News

व्यक्ति विशेष

भाग – 412.

राजनीतिज्ञ नाना फड़नवीस

नाना फडनवीस, जिनका वास्तविक नाम बालाजी जनार्दन भानु था, वर्ष 1741 -1800 तक जीवित रहे. वे एक अत्यंत चतुर और प्रभावशाली मराठा राजनीतिज्ञ थे, जिनका जन्म 12 फरवरी 1742 को सतारा में हुआ था. उन्हें अपनी स्वामिभक्ति, स्वाभिमान और स्वदेशाभिमान के लिए जाना जाता था. नाना फडनवीस के सामने मुख्य रूप से तीन प्रमुख समस्याएँ थीं: पेशवा पद को स्थिर रखना, मराठा संघ को बनाए रखना और विदेशी शक्तियों से मराठा राज्य की रक्षा करना.

नाना ने 1774 से अपनी मृत्यु तक 1800 ई. में मराठा राज्य का संचालन किया. उन्होंने मराठा संघ के विभिन्न घटकों, जैसे कि सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ और भोसले के बीच के विवादों और अंतर्द्वंद्वों को सुलझाने के लिए अपनी राजनीतिक चतुराई और कूटनीतिक कौशल का प्रयोग किया. उन्होंने अंग्रेजों और अन्य विदेशी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध करके मराठा राज्य की रक्षा की और समय-समय पर विभिन्न संधियों के माध्यम से अपने राज्य को सशक्त बनाया. नाना फड़नवीस का निधन 13 मार्च 1800 को हुआ था.

नाना फडनवीस को उनकी मृत्यु के बाद ही मराठा संघ का अंत हो गया था, जो उनके नेतृत्व और प्रबंधन की क्षमता को दर्शाता है. वे न केवल एक योग्य राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक ईमानदार और उच्च आदर्शों से प्रेरित व्यक्ति भी थे​.

==========  =========  ===========

महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती भारतीय संत, धार्मिक नेता, और समाज सुधारक थे. उन्होंने 19वीं सदी के मध्य और अंत में आर्य समाज की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार की प्रेरणा प्रदान करता था. स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी 1824 को टंकारा, गुजरात में हुआ था और उनका निधन 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर, राजस्थान में हुआ.

स्वामी दयानन्द ने वेदों के महत्व को पुनः प्रतिष्ठित किया और संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया. उन्होंने समाज में विश्वास का उत्थान किया और धर्मिक आदर्शों को प्रचारित किया. उनके विचारों में समाज के समर्थन, विश्वास, एकता, और स्वावलंबन को महत्व दिया गया.

स्वामी दयानन्द ने वेदों का अध्ययन किया और वेदांत फिलॉसफी की मानवता और धार्मिकता के सिद्धांतों को उन्नत किया. उनके प्रमुख में “सत्यार्थ प्रकाश” और “ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका” शामिल हैं. स्वामी दयानन्द का योगदान धार्मिक और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और उनके विचार और आदर्शों का अभी भी व्यापक प्रभाव है.

==========  =========  ===========

खलनायक और चरित्र अभिनेता प्राण

प्राण, जिनका पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था, भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख खलनायक और चरित्र अभिनेता थे. उनका जन्म 12 फरवरी 1920 को दिल्ली में हुआ था. प्राण ने अपने अद्वितीय अभिनय कौशल और विशिष्ट शैली से हिंदी फिल्म उद्योग में एक अलग पहचान बनाई. प्राण का जन्म एक धनी पंजाबी परिवार में हुआ था. उनके पिता लक्ष्मी नारायण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे. प्राण की शिक्षा लाहौर, देहरादून और मीरुत में हुई. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर फोटोग्राफर की थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें फिल्म उद्योग की ओर मोड़ दिया.

प्राण ने वर्ष 1940 में पंजाबी फिल्म “यमला जट” से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की. इसके बाद, उन्होंने कई पंजाबी और हिंदी फिल्मों में काम किया. विभाजन के बाद, वे मुंबई आ गए और हिंदी फिल्म उद्योग में खुद को स्थापित किया. प्राण का कैरियर सात दशकों तक चला और उन्होंने लगभग 350 फिल्मों में काम किया.

प्रमुख फिल्मों: –

जंजीर (1973): – इस फिल्म में प्राण ने “शेर खान” की भूमिका निभाई, जो आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार किरदारों में से एक है.

मधुमती (1958): – इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.

उपकार (1967): – इस फिल्म में उन्होंने मलंग चाचा की भूमिका निभाई, जो बेहद प्रसिद्ध हुई.

पूरब और पश्चिम (1970): – इस फिल्म में उनके द्वारा निभाया गया किरदार भी काफी लोकप्रिय हुआ.

