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व्यक्ति विशेष

भाग – 419.

छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के एक महान योद्धा और एक कुशल प्रशासक थे. जिन्होंने 17वीं सदी में मराठा साम्राज्य की स्थापना की. उनका जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था, जो आज के महाराष्ट्र में स्थित है. शिवाजी महाराज का नेतृत्व कौशल, उनकी रणनीति, और उनके प्रशासनिक नवाचारों ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली और सम्मानित नायकों में से एक बना दिया.

शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में विशाल मराठा साम्राज्य की नींव रखी और उसे विस्तार दिया. उन्होंने मुगल साम्राज्य, आदिलशाही, और कुतुबशाही से कई युद्ध लड़े और विजयी हुए. उनकी गुरिल्ला युद्ध की रणनीतियों ने उन्हें अपने दुश्मनों पर बड़े पैमाने पर बढ़त दिलाई.

शिवाजी महाराज ने एक अच्छे प्रशासनिक ढांचे की स्थापना की, जिसमें न्याय, समृद्धि, और जन कल्याण को प्रमुखता दी गई. उन्होंने स्वराज्य की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिसका अर्थ है स्वतंत्र और स्वायत्त शासन. उनकी ये पहल भविष्य के मराठा साम्राज्य के लिए एक मजबूत नींव साबित हुई.

शिवाजी महाराज के शासन में समावेशिता का भी बड़ा महत्व था. उन्होंने विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों को अपने प्रशासन में शामिल किया. उनका देहांत 3 अप्रैल 1680 को हुआ. आज भी, शिवाजी महाराज को एक महान नायक और भारतीय इतिहास के एक ज्वलंत चरित्र के रूप में याद किया जाता है.

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राजकुमारी इंदिरा राजे

राजकुमारी इंदिरा राजे भारतीय राजघराने की एक प्रमुख सदस्य थीं, जिन्होंने बड़ौदा के गायकवाड़ राजवंश और कूच बिहार के राजवंश के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित किया था. उनका जन्म 19 फरवरी 1892 को बड़ौदा राज्य में हुआ था. वो बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ III की बेटी थीं और उनका विवाह कूच बिहार के महाराजा जितेंद्र नारायण से हुआ था. इंदिरा राजे को उनकी सौंदर्य, बुद्धिमत्ता और सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता था.

इंदिरा राजे की शादी से उन्हें कूच बिहार की महारानी का दर्जा प्राप्त हुआ और वे इस क्षेत्र के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में कई पहल कीं. उनकी सामाजिक सेवा और परोपकारी कार्यों ने उन्हें जनता के बीच एक प्रिय व्यक्तित्व बना दिया.

राजकुमारी इंदिरा राजे की सबसे उल्लेखनीय संतान उनकी बेटी, महारानी गायत्री देवी थीं, जो जयपुर की महारानी बनीं और विश्वभर में अपनी सौंदर्य, शैली और सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हुईं. गायत्री देवी ने भारतीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे एक सम्मानित राजनीतिज्ञ के रूप में उभरीं.

राजकुमारी इंदिरा राजे का जीवन और कार्य भारतीय राजघरानों के इतिहास में एक रोचक अध्याय का निर्माण करते हैं, जिसमें उनकी विरासत आज भी उनके परिवार और उनके द्वारा सेवा किए गए समुदायों में जीवित है. राजकुमारी इंदिरा राजे का निधन 06सितंबर 1968 को हुआ था.

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क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट

गोकुलभाई भट्ट राजस्थान के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे. उन्हें विशेष रूप से राजस्थान के गांधी के रूप में जाना जाता है. वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रसिद्ध थे.

गोकुलभाई भट्ट का जन्म 16 फरवरी 1898 को  सिरोही, राजस्थान में हुआ था और उनकी मृत्यु 6 फरवरी 1977 को हुई. वे महात्मा गांधी से प्रभावित थे और असहयोग आंदोलन तथा भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे. उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए.

राजस्थान को एकीकृत करने और सिरोही को राजस्थान का हिस्सा बनाने में गोकुलभाई भट्ट की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.  उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना में योगदान दिया और शिक्षा को आम जनता तक पहुँचाने का प्रयास किया साथ ही महिलाओं की शिक्षा और दलित उत्थान के प्रबल समर्थक थे.

गोकुलभाई भट्ट आजीवन सादगी और अहिंसा के मार्ग पर चले. उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से समाज में सुधार लाने का निरंतर प्रयास किया. गोकुलभाई भट्ट को  “राजस्थान के गांधी” की भी उपाधि दी गई थी. गोकुलभाई भट्ट के योगदान को याद करने के लिए राजस्थान सरकार ने कई योजनाएँ और संस्थाएँ उनके नाम पर स्थापित की हैं.

