भारतीय तिरंगे का इतिहास…
दुनिया के सभी देशों की अलग-अलग पहचान हैं कहीं राष्ट्रीय चिन्ह हैं तो कहीं पशु या पक्षी, तो कहीं फल-फुल या गीत, तो कहीं राष्ट्रिय ध्वज. कोई भी देश की अच्छी चीजों में से चुनकर राष्ट्रीय चीज बनाई जाती हैं जो उस देश की निशानी होती हैं. पूरी दुनिया के सभी देशों से अलग अपना भारत देश हैं और यहां की पहचान है राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम सभी तिरंगे के नाम से जानते है. आज हम सभी तिरंगे के निर्माण की विकास के बारे में जानने के लिए इतिहास के पन्नो को पलटते हैं.
बताते चलें कि, राजाराम मोहन राय जब इंग्लैण्ड जा रहे थे तो उन्होंने फ्रांसीसी जहाज पर झंडा लहराते हुए देखा तो उन्हें भी महसूस हुआ कि, काश हमारे देश का भी झंडा होता. लेकिन उन्होंने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया. जब हमारा देश ब्रिटिश सरकार की गुलामी से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा था तब, स्वतन्त्रता सेनानियों को एक प्रतीक या यूँ कहें कि एक ध्वज की जरूरत महसूस हुई चूकिं, ध्वज को स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का प्रतीक माना जाता हैं. जब भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन तेज हुआ तब, स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने झंडे का प्रारूप तैयार किया. जिसे बंगाल विभाजन के विरोध के दौरान इस झंडे का प्रयोग किया गया.
बताते चलें कि, पहला राष्ट्रीय ध्वज 07 अगस्त 1906 को पारसी बगान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में (जिसे अब कोलकत्ता के नाम से जानते हैं) फहराया गया था. इस ध्वज को लाल, पीले और हरे क्षैतिज पट्टीयों से बनाया गया था. इस पर आठ कमल और ‘वंदे मातरम्’ लिखा गया था.
दूसरा राष्ट्रीय ध्वज पेरिस में मैडम कामा और निर्वासित किये गये क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था. यह भी ध्वज पहले ध्वज के समान ही था लेकिन इसमें सबसे उपरी पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते थे. इस ध्वज को बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मलेन में भी प्रदर्शित किया गया था.
तीसरा राष्ट्रीय ध्वज वर्ष 1917 में डा० एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने आन्दोलन के दौरान फहराया. इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टीयां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने ‘सात’ सितारे थे. बांयी और उपरी किनारे के खम्भे की ओर यूनियन जैक था और एक कोने पर सफेद अर्धचन्द्र और सितार भी था.
वर्ष 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सत्र का आयोजन वेजवाडा (विजयवाडा) में किया गया था. उस दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने झंडा बनाया और महात्मा गांधीजी को दिया जो दो रंगों का बना हुआ था. इस झंडे में लाल और हरा रंग जो कि, दो सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करता था. तब गांधीजी ने सुझाव दिया कि, भारत के शेष समुदाय को प्रतिनिधित्व करने के लिए सफेद रंग की पट्टी और राष्ट्र की प्रगति को संकेत देने के लिए चलता हुआ चरखा होना चाहिए.
वर्ष 1931 में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है. इस झंडे में केसरिया, सफेद और मध्य में गांधीजी के चलते हुए चरखे के साथ था.
तिरंगे के डिजाइनर पिंगली वेंकैया थे. उन्होंने एक ऐसा झंडा डिजाइन किया जिसमें तीन रंग थे: केसरिया, सफेद और हरा.
रंगों का महत्व: –
केसरिया: – बहादुरी और त्याग का प्रतीक
सफेद: – शांति और सत्य का प्रतीक
हरा: – उर्वरता, विकास और समृद्धि का प्रतीक
अशोक चक्र: – सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र जोड़ा गया, जिसे अशोक चक्र कहा जाता है. यह धर्मनिरपेक्षता और सत्य का प्रतीक है.
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान तिरंगे को भारत का राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया. 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के दिन, तिरंगा पहली बार लाल किले पर फहराया गया.
