रखर समाजवादी चिंतक के रूप में जाना जाता है, ने भारतीय किसान आंदोलन में अमिट छाप छोड़ी. उनका जन्म 22 फरवरी 1889 को  उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था. वे एक संन्यासी थे जिन्होंने सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए जीवनभर संघर्ष किया था.

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भारतीय किसान सभा की स्थापना की और इसके पहले अध्यक्ष बने. उन्होंने किसानों को जमींदारी प्रथा और अन्य शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ एकजुट किया. उनका मानना था कि किसानों को उनकी भूमि और उपज पर अधिकार होना चाहिए. स्वामीजी ने किसानों के हितों के लिए व्यापक रूप से लिखा और बोला. उन्होंने कई पुस्तकें और लेख प्रकाशित किए, जिनमें “किसान सभा के संकल्प,” “भूमिहार ब्राह्मण,” और “गांधी वध क्यों” शामिल हैं. उनके लेखन और भाषणों में वर्ग संघर्ष और साम्राज्यवाद के विरुद्ध तीव्र आलोचना मिलती है.

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भारतीय समाज में गहराई से व्याप्त जातिवाद, सामाजिक अन्याय और आर्थिक असमानताओं के खिलाफ भी मुखर रूप से आवाज उठाई. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है, खासकर उनकी जमीनी स्तर पर किसानों और वंचित वर्गों के प्रति समर्पण और संघर्ष की भावना. स्वामी सहजानंद सरस्वती का निधन 26 जून 1950 को हुआ था, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी भारतीय समाज में जीवित हैं और नई पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं.

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राजनीतिज्ञ इंदुलाल याज्ञिक

इंदुलाल याज्ञिक (इंदुलाल कनैयालाल याज्ञिक) एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, और सामाजिक कार्यकर्ता थे. वे विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं. इंदुलाल याज्ञिक  का जन्म 22 फ़रवरी, सन 1892 को गुजरात के खेड़ा ज़िले में हुआ था  और इनकी मृत्यु 17 जुलाई, 1972 को हुआ. इंदुलाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुजरात में प्राप्त की और बाद में इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने लंदन में अपने प्रवास के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेना शुरू किया.

इंदुलाल याज्ञिक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों से प्रभावित थे और उन्होंने गुजरात में कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे, लेकिन बाद में उन्होंने “महागुजरात आंदोलन” का नेतृत्व किया, जो गुजरात राज्य की स्थापना की मांग के लिए एक आंदोलन था.

इंदुलाल याज्ञिक ने वर्ष 1956 में महागुजरात जन परिषद की स्थापना की, जिसने गुजरात के लिए एक अलग राज्य की मांग की. इस आंदोलन के कारण 1 मई 1960 को गुजरात को महाराष्ट्र से अलग एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित किया गया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, इंदुलाल याज्ञिक ने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने लोकसभा के सदस्य के रूप में भी सेवा की. उनकी राजनीतिक सक्रियता और समाज सेवा के लिए उन्हें बहुत सम्मानित किया गया.

इंदुलाल याज्ञिक ने अपने जीवन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया. वे एक प्रेरणादायक नेता और समाज सुधारक थे. उनके योगदान को आज भी गुजरात और भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.

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राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी

सोहन लाल द्विवेदी एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिनका जन्म 22 फरवरी, 1906 को उत्तर प्रदेश के बिंदकी में हुआ था. उनकी कविताएँ देशभक्ति, प्रकृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित होती थीं. उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान मानी जाती हैं.

सोहन लाल द्विवेदी की कविताएँ उनके गहन भावनात्मक अनुभव और सरल भाषा के लिए जानी जाती हैं. उनकी कविता “कदम मिलाकर चलना होगा” बहुत ही प्रसिद्ध है और यह कविता युवाओं को सकारात्मक दिशा में प्रेरित करती है. उनकी अन्य कविताएँ जैसे “पुष्प की अभिलाषा”, “चलना हमारा काम है” आदि भी काफी लोकप्रिय हैं.

