वनस्पतिशास्त्री परशुराम मिश्रा
परशुराम मिश्रा एक प्रसिद्ध भारतीय वनस्पतिशास्त्री थे, जिन्हें भारतीय वनस्पति विज्ञान में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे भारत के वनस्पति विज्ञान और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका मुख्य कार्य पौधों की विविधता और उनकी उपयोगिता पर केंद्रित था.
परशुराम मिश्रा का जन्म 25 जनवरी 1894 को बारपली, उड़ीसा में हुआ था और उनका निधन 4 अगस्त 1981 को हुआ था. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की थी.
परशुराम मिश्रा ने भारत की जैव विविधता, विशेष रूप से पौधों की प्रजातियों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने भारतीय वनस्पति विज्ञान के कई पहलुओं पर शोध किया, जो पारिस्थितिकी और कृषि के लिए उपयोगी रहे. वे कई महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े रहे और वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा दिया.
परशुराम मिश्रा को उनके वैज्ञानिक योगदानों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. परशुराम मिश्रा का कार्य आज भी वनस्पति विज्ञानियों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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साहित्यकार राजेन्द्र अवस्थी
राजेन्द्र अवस्थी एक प्रख्यात भारतीय साहित्यकार, पत्रकार, और उपन्यासकार थे. उन्होंने हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान दिया और अपनी कहानियों, उपन्यासों और लेखों के माध्यम से समाज के विविध पहलुओं को उजागर किया. राजेन्द्र अवस्थी हिंदी साहित्य की प्रमुख हस्तियों में से एक माने जाते हैं, जिनकी रचनाएँ सरल भाषा और गहन संदेशों के लिए जानी जाती हैं.
राजेन्द्र अवस्थी का जन्म 25 जनवरी 1930 को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा. अवस्थी ने उपन्यास, कहानियाँ, निबंध, और अन्य साहित्यिक विधाओं में अपनी छाप छोड़ी. उनकी रचनाएँ समाज, मानवीय संवेदनाओं और संस्कृति से जुड़ी होती थीं.
उपन्यास: – तुम्हारे लिए, अंधा मोड़, विषकन्या, कहानी संग्रह: – छोटी-छोटी कहानियाँ, चुप्पी का शोर.
राजेन्द्र अवस्थी न केवल एक साहित्यकार थे, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे. उन्होंने प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिका ‘कादंबिनी’ का संपादन किया. उनकी पत्रकारिता में समाज के यथार्थ और समस्याओं का गहराई से विश्लेषण होता था.
राजेन्द्र अवस्थी को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी सेवाओं को सदा स्मरण किया जाएगा. राजेन्द्र अवस्थी का निधन 21 जून 2009 को हुआ. उनके निधन के साथ हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक युग का अंत हुआ.
राजेन्द्र अवस्थी की रचनाएँ आज भी साहित्यप्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं और नई पीढ़ियों को प्रेरित करती हैं.
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पार्श्वगायिका कविता कृष्णमूर्ति
कविता कृष्णमूर्ति एक भारतीय पार्श्वगायिका हैं, जिन्हें भारतीय फिल्म संगीत में उनके असाधारण योगदान के लिए जाना जाता है. उनकी सुरीली और भावपूर्ण आवाज़ ने उन्हें 90 के दशक की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में शामिल किया. कविता ने हिंदी फिल्मों के अलावा तमिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती, और कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाने गाए हैं.
कविता कृष्णमूर्ति का जन्म 25 जनवरी 1958 को दिल्ली में हुआ. उनका मूल नाम शारदा कृष्णमूर्ति है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से अर्थशास्त्र में स्नातक किया. बचपन से ही उनकी रुचि संगीत में थी, और वे ऑल इंडिया रेडियो के लिए गाने लगी थीं. कविता ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्रसिद्ध संगीतकार बालमुरली कृष्ण और कई अन्य गुरुओं से प्राप्त की.
कविता कृष्णमूर्ति को हिंदी फिल्म उद्योग में पहला ब्रेक संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया. उनका पहला लोकप्रिय गीत “तू इश्क़ मेरा, तू प्यार मेरा” (फिल्म: फ़ैज़ल, 1981) था. वर्ष 1980 के दशक के मध्य में वे बॉलीवुड की अग्रणी गायिकाओं में शुमार हो गईं. उन्होंने पहला गाना कन्नड़ में गाया था.
हिट और यादगार गाने: – “प्यार हुआ चुपके से” (1942: ए लव स्टोरी, 1994), “हम दिल दे चुके सनम” (हम दिल दे चुके सनम, 1999), “कहीं आग लगे लग जाए” (ताल, 1999), “ऐ मेरे हमसफ़र” (बाज़ीगर, 1993), “ढोली तारो ढोल बाजे” (हम दिल दे चुके सनम, 1999).
कविता की आवाज़ में शास्त्रीय संगीत और आधुनिक संगीत का मिश्रण है. वे रोमांटिक गाने, भक्ति गीत, और शास्त्रीय रचनाएँ गाने में समान रूप से माहिर हैं. कविता कृष्णमूर्ति ने वायलिन वादक डॉ. एल. सुब्रमण्यम से विवाह किया. उनका वैवाहिक जीवन संगीत और कला से समृद्ध है.
कविता कृष्णमूर्ति चार बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका के फ़िल्मफेयर अवार्ड के लिए चुनी गई हैं. यही नहीं, वर्ष 2005 में उन्हें देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री भी मिला.
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कवियित्री कृष्णा सोबती
कृष्णा सोबती एक प्रसिद्ध हिंदी कवियित्री, उपन्यासकार, और कहानीकार थीं, जिन्होंने भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 18 फरवरी 1925 को गुजरात, पाकिस्तान में हुआ था, और उनका निधन 25 जनवरी 2019 को हुआ. कृष्णा सोबती को उनकी बोल्ड और रियलिस्टिक कहानियों के लिए जाना जाता है, जिनमें समाज में महिलाओं की स्थिति, विभाजन के प्रभाव, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विषय प्रमुख रूप से उठाए गए हैं.
उनकी प्रमुख कृतियों में ‘मित्रो मरजानी’, ‘दार से बिछुड़ी’, ‘जिंदगीनामा’, और ‘दिलो दानिश’ शामिल हैं. ‘मित्रो मरजानी’ एक ऐसी महिला की कहानी है जो समाज की पारंपरिक बंधनों को तोड़ती है और अपनी यौन इच्छाओं को स्वीकार करती है. ‘जिंदगीनामा’ में, सोबती ने पंजाब के ग्रामीण जीवन का विस्तृत चित्रण किया है.
कृष्णा सोबती को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार (1980), साहित्य अकादमी फैलोशिप (1996), और ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) शामिल हैं. वे अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं और विषयों पर प्रकाश डालती रहीं, जिससे वे हिंदी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान रखती हैं.