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व्यक्ति विशेष

भाग – 415.

इतिहासकार राधा कृष्ण चौधरी

राधा कृष्ण चौधरी एक भारतीय इतिहासकार, विचारक, और साहित्यकार थे. उनका जन्म 15 फ़रवरी, 1921 को हुआ था और उनका निधन 15 मार्च, 1985 को हुआ था​​​​. वे बिहार के इतिहास और पुरातत्व पर कई महत्वपूर्ण शोध कार्य करने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने मैथिली साहित्य में भी बहुत योगदान दिया था. उन्होंने बिहार के गणेश दत्त कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में काम किया और उन्हें एक प्रख्यात शिक्षाविद के रूप में भी पहचाना जाता था. उनकी पसंद की भाषाएँ हिंदी और अंग्रेज़ी थीं, लेकिन उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों के लिए मैथिली का भी अत्यधिक प्रयोग किया​​​​.

उनकी प्रमुख रचनाओं में “Political History of Japan (1868–1947)”, “Maithili SahityikNibandhavali”, “Studies in Ancient Indian Law”, “Bihar – The Homeland of Buddhism”, और “History of Bihar” शामिल हैं. उन्होंने मिथिला के इतिहास पर भी कई महत्वपूर्ण शोध कार्य किए थे​​.

राधा कृष्ण चौधरी का योगदान भारतीय इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, खासकर बिहार और मिथिला के संदर्भ में. उनके कार्य ने इन क्षेत्रों के इतिहास और साहित्य की समझ में बहुत योगदान दिया है.

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कवि नरेश मेहता

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के यशस्वी कवि नरेश मेहता उन विशिष्ट कवियों में हैं, जिन्होंने आधुनिक कविता को नयी व्यंजना के साथ नया आयाम दिया. रागात्मकता, संवेदना और उदात्तता उनकी सर्जना के मूल तत्त्व है, जो उन्हें प्रकृति और समूची सृष्टि के प्रति पर्युत्सुक बनाते हैं. आर्ष परम्परा और साहित्य को नरेश मेहता के काव्य में नयी दृष्टि मिली.  वे ‘दूसरा सप्तक’ के प्रमुख कवि हैं.

नरेश मेहता का जन्म 15 फ़रवरी 1922 को मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के शाजापुर कस्बे में हुआ था. उनका मूल नाम पूर्णशंकर था. नरसिंहगढ़ की राजमाता ने एक काव्य-सभा में उनके काव्य-पाठ पर प्रसन्न हो उन्हें ‘नरेश’ की उपाधि दी थी.

नरेश मेहता ने बनारस विश्वविद्यालय से एम ए किया. आपने आल इण्डिया रेडियो इलाहाबाद में कार्यक्रम अधिकारी के रूप में कार्य किया.

प्रमुख कृतियाँ:  –

कविता संग्रह: –  ‘समय देवता’, ‘मौनाग्नि’, ‘एकान्त’, ‘बोलती आग’, ‘अरण्य’, ‘उत्सव’, ‘संशय की एक रात’ आदि.

उपन्यास: –          ‘यह पथ बंधु था’, ‘अंधेरे का सूरज’, ‘डूबते मस्तूल’, ‘प्रथम फाल्गुन’ आदि.

कहानी संग्रह: –     ‘कथा अनकही’, ‘छोड़ो कल की बात’ आदि.

आलोचना: –          ‘आधुनिक हिन्दी कविता में संवेदना का स्वरूप’.

नरेश मेहता को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है.

नरेश मेहता का हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है. वे अपनी कविताओं और उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं. उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति और मूल्यों का गहरा प्रभाव दिखाई देता है. नरेश मेहता का निधन  22 नवंबर 2000 को हुआ था.

