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व्यक्ति विशेष

भाग – 413.

कवयित्री सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू भारतीय इतिहास की एक प्रमुख महिला थीं, जो अपनी कविताओं और राजनीतिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं. वे “भारत कोकिला” के नाम से भी जानी जाती हैं. उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की खूबसूरती को दर्शाया है. सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था और उनका निधन 2 मार्च 1949 को कानपुर में हुआ था.

वे एक उत्कृष्ट छात्रा थीं और उन्होंने कई विषयों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया. उन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त की और वहां उनकी मुलाकात कई प्रमुख व्यक्तियों से हुई. उनकी कविताएँ अंग्रेजी में लिखी गईं थीं, लेकिन उनमें भारतीय संवेदना की गहराई को महसूस किया जा सकता है.

सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी एक सक्रिय भूमिका निभाई थी. वे महिला आंदोलनों और उनके अधिकारों की मुखर समर्थक थीं. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर बनीं.

सरोजिनी नायडू की कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं “द गोल्डन थ्रेशोल्ड”, “द बर्ड ऑफ टाइम”, और “द ब्रोकन विंग”. उनकी कविताएं आज भी प्रेरणादायक हैं और उन्हें भारतीय साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त है.

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शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ उर्दू अदब के महान शायरों में से एक माने जाते हैं. उनका जन्म 13 फरवरी 1911 को ब्रिटिश भारत के सियालकोट में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. फ़ैज़ ने अपने काव्य में सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और साम्यवादी विचारधारा को प्रमुखता से शामिल किया. उनकी रचनाएँ न केवल उर्दू साहित्य में बल्कि विश्व साहित्य में भी उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाती हैं.

फ़ैज़ की शायरी में प्रेम, विद्रोह, और उम्मीद के विषय गहराई से उत्कीर्ण हैं. उनकी कविताओं में जीवन के विभिन्न पहलुओं को बहुत ही संवेदनशीलता और शक्ति के साथ व्यक्त किया गया है. उनकी प्रसिद्ध कृतियों में “नक्श-ए-फ़रियादी”, “दस्त-ए-सबा”, और “ज़िंदान-नामा” शामिल हैं. फ़ैज़ की एक विशेषता उनकी भाषा की सरलता और साथ ही उनके विचारों की गहराई है, जिसने उन्हें आम लोगों का शायर बना दिया.

उन्होंने अपने जीवनकाल में कई उपलब्धियाँ हासिल कीं और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की. फ़ैज़ को वर्ष 1962 में सोवियत संघ द्वारा लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके काम को व्यापक रूप से पढ़ा और सराहा जाता है, और उनकी शायरी को उर्दू अदब की अमूल्य धरोहर माना जाता है. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का निधन 20 नवंबर 1984 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था. 

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साहित्यकार गोपाल प्रसाद व्यास

गोपाल प्रसाद व्यास हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, लेखक और व्यंग्यकार थे. उनका जन्म 13 फरवरी 1915 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के गोवर्धन में हुआ था. वे अपनी हास्य-व्यंग्य रचनाओं और कविताओं के लिए प्रसिद्ध थे और उन्हें “हास्य रसमय” के रूप में जाना जाता है.

गोपाल प्रसाद व्यास का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मथुरा में प्राप्त की. उनका साहित्य के प्रति झुकाव बचपन से ही था और उन्होंने लिखना बहुत ही कम उम्र में शुरू कर दिया था.व्यास ने अपने जीवनकाल में अनेक विधाओं में रचनाएँ कीं, जिनमें कविताएँ, नाटक, लेख और व्यंग्य प्रमुख हैं. व्यास जी ने हास्य और व्यंग्य को अपनी रचनाओं का मुख्य विषय बनाया. उनकी हास्य कविताएँ समाज में व्याप्त बुराइयों और कुरीतियों पर तीखा प्रहार करती थीं, लेकिन यह सब कुछ हंसी-हंसी में होता था.

गोपाल प्रसाद व्यास की कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें “काव्यांजलि”, “हास्य रत्नावली”, “हास्य कानन” और “हास्य मणि” प्रमुख हैं. उन्होंने कई नाटकों और लेखों की भी रचना की, जिनमें समाज के विभिन्न मुद्दों को उठाया गया. उन्होंने “कविता” पत्रिका का संपादन भी किया, जो हिंदी साहित्य की प्रमुख पत्रिकाओं में से एक थी.