प्राण ने अपने कैरियर के अधिकांश हिस्से में खलनायक की भूमिकाएं निभाईं. उनके अभिनय की विशेषता थी उनकी संवाद अदायगी और विशिष्ट स्टाइल, जो उन्हें अन्य खलनायकों से अलग बनाती थी. वे एक ऐसे खलनायक थे जिन्हें दर्शक प्यार और नफरत दोनों करते थे.

वर्ष 1970 – 80 के दशक में, प्राण ने चरित्र भूमिकाएं निभानी शुरू कीं और इन भूमिकाओं में भी अपनी छाप छोड़ी. उनकी भूमिकाएं अधिकतर प्रेरणादायक और सहायक भूमिकाएं थीं, जैसे कि ‘जंजीर’ में शेर खान और ‘उपकार’ में मलंग चाचा.

प्राण को अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उनमें से कुछ प्रमुख हैं: –

फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार: – उन्होंने यह पुरस्कार कई बार जीता.

फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड: – वर्ष 1997 में उन्हें यह सम्मान मिला.

पद्म भूषण: – वर्ष 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया.

दादा साहेब फाल्के अवार्ड: वर्ष 2013 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया.

प्राण का निधन 12 जुलाई 2013 को मुंबई में हुआ. उनके निधन से भारतीय सिनेमा में एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी फिल्मों और उनके द्वारा निभाए गए यादगार किरदारों के माध्यम से वे हमेशा याद किए जाएंगे.

प्राण का योगदान भारतीय सिनेमा में अद्वितीय है और उनके अभिनय का जादू आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है. उनके किरदार, चाहे वह खलनायक हो या चरित्र अभिनेता, भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर रहेंगे.

==========  =========  ===========

क्रिकेटर गुंडप्पा विश्वनाथ

क्रिकेटर गुंडप्पा विश्वनाथ भारतीय क्रिकेट के पूर्व खिलाड़ी और क्रिकेट के अग्रणी बल्लेबाजों में से एक थे. वे वर्ष 1959 – 83 तक भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे.

गुंडप्पा विश्वनाथ का जन्म 12 फ़रवरी 1949 को मैसूर भद्रावती में हुआ था. विश्वनाथ को उनके आत्मसमर्पण, शांतिपूर्ण स्वभाव, और अनूठे खेल की शैली के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई महत्वपूर्ण और अनुप्राणित प्रदर्शन किए, जिसमें वे अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर शानदार शतक और अन्य प्रमुख प्रदर्शन करते रहे.

उन्हें वर्ष 1971 में भारतीय क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में उत्कृष्टता के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

==========  =========  ===========

योगाचार्य धीरेन्द्र ब्रह्मचारी

योगाचार्य धीरेन्द्र ब्रह्मचारी एक प्रसिद्ध योग गुरु थे, जिन्होंने भारतीय योग और ध्यान की परंपरा को प्रचारित किया. उन्हें भारतीय योग और आयुर्वेद के एक प्रमुख प्रवक्ता के रूप में मान्यता प्राप्त है. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का असली नाम धीरेन्द्र नाथ था.

धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म 12 फ़रवरी, 1924 को गांव चानपुरा बासैठ, मधुबनी, बिहार में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन के बड़े हिस्से को योग और ध्यान को समर्पित किया और लोगों को इस अनुभव से लाभान्वित करने की शिक्षा दी. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने अपने जीवन में भूखरंग क्रिया, शैलाजा योग, और ध्यान की अनेक विधियों को सिखाया. उनकी प्रमुख शिष्या में विवेकानंद, भगवान श्रीरामण महर्षि, और अनुप जलोटा जैसे व्यक्तित्व शामिल हैं.

धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में अपनी विशेष योगदान किया और उनकी शिक्षाओं का अभियान आज भी जारी है. उनकी शिक्षाओं और योग के सिद्धांतों को आज भी लोग मानते हैं और उनके द्वारा साझा किए गए योगिक तकनीकों का उपयोग करते हैं. योगाचार्य धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का निधन 9 जून 1994 को हुआ था.

==========  =========  ===========

अभिनेत्री क्लौडिया सिसेल

क्लौडिया सिसेला एक पोलिश-जर्मन मॉडल और अभिनेत्री हैं, जो मुख्यतः बॉलीवुड में सक्रिय हैं. उनका जन्म 12 फरवरी 1987 को पोलैंड के वोड्ज़िस्लाव श्लॉन्स्की में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और बाद में भारतीय फिल्म उद्योग में कदम रखा.

क्लौडिया ने वर्ष 2009 में भारतीय रियलिटी टेलीविजन शो ‘बिग बॉस’ के तीसरे सीजन में भाग लिया, जिससे उन्हें भारतीय दर्शकों के बीच पहचान मिली. इसके बाद, उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘खिलाड़ी 786’ (वर्ष 2012) में ‘बलमा’ गाने में विशेष उपस्थिति शामिल है.

फ़िल्में: – ‘यार परदेसी’, ‘देसी कट्टे’ और ‘क्या कूल हैं हम 3’.