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साहित्यकार राधावल्लभ त्रिपाठी

आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत और हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, कवि, नाटककार, आलोचक और संपादक हैं.  उनका जन्म 15 फरवरी 1949 को मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में हुआ था. उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है. उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में अध्यापन किया है और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली के कुलपति रहे हैं. आचार्य त्रिपाठी ने संस्कृत और हिंदी में कई पुस्तकें लिखें है. उनमें से प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं: –

संस्कृत रचनाएँ: ‘संधानम्’ (कविता-संग्रह), ‘वैदिक-निघण्टु-कोश’ (भाषा-कोश), ‘काव्यशास्त्र’ (आलोचना)

हिंदी रचनाएँ: ‘अपनी बात’ (आत्मकथा), ‘अंतराल’ (उपन्यास), ‘समय का पहिया’ (कहानी-संग्रह).

आचार्य त्रिपाठी को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं:   –  साहित्य अकादमी पुरस्कार (1994),  शंकर पुरस्कार,   मीरा पुरस्कार.

आचार्य त्रिपाठी की रचनाओं में भारतीय संस्कृति, परंपरा और मूल्यों का गहरा प्रभाव दिखाई देता है. वे संस्कृत भाषा को आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिक बनाने के लिए प्रयासरत हैं. उनकी भाषा सरल, सहज और प्रभावपूर्ण होती है. आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी हिंदी और संस्कृत साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया है.

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अभिनेता रणधीर कपूर

रणधीर कपूर भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, और निर्देशक हैं, जो हिंदी फिल्म जगत के प्रतिष्ठित कपूर परिवार से संबंधित हैं. रणधीर कपूर का जन्म 15 फरवरी, 1947 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता का नाम राज कपूर और माँ का नाम कृष्णा कपूर था. रणधीर कपूर, पृथ्वीराज कपूर के पोते हैं. उनके दो भाई हैं, ऋषि कपूर और राजीव कपूर. उनकी दो बहने हैं, ऋतु नंदा और रीमा जैन.

रणधीर कपूर ने अपनी शुरुआती पढ़ाई देहरादून के कर्नल ब्राउन स्कूल से की. उसके बाद उन्होंने मुंबई के कैंपियन स्कूल और फिर सेंट जेवियर्स हाई स्कूल से पढ़ाई की. रणधीर कपूर ने वर्ष 1955 में आई फिल्म ‘श्री 420’ में बतौर बाल कलाकार काम किया था जिसमें उन्होंने अपने पिता राज कपूर और दादा पृथ्वीराज कपूर के साथ अभिनय किया.

वर्ष 1971 में फिल्म “कल आज और कल” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उनके साथ उनकी पत्नी बबीता ने भी काम किया था. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी. वर्ष 1970 के दशक में रणधीर कपूर ने कई सफल फिल्मों में काम किया. उन्होंने अभिनेता के साथ-साथ कुछ फिल्मों का निर्देशन और निर्माण भी किया. वर्ष 1991 में आई फिल्म ‘हिना’ का निर्देशन रणधीर कपूर ने ही किया था. इस फिल्म में उनके भाई ऋषि कपूर मुख्य भूमिका में थे.

फिल्में:  –  कल आज और कल (1971),  जीत (1972),  जवानी दीवानी (1972),  हाथ की सफाई (1975),  भंवर (1976),   कसमे वादे (1978),  हरजाई (1981),  तेरी कसम (1982),   हिना (1991).

फिल्म ‘हाथ की सफाई’ के लिए रणधीर कपूर को 1976 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

रणधीर कपूर ने अभिनेत्री बबीता से वर्ष 1971 में शादी की. उनकी दो बेटियां हैं, करिश्मा कपूर और करीना कपूर. दोनों ही बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्रियां हैं.

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आवाज कलाकार, लेखक, और प्रस्तोता हरीश भिमानी

हरीश भिमानी एक भारतीय आवाज कलाकार, लेखक, और प्रस्तोता हैं, जिन्हें उनकी अद्वितीय आवाज और महाभारत धारावाहिक में ‘समय’ की भूमिका के लिए जाना जाता है.