व्यास को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा “साहित्य वाचस्पति” की उपाधि से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्हें “पद्मश्री” से भी सम्मानित किया गया. गोपाल प्रसाद व्यास का निधन 28 मई 2005 को हुआ. वे अपने पीछे एक समृद्ध साहित्यिक विरासत छोड़ गए हैं, जो हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के रूप में सदैव याद किया जाएगा.

गोपाल प्रसाद व्यास का जीवन और कार्य हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनकी हास्य-व्यंग्य रचनाएँ समाज के विभिन्न पहलुओं पर प्रहार करती हैं और लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं.

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जगजीत सिंह अरोड़ा

लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा भारतीय सेना के एक उल्लेखनीय अधिकारी थे, जिन्होंने वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनका जन्म 13 फ़रवरी 1916 को हुआ था, और उन्होंने भारतीय सेना में अपना कैरियर शुरू किया. उन्हें विशेष रूप से वर्ष 1971 के युद्ध में पूर्वी कमांड के कमांडिंग जनरल के रूप में उनकी नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता है.

इस युद्ध के दौरान, जनरल अरोड़ा ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भारतीय सशस्त्र बलों का नेतृत्व किया और पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण की ओर अग्रसर किया, जो कि ढाका में 16 दिसंबर 1971 को हुआ था. इस घटना को युद्ध में एक निर्णायक मोड़ माना जाता है और इसने बांग्लादेश के निर्माण में मदद की.

जनरल अरोड़ा के नेतृत्व में भारतीय सेना ने उल्लेखनीय सैन्य दक्षता और साहस दिखाया, जिसके लिए उन्हें उच्च सम्मानों से नवाज़ा गया. उनके सैन्य कैरियर और योगदान को भारतीय इतिहास में उच्च स्थान प्राप्त है, और वे एक प्रेरणादायक सैन्य नेता के रूप में याद किए जाते हैं. जगजीत सिंह अरोड़ा की मृत्यु 3 मई 2005 को नई दिल्ली में हुई थी.

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कवयित्री रश्मि प्रभा

रश्मि प्रभा एक भारतीय हिंदी कवयित्री और लेखिका हैं, जिनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में उनके गहरे भावनात्मक संवेदनशीलता और स्त्री विमर्श के प्रति उनकी गहराई के लिए पहचानी जाती हैं. उनकी कविताएँ अक्सर प्रेम, रिश्तों, आत्म-खोज, और सामाजिक मुद्दों के विभिन्न पहलुओं को छूती हैं. रश्मि प्रभा ने अपनी लेखनी से न केवल महिलाओं के अनुभवों और भावनाओं को व्यक्त किया है, बल्कि उन्होंने समाज में व्याप्त विभिन्न विषयों पर भी प्रकाश डाला है.

रश्मि प्रभा का जन्म 13 फ़रवरी 1958 को सीतामढ़ी, बिहार में हुआ था. इनके पिता का नाम स्वर्गीय रामचंद्र प्रसाद हाई स्कूल के प्राचार्य थे और उनकी माता का नाम श्रीमती सरस्वती प्रसाद था. उनकी कविताओं और लेखन में एक विशिष्ट नारीवादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है, जिसमें वे महिलाओं की आत्म-सशक्तिकरण, स्वतंत्रता और सम्मान की बात करती हैं.

रश्मि प्रभा की कविताओं में भाषा का सौंदर्य और गहराई भी उल्लेखनीय है, जिसमें वे अपने भावों और विचारों को बहुत ही सरल और प्रभावी ढंग से व्यक्त करती हैं. उनका लेखन न केवल महिला पाठकों के लिए, बल्कि सभी उम्र और वर्ग के पाठकों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है.

उन्होंने कई कविता संग्रह और पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिन्हें पाठकों और साहित्यिक समीक्षकों द्वारा सराहा गया है. उनका लेखन न केवल मन को छू लेने वाला है बल्कि सोचने के नए आयाम भी प्रदान करता है.

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अभिनेता विनोद मेहरा

विनोद मेहरा एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेता थे जिन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में अपने कैरियर के चरम पर हिंदी सिनेमा में अपनी एक विशेष पहचान बनाई. उनका जन्म 13 फरवरी 1945 को हुआ था और उनका निधन 30 अक्टूबर 1990 को हुआ था. विनोद मेहरा ने अपने कैरियर में विविध भूमिकाएँ निभाईं और उन्हें उनके द्वारा निभाई गई रोमांटिक और चरित्र भूमिकाओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.

उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1958 में बाल कलाकार के रूप में की थी, लेकिन वयस्क अभिनेता के रूप में उनकी पहली सफलता वर्ष 1970 के दशक की शुरुआत में आई. उन्होंने “अनुरोध”, “गृहप्रवेश”, “अमर दीप”, “स्वर्ग नरक”, “खून पसीना”, और “गोल माल” जैसी कई हिट फिल्मों में अभिनय किया.

विनोद मेहरा की निजी जिंदगी भी मीडिया में काफी चर्चित रही. उनकी तीन शादियाँ हुई थीं और उनके जीवन के अंतिम वर्षों में वे कुछ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे. उनका निधन हृदय गति रुकने से हुआ था. विनोद मेहरा को उनके योगदान के लिए हिंदी सिनेमा में आज भी याद किया जाता है.

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अभिनेत्री रश्मि देसाई

रश्मि देसाई एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन और भोजपुरी सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने कई हिट टीवी शोज़ में काम किया है और अपने अभिनय और ग्लैमरस अंदाज के लिए मशहूर हैं.

रश्मि देसाई का जन्म 13 फरवरी 1986 को गुजरात में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत भोजपुरी फिल्मों से की थी. उन्हें असली पहचान सीरियल “उत्तरन” ( वर्ष 2008-2015) से मिली, जिसमें उनके निगेटिव किरदार तपस्या को खूब पसंद किया गया.उन्होंने दिल से दिल तक और नागिन 4 जैसे शोज़ किए, जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ी. उन्होंने बिग बॉस 13 में भी भाग लिया था और शो में काफी सुर्खियाँ बटोरीं थीं.

भोजपुरी फिल्में: बलमा बड़ा नादान, गब्बर सिंह, तोहसे प्यार बा.

 हिंदी फिल्में: सुपरस्टार (2008).

 रश्मि देसाई की शादी वर्ष 2012 में टीवी एक्टर नंदीश संधु से हुई थी, लेकिन वर्ष 2016 में दोनों का तलाक हो गया. रश्मि देसाई ने कई टेलीविजन अवॉर्ड्स जीते हैं, जिनमें गोल्ड अवॉर्ड्स, इंडियन टेली अवार्ड्स, आईटीए अवॉर्ड्स शामिल हैं. रश्मि देसाई अपने मजबूत व्यक्तित्व और आत्मनिर्भरता के लिए जानी जाती हैं.

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क्रांतिकारी बुधु भगत

क्रांतिकारी बुधु भगत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे. वे झारखंड के आदिवासी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह किया था. बुधु भगत ने कोल विद्रोह का नेतृत्व किया, जो 1831-32 में हुआ था. यह विद्रोह आदिवासी समुदायों द्वारा ब्रिटिश राज और उनके जमींदारी प्रथा के खिलाफ किया गया था. इस विद्रोह का मुख्य कारण जमीन के मालिकाना हक को लेकर था, जहाँ आदिवासी समुदायों की जमीनें जबरन छीनी जा रही थीं.

बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी 1792 को हुआ था और उनका निधन 13 फ़रवरी 1832 को हुआ. बुधु भगत ने अपने साथियों के साथ मिलकर आदिवासी समाज को एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया. उनका विद्रोह आदिवासी अधिकारों और स्वायत्तता की मांग पर आधारित था. बुधु भगत और उनके साथियों ने ब्रिटिश फौजों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं. उनके साहस और वीरता के कारण, वे झारखंड के लोगों के बीच एक हीरो के रूप में जाने जाते हैं.

उनके नेतृत्व में किए गए विद्रोह ने आदिवासी समुदायों के बीच जागरूकता और एकता की भावना को मजबूत किया. हालांकि ब्रिटिश सेना ने उनके विद्रोह को कुचल दिया, लेकिन बुधु भगत की वीरता और त्याग की कहानियाँ आज भी प्रेरणादायक हैं. उनका जीवन और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है.

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कानूनविद सर सुंदर लाल

सर सुंदर लाल एक प्रमुख भारतीय वकील और शिक्षाविद थे, जिन्होंने ब्रिटिश भारत में कानूनी शिक्षा और प्रैक्टिस में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उनका जन्म 21 मई  1857 को हुआ था और उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की थी.

 सर सुंदर लाल ने विधि शिक्षा में अपने विचारों और सिद्धांतों के माध्यम से कई छात्रों को प्रेरित किया और उनके नाम पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज का नाम ‘सर सुंदर लाल लॉ कॉलेज’ रखा गया है.

