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गुरु या व्यास पूर्णिमा…

गुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ महीने की “पूर्णिमा” के दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. वेदव्यास जी ने महाभारत एवं श्रीमद्भागवत सहित 18 पुराणों एवं 18 उपनिषदों की रचना की थी. इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.

 ‘गुरु’ दो अक्षरों से मिलकर बना एक शब्द है जिसका अर्थ होता है… अंधकार को दूर कर प्रकाश की ओर ले जाना… या यूँ कहें कि, गुरु वह है जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाना वाला ही गुरु होता है. पौराणिक ग्रंथों में भी गुरु तत्व की प्रशंसा की गई है.  ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक नहीं हुआ है. प्रत्येक गुरु भी दूसरे गुरु को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान देतें है.  गुरु ने जो भी नियम बताए हैं उन नियमों पर श्रद्धा से चलना शिष्य का परम कर्तव्य होता है. गुरु का कार्य नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं को हल करना भी होता है.

हिन्दू संस्कृति को गुरु का महत्व विशेष होता है पौराणिक ग्रंथों में भी कई कहानियों में गुरु शिष्य परम्परा का वर्णन मिलता है. अनादि काल से ही गुरु की सलाह सिर्फ आध्यात्म या धार्मिकता तक ही सीमित नहीं रही है, बल्कि  देश पर राजनीतिक विपदा आने पर गुरु ने देश को उचित सलाह देकर विपदा से उबाराते भी हैं. एक श्लोक के अनुसार- यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु के जैसी भक्ति की आवश्यकता होती है, वैसी देवता के लिए भी होती है. सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव होता है, गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं होता है.

गुरु की महिमा के अनुसार ही उन्हें ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है. शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों में जैसे… ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है. गुरु को ही ब्रह्मा कहा गया,  क्योंकि वह शिष्य को बनाता है, नव जन्म देता है. गुरु, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है. संत कबीर कहते हैं -‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर.’ कहने का तात्पर्य है कि, भगवान के रूठने पर तो गुरू की शरण ही रक्षा कर सकती है, किंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना सम्भव नहीं होता है. जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरू से उपनिषद् की तीनों अग्नियाँ भी थर-थर काँपती हैं.

त्रोलोक्यपति भी गुरू का ही गुणनान किया करते है. ऐसे गुरू के रूठने पर कहीं पर कहीं भी ठौर नहीं मिलता. कबीर दास जी कहते है… सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार लोचन अनंत, अनंत दिखावण हार – अर्थात सद्गुरु की महिमा अपरंपार है. वे शिष्यों पर अनंत उपकार करते है, विषय-वासनाओं से बंद शिष्य की बंद ऑखों को ज्ञान चक्षु द्वारा खोलकर उसे शांत ही नहीं, अनंत तत्व ब्रह्म का दर्शन भी करावा देते हैं.

गुरु पूर्णिमा के दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं. ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी अति उत्तम होते हैं, न तो अधिक गर्मी और न ही अधिक सर्दी, इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं. जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है.

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Guru or Vyas Purnima…

Guru Brahma Guru Vishnu Gurudevo Maheshwarah:

Guru Sakshat Param Brahma Tasmay: Shree Gurave Namah:।।

According to mythological texts, Maharishi Ved Vyas ji was born on the day of “Purnima” in the month of Ashadh. Ved Vyas ji composed 18 Puranas and 18 Upanishads including Mahabharata and Shrimad Bhagwat. Therefore, this day is also called Vyas Purnima.

‘Guru’ is a word made up of two letters which means… to remove darkness and lead towards light… or in other words, Guru is the one who removes the darkness of ignorance and leads towards the light of knowledge. The guru element has been praised in mythological texts as well. There may be differences of opinion about the existence of God, but there has been no difference of opinion about the Guru to date. Every Guru also gives full respect to the other Guru with respect, praise, and worship. It is the ultimate duty of the disciple to follow the rules given by the Guru with devotion. The Guru’s job is also to solve moral, spiritual, social, and political problems.

The Guru has a special importance in Hindu culture. The Guru-disciple tradition is described in many stories in mythological texts. Since time immemorial, the Guru’s advice has not been limited to spirituality or religion, but when the country faces a political crisis, the Guru also gives proper advice and saves the country from the crisis. According to a shloka – ‘Yasya deve para bhaktiryatha deve tatha guru’, the kind of devotion that is required is also required for the deity. With the grace of Sadguru, it is possible to see God, nothing is possible without the grace of the Guru.

According to the glory of the Guru, he has been given a higher position than God. In the scriptures, the Guru has been accepted as God in various forms like Brahma, Vishnu, and Maheshwar. The Guru is called Brahma because he creates the disciple, and gives him a new birth. Guru is also Vishnu because he protects his disciple. Guru is also Maheshwar himself because he destroys all the faults of his disciple. Saint Kabir says – ‘If God is angry, Guru is at his place, if Guru is angry, there is no place.’ It means that, if God is angry, only Guru’s shelter can protect you, but if Guru is angry, it is not possible to find shelter anywhere. The Guru whom Brahmins call Acharya, Buddhists call Kalyanmitra, Jains call Tirthankar and Muni, Naths and Vaishnav saints and Buddhist Siddhas call the worshipable Sadguru, the three fires of Upanishads tremble in front of that Shri Guru.

The Lord of the three worlds also praises Guru. If such a Guru is angry, there is no place to be found anywhere. Kabirdas ji says… The glory of Satguru is infinite, he has done infinite favors, his eyes are infinite, and he shows infinite – that is, the glory of Sadguru is limitless. They do infinite favors to their disciples; they open the closed eyes of the disciples, which are closed due to worldly desires, with the eye of knowledge and not only give them peace but also make them see the infinite element, Brahma.

For four months from the day of Guru Purnima, the wandering saints stay in one place and spread the Ganga of knowledge. These four months are also very good from the weather point of view; neither too hot nor too cold, therefore they are considered suitable for study. Just as the land heated by the heat of the sun gets coolness and the power to produce crops from rain, similarly the seekers present at the feet of the Guru get the power to attain knowledge, peace, devotion, and yogic power.

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