हरीश भिमानी का जन्म 15 फरवरी 1956 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपनी आवाज के दम पर एक खास पहचान बनाई है. उनकी आवाज को ‘जादुई आवाज’ भी कहा जाता है. उन्होंने 22 हजार से ज्यादा रिकॉर्डिंग की हैं. वर्ष 1980 के दशक के बाद से इन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों और समारोहों की मेजबानी के अलावा कई वृत्तचित्रों, कॉरपोरेट फिल्मों, फीचर फिल्मों, टीवी और रेडियो विज्ञापनों, खेल, संगीत एलबम में अपनी आवाज दी है.

बी.आर. चोपड़ा के प्रसिद्ध धारावाहिक ‘महाभारत’ में हरीश भिमानी ने ‘समय’ की आवाज दी थी. उनकी आवाज ने इस किरदार को अमर बना दिया. “मैं समय हूं…” यह वाक्य आज भी लोगों के कानों में गूंजता है. हरीश भिमानी ने कई टीवी धारावाहिकों में भी अपनी आवाज दी है, जिनमें ‘खानदान’, ‘सुबह’, ‘इनकार’, ‘सुकन्या’, और ‘ग्रहण’ शामिल हैं. उन्होंने कई वृत्तचित्रों और कॉर्पोरेट फिल्मों का भी निर्माण किया है.

हरीश भिमानी को उनकी कला के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. वर्ष 2016 में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. हरीश भिमानी की आवाज में एक खास तरह का ठहराव और गंभीरता है, जो सुनने वालों को बांधे रखती है. उनकी आवाज में एक अद्भुत आकर्षण है, जो हर तरह के किरदार को जीवंत कर देती है. हरीश भिमानी एक अद्वितीय कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी आवाज के दम पर एक अलग पहचान बनाई है.

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अभिनेत्री मीरा जेसमिन

मीरा जैस्मीन एक लोकप्रिय दक्षिण भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने मलयालम, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में काम किया है. उन्होंने अपने अभिनय कौशल और सुंदरता से दर्शकों का दिल जीता है. मीरा जैस्मीन का जन्म 15 फरवरी 1982 को केरल के तिरुवल्ला में हुआ था. उनका असली नाम जैस्मीन मेरी जोसेफ है. उनके पिता का नाम जोसेफ और माता का नाम अलेयम्मा है. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा तिरुवल्ला में पूरी की और बाद में प्राणीशास्त्र में बीएससी की डिग्री हासिल की.

मीरा जैस्मीन ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2001 में मलयालम फिल्म “सूथराधरन” से की. उनकी पहली ही फिल्म हिट रही और उन्हें पहचान मिली. उन्होंने इसके बाद कई सफल मलयालम फिल्मों में काम किया, जिनमें “कस्तूरीमान”, “स्वप्नक्कूडु”, “अचुविंटे अम्मा” और “ओरे कदल” शामिल हैं. उन्होंने तमिल सिनेमा में भी अपनी पहचान बनाई. उनकी पहली तमिल फिल्म “रन” थी, जो बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट रही. उन्होंने “अंजनेया”, “संडाकोझी”, “परत्तई एन्गिरा  सुंदरम” और “विनायथु यात्रा” जैसी कई सफल तमिल फिल्मों में काम किया. मीरा जैस्मीन ने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने “अम्मयी बागुंडी”, “गुदुंबा शंकर” (तेलुगु) और “मौर्या” (कन्नड़) जैसी फिल्मों में अभिनय किया.

मीरा जैस्मीन को उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उन्हें 2004 में फिल्म “अचुविंटे अम्मा” के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. इसके अलावा, उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार, केरल राज्य फिल्म पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कार भी मिले हैं.

मीरा जैस्मीन अपने कैरियर के दौरान कुछ विवादों में भी रहीं. वर्ष 2008 में, उन्होंने एक तमिल फिल्म के निर्माता पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इसके अलावा, उनकी कुछ फिल्मों में उनके बोल्ड दृश्यों को लेकर भी विवाद हुआ था. मीरा जैस्मीन ने वर्ष 2014 में अनिल जॉन टाइटस से शादी की. उनके दो बच्चे हैं. मीरा जैस्मीन एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने दक्षिण भारतीय सिनेमा में अपनी एक खास पहचान बनाई है.