द्विवेदी जी की कविताएँ भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान लोगों को उत्साहित और प्रेरित करती रहीं. उनका साहित्यिक काम न केवल साहित्यिक महत्व का है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और समाज के विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उनकी कविताएँ आज भी विभिन्न पाठ्यपुस्तकों और साहित्यिक संकलनों में शामिल की जाती हैं और वे अपनी समृद्ध साहित्यिक विरासत के लिए याद किए जाते हैं. राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी का निधन 01 मार्च 1988 को हुआ था.

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अभिनेता कमल कपूर

कमल कपूर भारतीय सिनेमा में एक प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता थे, जिन्होंने वर्ष 1940 के दशक से लेकर वर्ष 1980 के दशक तक अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया. उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभाईं, जिसमें विलेन, सहायक भूमिकाएं और कभी-कभी मुख्य भूमिकाएं भी शामिल थीं.

कमल कपूर का जन्म 22 फरवरी 1920 को लाहौर, पंजाब में हुआ था. उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत फ़िल्म ‘दूर चलें’ से की थी. कपूर  के गहरे व्यक्तित्व, प्रभावशाली आवाज और अभिनय क्षमता के लिए सराहा गया. उन्होंने कई यादगार फिल्मों में काम किया, जिनमें उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई हैं.

कमल कपूर ने अपनी अदाकारी के जरिए फिल्म इंडस्ट्री में एक खास पहचान बनाई. कमल कपूर का निधन 02 अगस्त 2010 को मुंबई में हुआ था. वे भारतीय सिनेमा के उन महान अभिनेताओं में से एक हैं, जिनकी भूमिकाओं ने फिल्मों को अमर बना दिया.

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निर्देशक सूरज बड़जात्या

सूरज आर. बड़जात्या एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता, और पटकथा लेखक हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा के लिए काम करते हैं. वह राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक हैं, जो एक प्रमुख भारतीय फिल्म निर्माण और वितरण कंपनी है. सूरज बड़जात्या ने अपने कैरियर में कई सफल और यादगार फिल्में बनाई हैं, जिन्होंने भारतीय परिवारों और सामाजिक मूल्यों को बड़े पर्दे पर दर्शाया है.

सूरज बडजात्या का जन्म 22 फरवरी 1964 को मुंबई के एक जैन परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शुरुआती पढाई सेंट मेरी स्कूल मुंबई और सिंधियां स्कूल ग्वालियर से किया. सूरज बडजात्या का विवाह विनीता से हुई. उनके तीन बच्चे हैं.

सूरज बडजात्या ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष  1989 में सुपरहिट फिल्म मेने प्यार किया से किया था. उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “मैंने प्यार किया” (1989), “हम आपके हैं कौन..!” (1994), और “हम साथ-साथ हैं” (1999) शामिल हैं. इन फिल्मों ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों के प्रति अपने गहरे संदेश के लिए भी प्रशंसा पाई. उनकी फिल्मों को उनके गीतों, नृत्य, और विशेष रूप से भारतीय संस्कृति के उत्सव के चित्रण के लिए भी सराहा गया है.

सूरज बड़जात्या की फिल्में अक्सर भारतीय पारिवारिक संरचना, प्रेम, संबंधों और विवाह की परंपराओं पर केंद्रित होती हैं. उनकी फिल्मों में दर्शाए गए पारिवारिक मूल्य और संदेश आमतौर पर व्यापक दर्शकों के साथ गूंजते हैं.

सूरज बड़जात्या ने अपनी फिल्मों के माध्यम से न केवल व्यावसायिक सफलता हासिल की है, बल्कि उन्होंने भारतीय सिनेमा में नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को पुनः प्रस्तुत करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनका काम उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक अत्यंत सम्मानित और प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाता है.

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कवि जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी, जिनका असली नाम शब्बीर हसन खान था, उर्दू साहित्य के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे. उनका जन्म 5 दिसंबर 1898 को भारत के मलीहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. जोश मलीहाबादी को उनकी शायरी में जोश और उत्साह के लिए जाना जाता है, जिससे उन्हें “शायर-ए-इन्कलाब” या “क्रांति का कवि” भी कहा जाता था.