उन्होंने विशेष रूप से भारतीय न्यायिक प्रणाली में सुधारों पर जोर दिया और अपने समय में वे एक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति थे. उनका देहांत 13 फ़रवरी 1920 को हुआ था.

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उस्ताद अमीर खान

उस्ताद अमीर खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महान गायक थे, जिन्हें ख़याल गायकी की इंदौर घराने की शैली का संस्थापक माना जाता है.उनका जन्म 15 अगस्त 1912 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. उनके पिता शाहमीर खान, जो खुद एक संगीतकार थे, ने उन्हें प्रारंभिक संगीत शिक्षा दी.

उस्ताद अमीर खान ने अपने पिता से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में उस्ताद मसरूर खान से गायकी का अध्ययन किया. उनके संगीत में ध्रुपद और ठुमरी जैसी पुरानी शैलियों का प्रभाव देखा जा सकता है, जिसे उन्होंने अपनी ख़याल गायकी में समाहित किया.

उस्ताद अमीर खान की गायकी की शैली में गहराई, गंभीरता और सूक्ष्मता का अद्वितीय मिश्रण था.उन्होंने रागों के विस्तार में खास ध्यान दिया और विलंबित खयाल में गाने की कला को परिपूर्ण किया. उनका गायन धैर्य, मंथर गति, और शांतिपूर्ण प्रवाह के लिए जाना जाता था. उनके द्वारा स्थापित इंदौर घराने की ख़याल गायकी में राग की शुद्धता, अलंकारों की साधना, और मंद्र सप्तक का विशेष महत्व था.

उस्ताद अमीर खान का संगीत मंत्रमुग्ध कर देने वाला था. उनकी आवाज़ में गहराई और संवेदनशीलता थी, और वे राग की जटिलताओं को बड़ी सरलता और सहजता से प्रस्तुत करते थे. उनके संगीत में तान, मींड, और गमक का अद्वितीय उपयोग देखा जाता है. वे अपने गायन में बहुत धैर्य रखते थे और राग को धीरे-धीरे विस्तारित करते हुए श्रोताओं को उसमें डूबने का अवसर देते थे.

उस्ताद अमीर खान को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण शामिल हैं. उनकी कला और संगीत को आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक आदर्श के रूप में देखा जाता है.

उस्ताद अमीर खान का निधन 13 फरवरी 1974 को एक कार दुर्घटना में हुआ. उनकी मृत्यु भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनके द्वारा स्थापित इंदौर घराना और उनके संगीत की धरोहर आज भी जीवित है और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर रही है.

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हास्य कलाकार राजेंद्र नाथ

राजेंद्र नाथ भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख हास्य कलाकार थे, जिन्होंने वर्ष 1960 – 70 के दशक में अपने अभिनय के जरिए खूब नाम कमाया. उनका जन्म 8 जून 1931 को हुआ था और उनका निधन 13 फरवरी 2008 को हुआ. राजेंद्र नाथ को उनके चुटीले संवाद डिलीवरी और अनोखे चरित्र चित्रण के लिए जाना जाता था. उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया और अपने विशिष्ट हास्य अभिनय से दर्शकों का दिल जीता.

राजेंद्र नाथ ने अपने कैरियर के दौरान कई प्रसिद्ध फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘फिर वही दिल लाया हूँ’, ‘मेरे सनम’, और ‘हमजोली’ जैसी फिल्में शामिल हैं. उनकी टाइमिंग और अभिव्यक्ति ने हास्य विधा में उनकी एक अलग पहचान बनाई. उनके किरदार अक्सर नाटकीय और ओवर द टॉप होते थे, लेकिन उनका अभिनय कभी भी अश्लील या असंवेदनशील नहीं लगता था.

राजेंद्र नाथ की विशेषता यह थी कि वे अपने किरदारों में एक अद्वितीय मासूमियत और चंचलता लेकर आते थे, जो उनके हर किरदार को यादगार बना देती थी. उनका अभिनय न केवल हास्यास्पद था, बल्कि कई बार उसमें एक गहराई भी होती थी, जो दर्शकों को उनके किरदारों से जुड़ने में मदद करती थी.

राजेंद्र नाथ का योगदान भारतीय सिनेमा के हास्य विधा को समृद्ध करने में अमूल्य है. उनकी फिल्में और उनके द्वारा निभाए गए किरदार आज भी हास्य कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और दर्शकों को खूब हंसाते रहते हैं.

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