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शायर मिर्ज़ा ग़ालिब

मिर्ज़ा ग़ालिब, जिनका पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान था, 19वीं सदी के महान उर्दू और फारसी के शायर थे. उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था और उनका निधन 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में हुआ. ग़ालिब को उनकी गहराई से भरी हुई शायरी और जीवन के प्रति उनकी अनूठी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है. उनकी रचनाएँ आज भी उर्दू साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी और सराही जाने वाली कृतियों में से एक हैं.

ग़ालिब की शायरी में जीवन, प्रेम, उदासी, और दर्शन के विभिन्न पहलुओं का बहुत सूक्ष्मता और गहराई से चित्रण किया गया है. उन्होंने घजल की विधा में अपने अनूठे योगदान के लिए विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की. ग़ालिब की शायरी में जीवन की विडम्बनाओं और मानवीय भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया गया है.

उनके काम में एक अद्वितीय शैली और गहराई है, जो उन्हें उनके समकालीनों से अलग करती है. ग़ालिब की शायरी ने न केवल उर्दू शायरी की परंपरा को आकार दिया, बल्कि फारसी शायरी पर भी अपना एक महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा. उनकी रचनाओं में उनके व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों, दार्शनिक विचारों, और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की झलक मिलती है.

ग़ालिब का योगदान उर्दू साहित्य में इतना महत्वपूर्ण है कि उन्हें आज भी उर्दू शायरी के सबसे महान शायरों में से एक माना जाता है. उनकी रचनाएँ आज भी विभिन्न मंचों पर पढ़ी और सुनाई जाती हैं, और उनकी शायरी के अनुवाद दुनिया भर की कई भाषाओं में किए गए हैं.

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कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी साहित्य की कवयित्री और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं. उनका जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था. वे विशेष रूप से अपनी वीर रस से ओतप्रोत कविता “झांसी की रानी” के लिए जानी जाती हैं, जिसमें उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और संघर्ष को शब्दों में पिरोया है.

सुभद्रा कुमारी चौहान की लेखनी में देशप्रेम, सामाजिक समस्याओं और महिलाओं की स्थिति का विशेष उल्लेख मिलता है. उनके साहित्यिक कार्यों में कविताओं के साथ-साथ कहानियाँ भी शामिल हैं. उनकी प्रमुख कविताओं में “वीरों का कैसा हो बसंत”, “खूब लड़ी मर्दानी”, और “झांसी की रानी” शामिल हैं.

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार जेल भी गईं. 15 फरवरी 1948 को एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया. उनका साहित्य आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है और उन्हें हिंदी साहित्य की अमर कवयित्रियों में गिना जाता है.

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बड़ौदा की महारानी सीता देवी

 सीता देवी, जिन्हें बड़ौदा की महारानी के नाम से भी जाना जाता है, वास्तव में भारतीय राजघरानों में एक बहुत ही चर्चित व्यक्तित्व थीं। उनका जन्म 12 मई 1917 में हुआ और उनका निधन 15  फ़रवरी 1989 में हुआ था. उन्होंने गायकवाड़ वंश के प्रमुख महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़ से विवाह किया था. सीता देवी को उनकी शानदार जीवनशैली, उनके फैशन सेंस और उनके उच्च सामाजिक जीवन के लिए जाना जाता था.

वह अपने लक्ज़री सामानों के कलेक्शन, विशेष रूप से ज्वैलरी और साड़ियों के लिए प्रसिद्ध थीं. उन्हें दुनिया भर के फैशन पत्रिकाओं में अक्सर देखा गया और वे अंतरराष्ट्रीय सामाजिक घटनाओं में एक प्रमुख चेहरा थीं. सीता देवी का जीवन भारतीय राजकुमारियों की पारंपरिक छवि से काफी अलग था, जिसने उन्हें अन्य राजघरानों से विशिष्ट बनाया.

