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अधूरा इलाज

शारीरिक स्वास्थ्य बनाम मानसिक अशांति-

नलिन शारीरिक रूप से ठीक हो चुका था- लीवर फंक्शन टेस्ट नॉर्मल आया, डॉक्टरों ने डिस्चार्ज कर दिया. पर घर लौटकर वह अपने ही शरीर से लड़ता नज़र आया.

रात के 3 बजे- बेडरूम की दीवारों को घूरता हुआ.

शराब की दुकान के सामने- खड़ा होकर मुट्ठी भींचता हुआ.

गायत्री के सामने- नकली मुस्कान चिपकाए हुए.

गायत्री (चिंतित)-  “तुम ठीक से सो क्यों नहीं पा रहे?”

नलिन (टालते हुए)- “बस… पुरानी आदतें.”

थेरेपी से बचना-

गायत्री ने मनोचिकित्सक से संपर्क किया, पर नलिन ने साफ़ इनकार कर दिया,

नलिन (गुस्से में)- “मैं पागल नहीं हूँ! बस थोड़ा टेंशन है!”

उमेश (समझाते हुए)- “भाई, PTSD हो सकता है. मेरे चाचा को भी—”

नलिन (चिल्लाकर)- “मुझे तुम्हारे चाचा की नहीं, बस गायत्री की ज़रूरत है!”

गायत्री ने उसकी आँखों में छिपे डर को पढ़ लिया.

गायत्री का बलिदान-

गायत्री ने मुंबई ट्रांसफर रद्द कर दिया. उसकी सीनियर डॉक्टर ने चेताया,

डॉ. शर्मा- “तुम अपना कैरियर दाँव पर लगा रही हो! ये रिश्ता तुम्हें डुबो देगा!”

गायत्री (दृढ़ता से)- “मैंने उसे ज़िंदगी दी है… अब उसे बचाना मेरी ज़िम्मेदारी है.”

लेकिन रात में वह तकिए पर आँसू बहाती थी.

विस्फोटक सच्चाई-

एक रात, नलिन ने बाथरूम का शीशा तोड़ डाला. गायत्री ने देखा तो वह खून से लथपथ हाथ छुपा रहा था,

गायत्री (डर से काँपते हुए)- “ये क्या किया तुमने?!”

नलिन (रोते हुए)- “मैंने सपने में तुम्हें डॉ. आर्यन के साथ देखा… मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा!”

गायत्री समझ गई- उसका प्यार अब नलिन के लिए जहर बन चुका था.

शेष भाग अगले अंक में…,

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