गोकुलभाई भट्ट का जीवन प्रेरणादायक था, और वे आज भी राजस्थान के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद किए जाते हैं.

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भूतपूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह

बेअंत सिंह भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्व थे, जो पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर चुके हैं. उनका जन्म 19 फरवरी 1922 को हुआ था और उनकी मृत्यु 31 अगस्त 1995 को एक आतंकवादी हमले में हो गई थी. बेअंत सिंह का कार्यकाल वर्ष 1992-95 तक रहा, जिस दौरान पंजाब में उग्रवाद की समस्या से निपटने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.

बेअंत सिंह के नेतृत्व में पंजाब सरकार ने उग्रवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाए, जिससे राज्य में शांति और स्थिरता की स्थापना में मदद मिली. उनकी नीतियों और कार्यों ने पंजाब में उग्रवाद को काफी हद तक कम करने में योगदान दिया, लेकिन इस प्रक्रिया में कई विवाद भी उत्पन्न हुए. उनके शासनकाल को कई बार मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा.

बेअंत सिंह की मृत्यु चंडीगढ़ में एक आत्मघाती बम विस्फोट में हुई, जिसमें उनके साथ कई अन्य लोग भी मारे गए. उनकी मृत्यु ने पंजाब और पूरे भारत में शोक की लहर दौड़ा दी. उनकी मृत्यु के बाद, पंजाब में उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रही, और धीरे-धीरे राज्य ने शांति की ओर कदम बढ़ाया.

बेअंत सिंह का जीवन और उनकी मृत्यु पंजाब के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय के रूप में याद की जाती है, जिसने राज्य में उग्रवाद के खिलाफ संघर्ष के दौरान शांति और स्थिरता की दिशा में उनके योगदान को पहचाना.

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अभिनेत्री सोनू वालिया

सोनू वालिया एक भारतीय अभिनेत्री और पूर्व मिस इंडिया हैं, जिन्हें मुख्य रूप से वर्ष 1980 – 90 के दशक की बॉलीवुड फिल्मों में उनके अभिनय के लिए जाना जाता है. वह अपनी खूबसूरती, बोल्ड अंदाज और दमदार अभिनय के लिए मशहूर रही हैं.

सोनू वालिया का जन्म 19 फरवरी 1964 को  नई दिल्ली में हुआ था. उनका वास्तविक नाम संध्या वालिया है. सोनू वालिया ने मिस इंडिया का ताज वर्ष 1985 में जीता, उसके बाद मॉडलिंग से फिल्मी दुनिया में कदम रखा. सोनू वालिया ने फिल्म शर्त से बॉलीवुड में डेब्यू किया. लेकिन, उन्हें प्रसिद्धि मिली वर्ष 1988 की सुपरहिट फिल्म “खून भरी मांग” से, जिसमें उन्होंने रेखा और कबीर बेदी के साथ अभिनय किया था.

फिल्में: – 

तहलका (1992),

दिल आशना है (1992),

वीराना (1988) – एक हॉरर फिल्म, जिससे उन्हें काफी पहचान मिली,

आप मान गए जनाब (1991).

सोनू वालिया ने टीवी शो “बेताल पच्चीसी” में भी अभिनय किया, जिससे वे छोटे पर्दे पर लोकप्रिय हुईं.

सोनू वालिया ने अमेरिकी बिजनेसमैन प्रसन्ना बिजनेसरिया से शादी की और फिल्मों से दूर हो गईं. वो  अब ग्लैमर वर्ल्ड से दूर रहती हैं और पब्लिक इवेंट्स में कभी-कभी नजर आती हैं. सोनू वालिया पनी ग्लैमरस छवि और दमदार परफॉर्मेंस के कारण आज भी सिनेप्रेमियों के बीच चर्चित हैं.

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अभिनेत्री पूजा बिष्ट

पूजा बिष्ट एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने टेलीविजन और बॉलीवुड फिल्मों में काम किया है. वह अपने ग्लैमरस लुक और स्टाइलिश पर्सनालिटी के लिए जानी जाती हैं.

पूजा बिष्ट का जन्म 19 फरवरी 1984 को कोटद्वार, उत्तराखंड में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से  ग्रेजुएशन किया है. पूजा बिष्ट ने “फेमिना मिस इंडिया 2008” में भाग लिया और टॉप फाइनलिस्ट में रहीं. उन्होंने 2011 में MTV Splits villa 4 में हिस्सा लिया, जिससे उन्हें लोकप्रियता मिली. उन्होंने कई विज्ञापनों और ब्रांड एंडोर्समेंट में काम किया.