क्लौडिया ने अपने अभिनय और नृत्य कौशल के माध्यम से भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई है.

==========  =========  ===========

अभिनेत्री ऋचा सिन्हा

ऋचा सिन्हा एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई है. उनका जन्म 12 फरवरी 1996 को हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2016 में फिल्म “डोंगरी का राजा” से की, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई थी.

 ऋचा ने वर्ष 2019 में फिल्म “मिलन टॉकीज” में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह कई विज्ञापनों और म्यूजिक वीडियो में भी नजर आ चुकी हैं. उनकी प्रमुख फिल्मों में “महान कनक्कु” (वर्ष 2011) और “डोंगरी का राजा” (वर्ष 2016) शामिल हैं.

ऋचा सिन्हा ने अपने अभिनय और मॉडलिंग के माध्यम से भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.

==========  =========  ===========

जहाँदारशाह

जहाँदारशाह किशोर, भारतीय इतिहास में मुग़ल साम्राज्य का चौथा सम्राट था. उनका पूरा नाम अबुल मुज़फ़्फ़र मुहम्मद जहाँदारशाह किशोर था. उनका राज्यकाल वर्ष 1627 – 58 तक चला. जहाँदारशाह का उद्यानपुर, दिल्ली में जन्म हुआ था और उनके पिता शाहजहाँ, जहाँदारशाह के प्रारंभिक शिक्षा और तालिम का मुख्य उपाध्यक्ष रहे हैं.

जहाँदारशाह का शासन काल उस समय में हुआ जब मुग़ल साम्राज्य में बहुत सारी आंदोलन और विद्रोह हुए. उनके शासन काल में अनेक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संकटों का सामना किया गया. जहाँदारशाह का शासनकाल बहुत ही विवादित था. उन्होंने अपनी अनिष्ट कार्यवाहियों के कारण जनसमूह के बीच प्रियता खो दी और उन्हें अपने पिता शाहजहाँ के तुलनात्मक रूप से कम प्रिय माना जाता है.

जहाँदारशाह का राजा बनने के बाद उन्होंने कई कठिनाईयों का सामना किया, जो उन्हें एक शक्तिशाली और स्थिर शासक बनने की प्रतीति दिलाई. लेकिन उनका अव्यवस्थित और अनियंत्रित शासन उन्हें उनके राज्य की विपत्ति में डाल दिया, और उनका शासन वर्ष 1658 में उनके विरोधियों द्वारा उत्तराधिकारी और पुत्र औरंगजेब को बाद में बदल दिया गया.जहाँदारशाह का निधन 12 फ़रवरी 1713 को दिल्ली में हुआ था.

==========  =========  ===========

उद्योगपति राहुल बजाज

राहुल बजाज एक प्रमुख भारतीय उद्योगपति और बिजनेस टाइकून थे, जिन्हें बजाज ग्रुप के अध्यक्ष और मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में उनकी भूमिका के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है. उनका जन्म 10 जून 1938 को बंगाल प्रेसीडेंसी में हुआ था. वे स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के पोते थे.

राहुल बजाज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल, मुंबई से पूरी की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया. राहुल बजाज ने अपने नेतृत्व में बजाज ऑटो को एक छोटे स्कूटर निर्माण कंपनी से एक विशाल ऑटोमोबाइल कंपनी में बदल दिया. उनके नेतृत्व में कंपनी ने भारतीय बाजार में बड़े हिस्से पर कब्जा किया और बजाज स्कूटर्स भारतीय घरों में एक आम नाम बन गया.

वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद, उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और वैश्वीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी कंपनियों ने नए उद्योग स्थापित किए और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में योगदान दिया. उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भी योगदान दिया. बजाज ग्रुप ने कई परोपकारी परियोजनाओं का समर्थन किया, जिसमें स्कूल, अस्पताल और अन्य सामाजिक कल्याण योजनाएँ शामिल हैं.

राहुल बजाज को उनके उद्योग और समाज के प्रति योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया. इनमें शामिल हैं:-पद्म भूषण (2001), CII के अध्यक्ष और FICCI के अध्यक्ष.

राहुल बजाज अपने साधारण और व्यावहारिक जीवनशैली के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने भारतीय उद्योग जगत में अपने व्यावसायिक नैतिकता और स्पष्टवादिता के लिए एक अलग पहचान बनाई. राहुल बजाज का निधन 12 फरवरी 2022 को हुआ. उनके निधन से भारतीय उद्योग जगत में एक बड़ी क्षति हुई, लेकिन उनका योगदान और विरासत हमेशा याद की जाएगी.

राहुल बजाज की नेतृत्व क्षमता, उद्योग के प्रति समर्पण और सामाजिक उत्तरदायित्व ने उन्हें भारतीय उद्योग जगत में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाया. उनका जीवन और कार्य आज भी अनेक युवा उद्यमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

:

Related Articles

Back to top button