राष्ट्रीय ध्वज के कुछ महत्वपूर्ण नियम: –
भारतीय तिरंगा “भारतीय ध्वज संहिता” के तहत आता है. इसे फहराने के कुछ विशेष नियम हैं, जैसे इसे कभी भी जमीन को छूने नहीं देना चाहिए और सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही फहराया जाना चाहिए.
भारतीय तिरंगा न केवल भारत की स्वतंत्रता संग्राम का गवाह है, बल्कि यह देश की विविधता, एकता और गर्व का प्रतीक भी है. इसका हर रंग और प्रतीक देशवासियों के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत है. तिरंगा हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की भावना जगाता है.
विस्तृत जानकारी के लिए भारतीय ध्वज संहिता को पढ़े.
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History of Indian Tricolor…
All the countries of the world have different identities, some have national symbols, some have animals or birds, and some have fruits or songs, and some have national flags. National things are made by choosing from the good things of any country, which is the symbol of that country. India is different from all the countries of the world and its identity is the national flag which we all know as the tricolor. Today we turn the pages of history to know about the development of the creation of the tricolor.
Let us tell you that, when Raja Ram Mohan Roy was going to England, he saw the flag fluttering on the French ship, and then he also felt that, I wished our country also had a flag. But he did not take any step in this direction. When our country was struggling for freedom from the slavery of the British government, then the freedom fighters felt the need for a symbol or say a flag, since the flag is considered a symbol of the expression of freedom. When the movement against the British intensified in India, Sister Nivedita, a disciple of Swami Vivekananda, designed the flag. This flag was used during the protest against the Bengal partition.
Let us tell you that the first national flag was hoisted on 07 August 1906 at Parsi Bagan Chowk (Green Park) Calcutta (now known as Kolkata). This flag was made of red, yellow and green horizontal stripes. Eight lotus and ‘Vande Mataram’ were written on it.
The second national flag was hoisted in Paris by Madam Cama and exiled revolutionaries. This flag was also similar to the first flag but it had only one lotus on the topmost strip and seven stars representing Saptarishi. This flag was also displayed at the Socialist Conference held in Berlin.
The third national flag was hoisted by Dr. Annie Besant and Lokmanya Tilak in the year 1917 during the movement. This flag had 5 red and 4 green horizontal stripes one after the other and seven stars in the Saptarishi orientation. There was a Union Jack on the pole on the left and upper corner and a white crescent and sitar on one corner.
In the year 1921, the session of the All India Congress Committee was organized in Vejwada (Vijayawada). During that time, a youth from Andhra Pradesh made a flag and gave it to Mahatma Gandhi which was made of two colours. This flag had red and green colors which represented two communities. Then Gandhiji suggested that there should be a white stripe to represent the rest of the communities of India and a spinning wheel to indicate the progress of the nation.
In the year 1931, a resolution was also passed to adopt the tricolor as the national flag which is the ancestor of the present form. This flag had saffron, white and Gandhiji’s spinning wheel in the middle.
The designer of the tricolor was Pingali Venkayya. He designed a flag that had three colours: saffron, white and green.
Significance of colours: –
Saffron: – Symbol of bravery and sacrifice
White: – Symbol of peace and truth
Green: – Symbol of fertility, growth and prosperity
Ashoka Chakra: – A blue circle was added in the middle of the white strip, called the Ashoka Chakra. It is a symbol of secularism and truth.
On 22 July 1947, the Constituent Assembly declared the current tricolour as the national flag of India. On 15 August 1947, on the day of India’s independence, the tricolour was hoisted for the first time at the Red Fort.
Some important rules of the national flag: –
The Indian tricolor comes under the “Indian Flag Code”. There are some special rules for hoisting it, such as it should never be allowed to touch the ground and it should be hoisted only between sunrise and sunset.
The Indian tricolor is not only a witness to India’s freedom struggle, but it is also a symbol of the country’s diversity, unity and pride. Every colour and symbol of this is a source of pride and inspiration for the countrymen. The tricolor awakens the feeling of patriotism in the heart of every Indian.
Read the Indian Flag Code for detailed information.