जोश मलीहाबादी की शायरी में रोमांटिकिज्म के साथ-साथ प्रगतिशील विचारधारा की झलक मिलती है. उन्होंने जीवन के विविध पहलुओं पर कविताएँ और गज़लें लिखीं, जिसमें प्रेम, दर्शन, समाजवाद और राष्ट्रीयता शामिल हैं. उनकी कविताओं में एक गहरी भावनात्मक गहराई और विचारों की स्पष्टता है, जो पाठकों और श्रोताओं को गहराई से प्रभावित करती है.

जोश मलीहाबादी ने अपनी आत्मकथा “यादों की बरात” में अपने जीवन के अनुभवों का बेहद रोचक वर्णन किया है. यह कृति उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण और पठनीय पुस्तक मानी जाती है. भारत के विभाजन के बाद, जोश मलीहाबादी ने पाकिस्तान में बसने का निर्णय लिया. वहाँ उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा जारी रखी और उर्दू साहित्य के विकास में अपना योगदान दिया. उनकी मृत्यु 22 फरवरी 1982 को हुई.

जोश मलीहाबादी को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उनकी शायरी और लेखनी आज भी उर्दू साहित्य के छात्रों और प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है.

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कस्तूरबा गाँधी

कस्तूरबा गांधी जिन्हें प्यार से ‘बा’ के नाम से भी जाना जाता है. महात्मा गांधी की पत्नी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख महिला नेता थीं. उनका जन्म 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था. कस्तूरबा की शादी मोहनदास करमचंद गांधी से 1883 में हुई थी, जब वे केवल 13 वर्ष की थीं और मोहनदास भी उसी उम्र के थे.

कस्तूरबा ने गांधीजी के साथ मिलकर सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलते हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने स्वच्छता, शिक्षा और महिला उत्थान के क्षेत्र में भी काम किया। कस्तूरबा ने गांधीजी के सभी आंदोलनों में उनका साथ दिया और खुद भी कई बार जेल गईं. कस्तूरबा की शांति, धैर्य और साहस ने उन्हें न केवल गांधीजी की संगिनी के रूप में, बल्कि एक स्वतंत्र नेता के रूप में भी पहचान दिलाई. वे अपने पति के साथ सत्य और अहिंसा के पथ पर चलीं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया.

कस्तूरबा का निधन 22 फरवरी 1944 को अगा खान पैलेस, पुणे में हुआ, जहाँ वे नजरबंद थीं. उनकी मृत्यु ने गांधीजी को गहरा दुःख पहुँचा, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति को सम्मानित करते हुए अपने कार्य को जारी रखा. कस्तूरबा की विरासत उनके समर्पण, दृढ़ता और साहस के रूप में आज भी जीवित है.

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अबुल कलाम आज़ाद

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता, महान विद्वान, और आधुनिक भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री थे. उनका जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था, लेकिन उनका जीवन और कार्य भारतीय उपमहाद्वीप के स्वतंत्रता आंदोलन और इसके बाद के विकास से गहराई से जुड़ा हुआ था.

आज़ाद एक उत्कृष्ट वक्ता, पत्रकार, और लेखक थे. उन्होंने अपने विचारों को विभिन्न भाषाओं में व्यक्त किया, लेकिन मुख्य रूप से उर्दू में. उनकी लेखनी में ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ (भारत आज़ादी की ओर) जैसी कृतियाँ शामिल हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उनके अनुभवों का वर्णन करती हैं.

आज़ाद ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंदर एक प्रमुख भूमिका निभाई और वर्ष 1940 – 45 तक इसके अध्यक्ष रहे. वे भारतीय राष्ट्रवाद की साम्प्रदायिकता से परे एकता के पक्षधर थे और हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता की वकालत करते रहे. उन्होंने विभाजन के विचार का विरोध किया और एक संयुक्त भारत के लिए संघर्ष किया.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, आज़ाद ने भारत सरकार में शिक्षा मंत्री के रूप में सेवा की और देश की शिक्षा नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने वैज्ञानिक शोध और उच्च शिक्षा पर जोर दिया और भारतीय संस्थानों की स्थापना की नींव रखी, जिनमें इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IITs) और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) शामिल हैं.

मौलाना आज़ाद का निधन 22 फरवरी 1958 को हुआ. उनकी विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में उनके योगदान के रूप में जीवित है. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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