पूजा बिष्ट ने बॉलीवुड में वर्ष 2018 में हॉरर फिल्म “मलिक एक” से डेब्यू किया और उन्हें 2018 की फिल्म “टिक टॉक” और “माय फ्रेंड गनेशा 4” में भी देखा गया. उन्होंने कुछ म्यूजिक वीडियो और वेब सीरीज में भी काम किया है.

पूजा बिष्ट को फिटनेस और एडवेंचर स्पोर्ट्स पसंद हैं.वह एक फैशन आइकॉन मानी जाती हैं और अपने ग्लैमरस फोटोशूट के लिए मशहूर हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले

गोपाल कृष्ण गोखले एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे. उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रीय जागरूकता बढ़ाने और सुधारों की पैरवी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और उनकी उदारवादी राजनीति के कारण उन्हें पार्टी के “मध्यमार्गी” खेमे का हिस्सा माना जाता था.

गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 को  रत्‍‌नागिरी कोटलुक ग्राम में एक सामान्य परिवार में हुआ था. पिता के असामयिक निधन ने गोपालकृष्ण को बचपन से ही सहिष्णु और कर्मठ बना दिया था. गोखले का मानना था कि सामाजिक सुधार और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके अपनाए जाएं. उन्होंने वर्ष 1905 में सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की, ताकि युवा भारतीयों को राष्ट्रसेवा के लिए प्रशिक्षित किया जा सके. उन्होंने महात्मा गांधी को भी बहुत प्रभावित किया, और गांधी ने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना.

गोखले का भारतीय राजनीति में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए वैचारिक नींव रखी, जो बाद में गांधी और अन्य नेताओं द्वारा आगे बढ़ाई गई. गोपाल कृष्ण गोखले का निधन 19 फ़रवरी 1915 को हुआ था.

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नरेन्द्र देव

आचार्य नरेन्द्र देव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. वे एक विद्वान, शिक्षाविद्, और राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने समाजवादी विचारधारा को भारतीय संदर्भ में अपनाने और उसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

नरेन्द्र देव का जन्म 30 अक्टूबर 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था. उन्होंने विधि और इतिहास में शिक्षा प्राप्त की और बाद में अपना जीवन भारतीय राजनीति और समाजवादी आंदोलन को समर्पित कर दिया. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे और उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

नरेन्द्र देव ने भारतीय समाज में शिक्षा, समानता, और समाजवादी सिद्धांतों के प्रसार के लिए काम किया. वे शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय थे और उन्होंने काशी विद्यापीठ और लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन किया. उनका मानना था कि शिक्षा समाज में बदलाव ला सकती है और वे इसे एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखते थे.

आचार्य नरेन्द्र देव ने अपने जीवन काल में अनेक लेख और पुस्तकें लिखीं, जिसमें उन्होंने भारतीय समाजवाद, राजनीति, इतिहास, और सांस्कृतिक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए. उनका निधन 19 फरवरी 1956 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय समाजवादी आंदोलन और शिक्षा क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत हैं.

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संगीतकार पंकज मलिक

पंकज मलिक, जिन्हें अक्सर पंकज मुल्लिक के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संगीत के उन चुनिंदा संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने 20वीं सदी के पहले आधे भाग में भारतीय सिनेमा और संगीत को नई दिशा प्रदान की. उनका जन्म 10 मई 1905 को हुआ था और उनका निधन 19 फरवरी 1978 को हुआ. पंकज मलिक ने अपने संगीत कैरियर के दौरान अनेक यादगार गीतों और धुनों की रचना की, जो आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.

पंकज मलिक ने अपने संगीत में शास्त्रीय संगीत की गहराई को बरकरार रखते हुए आधुनिकता का स्पर्श जोड़ा. वे उन पहले संगीतकारों में से थे जिन्होंने भारतीय फिल्मों में पाश्चात्य संगीत के तत्वों को सफलतापूर्वक शामिल किया. उनकी संगीत शैली में नवीनता और पारंपरिकता का एक अद्वितीय मिश्रण था, जिसने उन्हें उस समय के अन्य संगीतकारों से अलग किया.