उनकी जीवनी और कहानी आज भी लोगों को आकर्षित करती है और भारतीय राजशाही के इतिहास में उनका एक विशेष स्थान है.

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मूर्तिकार मृणालिनी मुखर्जी

मृणालिनी मुखर्जी एक भारतीय मूर्तिकार थीं, जिन्होंने अपने अद्वितीय और अभिनव मूर्तिकला शैली के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की थी. उनका जन्म 1949 में हुआ था और उनका निधन 15 फ़रवरी 2015 को नई दिल्ली में हुआ था. मृणालिनी मुखर्जी के कार्यों में विशेषतः फाइबर के साथ प्रयोगात्मक काम शामिल हैं. उन्होंने विभिन्न प्रकार के माध्यमों का उपयोग किया, लेकिन उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ बुने हुए जूट और बांस के फाइबर से बनी थीं.

मृणालिनी की कला में प्राकृतिक रूपों और आकृतियों की गहन अभिव्यक्ति देखने को मिलती है, जिसमें पौधों, फूलों, और जानवरों के रूपांकनों के माध्यम से एक अद्वितीय सौंदर्यशास्त्र प्रस्तुत किया गया है. उनकी मूर्तियाँ अक्सर जीवन और प्रकृति के साथ उनकी गहरी सहानुभूति और संवाद को दर्शाती हैं.

मृणालिनी मुखर्जी ने अपनी शिक्षा बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने कला में डिग्री हासिल की. उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई प्रदर्शनियों में अपने काम को प्रदर्शित किया. उनकी कलाकृतियाँ विभिन्न संग्रहालयों और निजी संग्रहों में संरक्षित हैं. मृणालिनी मुखर्जी के काम ने उन्हें कला और मूर्तिकला के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान दिलाया है.

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पार्श्वगायिका संध्या मुखर्जी

संध्या मुखर्जी जिन्हें संध्या मुखोपाध्याय के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रख्यात भारतीय पार्श्वगायिका थीं, जिनका योगदान मुख्य रूप से बंगाली और हिंदी संगीत जगत में रहा. वे शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित थीं और अपने अनूठे और मधुर गायन के लिए जानी जाती थीं. उनका कैरियर लगभग छह दशकों तक चला, और उन्होंने अपनी गायकी से बंगाली संगीत को समृद्ध किया.

संध्या मुखर्जी का जन्म 4 अक्टूबर 1931 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. वे बचपन से ही संगीत की ओर आकर्षित थीं और उन्होंने पंडित चिन्मय लाहिरी और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान जैसे शास्त्रीय संगीत गुरुओं से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. शास्त्रीय संगीत में उनकी गहरी पकड़ ने उनके गायन में एक विशिष्टता प्रदान की, जिसे बाद में उन्होंने फिल्मी और गैर-फिल्मी गीतों में प्रस्तुत किया.

संध्या मुखर्जी ने अपने कैरियर की शुरुआत हिंदी सिनेमा में की और 1948 में मुंबई में संगीतकारों के साथ काम किया. उन्होंने उस दौर के कई प्रमुख संगीतकारों जैसे अनिल बिस्वास, सलील चौधरी और मदन मोहन के साथ काम किया. हालांकि, हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन में मिली सफलता के बावजूद उन्होंने अपनी प्राथमिकता बंगाली संगीत को दी और कोलकाता वापस लौट आईं.

