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मोहनजोदड़ो का इतिहास
मोहनजो-दाड़ो, सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में से एक है, जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। यहाँ इसकी संक्षिप्त इतिहास है:
खोज और उत्खनन
- खोज: मोहनजो-दाड़ो की खोज 1922 में आर.डी. बैनर्जी द्वारा की गई थी, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक अधिकारी थे। इसकी खोज से पहले, यह स्थल अज्ञात था।
- उत्खनन: 1920 और 1930 के दशकों में जॉन मार्शल, ई.जे.एच. मैके और अन्य लोगों द्वारा महत्वपूर्ण उत्खनन कार्य किए गए थे। इन उत्खननों से एक अत्यधिक विकसित शहरी नगर का पता चला, जिसमें परिष्कृत बुनियादी ढांचा था।
ऐतिहासिक महत्व
- शहरी योजना: मोहनजो-दाड़ो अपनी उन्नत शहरी योजना के लिए प्रसिद्ध है। नगर को ग्रिड पैटर्न में बिछाया गया था, जिसमें सड़कों को मुख्य दिशाओं में ओरिएंट किया गया था। इसमें जटिल जल निकासी प्रणाली थी, जिसमें ईंटों से बनी नालियाँ और चैनल शामिल थे।
- वास्तुकला: मोहनजो-दाड़ो की वास्तुकला में आवासीय भवन, बड़े सभा हॉल, भंडार और सार्वजनिक स्नानागार शामिल थे। ग्रेट बाथ, एक बड़ा, धंसा हुआ पूल, सबसे उल्लेखनीय संरचनाओं में से एक है, जिसे अनुष्ठानिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने की संभावना है।
- कलाकृतियाँ: मोहनजो-दाड़ो से कई कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें मिट्टी के बर्तन, उपकरण, आभूषण और सील शामिल हैं। सीलों पर अक्सर एक लिपि में शिलालेख होते हैं जो अभी तक पढ़ी नहीं गई है, जो एक प्रकार के लिखित संचार का संकेत देती है।
समाज और संस्कृति
- अर्थव्यवस्था: मोहनजो-दाड़ो की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार और शिल्प पर आधारित थी। नगर व्यापार का केंद्र था, जिसमें मेसोपोटामिया जैसे दूरस्थ क्षेत्रों के साथ विनिमय के प्रमाण हैं।
- सामाजिक संगठन: बड़े सार्वजनिक भवनों और घरों के आकार में एकरूपता की उपस्थिति एक डिग्री की सामाजिक संगठन और संभवतः शासन का सुझाव देती है।
- धर्म: यद्यपि सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में बहुत कुछ अनुमान है, मूर्तियाँ, मूर्तियों और ग्रेट बाथ जैसी कलाकृतियाँ अनुष्ठानिक और संभवतः धार्मिक प्रथाओं के महत्व को दर्शाती हैं।
पतन और परित्याग
- पतन: 1900 ईसा पूर्व के आसपास मोहनजो-दाड़ो के पतन के कारण पूरी तरह से समझ में नहीं आए हैं। सिद्धांतों में जलवायु परिवर्तन, नदी के मार्ग में बदलाव और बाहरी ताकतों का आक्रमण शामिल हैं।
- परित्याग: दूसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत तक, नगर को काफी हद तक छोड़ दिया गया था। लिखित अभिलेखों की कमी के कारण इसके पतन के सटीक कारणों का पता लगाना मुश्किल है।
आधुनिक महत्व
- विश्व धरोहर स्थल: मोहनजो-दाड़ो को 1980 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था। यह दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है, जो प्रारंभिक शहरीकरण और सिंधु घाटी सभ्यता में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- संरक्षण: संरक्षण प्रयास जारी हैं, क्योंकि स्थल कटाव, लवणता और अनुचित संरक्षण प्रथाओं से खतरे में है।
मोहनजो-दाड़ो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की बुद्धिमत्ता और परिष्कृति का प्रतीक है, जो क्षेत्र में प्रारंभिक शहरी जीवन की झलक प्रदान करता है।