पंकज मलिक ने रवीन्द्र संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और रवींद्रनाथ टैगोर के साथ निकटता से काम किया. उन्होंने अनेक रवीन्द्र संगीत गाये और उन्हें अपनी अनूठी शैली में पेश किया. फिल्म संगीत के अलावा, पंकज मलिक ने रेडियो पर भी काम किया और उनके द्वारा रचित और प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय हुए. उनकी आवाज और संगीत शैली ने उन्हें उस समय के सबसे प्रशंसित संगीतकारों में से एक बना दिया.

पंकज मलिक की विरासत उनके गीतों, धुनों और संगीतमय प्रस्तुतियों के माध्यम से आज भी जीवित है, जो संगीत के प्रति उनके अनूठे दृष्टिकोण और योगदान को दर्शाती है.

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अभिनेता निर्मल पांडे

निर्मल पांडे एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने वर्ष 1990 के दशक में भारतीय सिनेमा में अपनी अनूठी अभिनय शैली और चुनिंदा भूमिकाओं के लिए पहचान बनाई. उनका जन्म 10 अगस्त 1962 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था. निर्मल पांडे को उनके विविध चरित्रों और शक्तिशाली प्रदर्शनों के लिए जाना जाता था.

निर्मल पांडे ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत थिएटर से की थी और बाद में फिल्मों में अपना नाम बनाया. उन्होंने अपनी फिल्मी यात्रा की शुरुआत 1996 में आई फिल्म “बैंडिट क्वीन” से की, जिसमें उन्होंने विक्रम मल्लाह का किरदार निभाया. इस फिल्म ने उन्हें काफी पहचान दिलाई और उनके अभिनय कौशल की सराहना की गई.

निर्मल पांडे की अन्य प्रमुख फिल्मों में “इस रात की सुबह नहीं” (1996), “दायरा” (1996), “गॉडमदर” (1999), और “प्यार की धुन” (2002) शामिल हैं. उन्होंने अपनी फिल्मों में विविध भूमिकाएं निभाईं, जिसमें वे अक्सर जटिल और गहरे चरित्रों को चित्रित करते थे. निर्मल पांडे की अभिनय क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना गया था. उन्होंने फ्रांसीसी फिल्म “लेस बांडीट्स” में भी अभिनय किया था. उनकी अद्वितीय अभिनय शैली और समर्पण ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशेष स्थान दिलाया.

दुर्भाग्यवश, निर्मल पांडे का निधन एक छोटी उम्र में ही 18 फरवरी 2010 को हार्ट अटैक के कारण हो गया. उनका असामयिक निधन भारतीय सिनेमा जगत के लिए एक बड़ी क्षति थी. उनके निधन के बावजूद, निर्मल पांडे का काम और उनकी फिल्में उन्हें एक यादगार और प्रशंसित अभिनेता के रूप में जीवित रखती हैं.

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नामवर सिंह

नामवर सिंह भारतीय साहित्यिक जगत में एक प्रमुख आलोचक और विचारक के रूप में जाने जाते हैं. उनका जन्म 28 जुलाई, 1926 को वाराणसी के निकट जीयनपुर में हुआ था. नामवर सिंह का निधन 19 फरवरी, 2019 को हुआ. उन्होंने हिंदी साहित्यिक आलोचना में नई दिशाएँ और परिप्रेक्ष्य प्रदान किए.

नामवर सिंह ने विशेष रूप से हिंदी आलोचना के क्षेत्र में अपना एक अद्वितीय स्थान बनाया. उनकी आलोचना शैली में गहनता और विस्तार होता था, जिसमें वे साहित्य के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करते थे. उनके विचार और आलोचना ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया.

नामवर सिंह की प्रमुख कृतियों में ‘कविता के नए प्रतिमान’, ‘दूसरी परंपरा की खोज’, ‘छायावाद’, ‘इतिहास और आलोचना’, और ‘वाद, विवाद, संवाद’ शामिल हैं. इन कृतियों में उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न युगों और धाराओं का गहन अध्ययन और विश्लेषण प्रस्तुत किया.

नामवर सिंह ने अपने जीवनकाल में अनेक सेमिनारों, व्याख्यानों और विद्वत सभाओं में भाग लिया और युवा लेखकों और आलोचकों को प्रेरित और मार्गदर्शन किया. उनका व्यक्तित्व और कार्य हिंदी साहित्य के छात्रों, शोधकर्ताओं और प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ और प्रेरणा स्रोत बना हुआ है.

नामवर सिंह के योगदान को हिंदी साहित्यिक जगत में व्यापक रूप से सराहा गया है, और उन्हें आधुनिक हिंदी आलोचना के सबसे प्रभावशाली आलोचकों में से एक माना जाता है.

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