बंगाली सिनेमा और संगीत जगत में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है. उन्होंने बंगाली फिल्मों में कई सदाबहार गाने गाए, जिनमें से उनके गाए हुए “इच्छे नयन”, “आमी कैमन करे”, और “ओ मायलनिर चोलोन” जैसे गीत आज भी लोकप्रिय हैं. उनकी आवाज़ में सादगी और गहराई थी, जो श्रोताओं को बहुत प्रिय लगी. संध्या मुखर्जी ने रवींद्र संगीत (रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीत) को भी बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया. उनका रवींद्र संगीत गायन आज भी बंगाली संगीत प्रेमियों के बीच अत्यधिक सम्मानित है. इसके अलावा, उन्होंने आधुनिक गीतों और अन्य प्रकार के संगीत शैलियों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया.

संध्या मुखर्जी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें 1970 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायिका) से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, उन्होंने बंगाल की सर्वोच्च नागरिक सम्मान “बंगा विभूषण” और कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार भी प्राप्त किए. वर्ष  2022 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया, लेकिन उन्होंने इसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया.

संध्या मुखर्जी का 15 फरवरी 2022 को 90 वर्ष की आयु में निधन हुआ था. उनकी मृत्यु ने संगीत जगत में एक बड़ा खालीपन छोड़ दिया. उन्हें एक ऐसी कलाकार के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने गायन के जरिए बंगाली और भारतीय संगीत को समृद्ध किया और श्रोताओं के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी.

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अभिनेत्री मनोरमा

मनोरमा एक प्रमुख भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपनी अद्भुत अभिनय कला के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की थी. वह भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख नाम मानी जाती थीं, और उनके अभिनय कौशल को सराहा जाता था. मनोरमा के अभिनय में व्यापक विविधता और मजबूती थी, और उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में अपनी अद्वितीय योगदान दिया.

मनोरमा का जन्म 16 अगस्त 1926 को लाहौर, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उनका असली नाम एरिन इसाक डेनियल था. उनके पिता एक भारतीय ईसाई थे और माँ आयरिश थीं. मनोरमा ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1936 में एक बाल कलाकार के रूप में की थी. उनकी पहली फिल्म ‘दुर्गा ख्वाजा’ थी. वर्ष 1940 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री के रूप में काम किया.

मनोरमा ने अपने कैरियर के दौरान बहुत सारी फिल्मों में काम किया, जिसमें कई चर्चित फिल्में शामिल हैं. उनके अभिनय की अद्वितीयता और संवेदनशीलता ने उन्हें दर्शकों के दिलों में बनाए रखा. वह एक समर्थ अभिनेत्री थीं जो विभिन्न जीवनी, नाटक, और सामाजिक संदेशों को अपने अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत करने में सक्षम थीं.

फिल्में : – फैशनेबल वाइफ, परिनीता, झनक झनक पायल बाजे, शारदा, भाभी, पंचायत, रूप की रानी चोरों का राजा, हाफ टिकट, दिल ही तो है, राजकुमार, नींद हमारी ख़्वाब तुम्हारे, दो कलियाँ, मस्ताना, कारवाँ, मेहबूब की मेहन्दी, सीता और गीता, बनारसी बाबू, अदालत, दो मुसाफ़िर, लावारिस, मैं आवारा हूँ  और वाटर आदि.

मनोरमा को वर्ष 1960 – 70 के दशक में काफी लोकप्रियता मिली. उन्होंने ‘सीता और गीता’, ‘एक फूल दो माली’, ‘दो कलियाँ’, ‘कारवां’ जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया. उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में नकारात्मक या हास्य भूमिकाएँ निभाईं, लेकिन उन्होंने अपनी अदाकारी से हर किरदार को जीवंत कर दिया.

मनोरमा ने हिंदी फिल्मों के अलावा तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम फिल्मों में भी काम किया. उन्होंने इन फिल्मों में भी अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया. मनोरमा को उनकी अदाकारी के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें वर्ष 2006 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.

मनोरमा का निधन 15 फरवरी 2008 को मुंबई में हुआ था. मनोरमा का अद्भुत अभिनय कौशल और उनका समर्थ संवाद व्यावहारिकता के साथ उन्हें भारतीय सिनेमा की एक अग्रणी अभिनेत्री बना दिया.

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