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गरिमा गुरु की….!

“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः”

सनातन संस्कृति में गुरु या शिक्षक को ब्रह्मा, विष्णु और महेश से परे बताया गया है. गुरु तो साक्षात परब्रह्म हैं और ऐसे गुरु को मेरा नमन है, प्रणाम है, दंडवत है….

सदी बदल गई साथ ही सोच, सम्मान और मानसिकताएं भी बदल गई. 20वीं सदी से 21वीं सदी में प्रवेश कर गए। क्या ऊपर लिखे स्त्रोत से मेल खाती है वर्तमान समय के “गुरु की गरिमा”! 21वीं सदी में प्रवेश करते ही आभासी दुनिया (डिजिटल वर्ल्ड) के मायाजाल से चकित और भ्रमित हो रहें हैं. अब ज्ञान की सीमा-रेखा ही बदल गई है. कभी, ज्ञान गुरुकुल या कक्षा तक ही सीमित था लेकिन आज ज्ञान आपके घर तक या यूँ कहें कि, आपके हाथों की उँगलियों में सिमट गई है.

डिजिटल दुनिया में गुरु के नाम भी बदल गए हैं अब यूट्यूब और गूगल को “गुरु” कहा जाता है. वर्तमान समय के दौर में  इंटरनेट ने हर किसी को “गुरु” बना दिया है. जबकि, आज भी शिक्षकों की भूमिका केवल पाठ्यक्रम पूरा करने तक सीमित हो गई है. गुरु का वह भाव—जो शिष्य के जीवन को नई दिशा देता था वो कहीं खोता जा रहा है. साथ ही शिक्षा का व्यावसायीकरण भी गुरु-शिष्य संबंध को प्रभावित किया है. शिक्षा के व्यावसायीकरण में “गुरु” को कर्मचारी और छात्र को एक ग्राहक के रूप में देखा जाता है. वहीं, दूसरी ओर अंकों और डिग्रियों की दौड़ में गुरु-शिष्य संबंध की आत्मीयता और आध्यात्मिकता भी क्षीण हो गई है.

कभी शिक्षा सेवा हुआ करता था आज  व्यवसाय बन गया है. आज “गुरु” की गरिमा बाज़ार के मूल्यांकन से तय होती है. कुछ अपवादों ने गुरु की छवि को कलंकित किया है, जिससे समाज में संदेह की भावना बढ़ी है. आज का शिष्य “गुरु से सीखना” नहीं, “गुरु को चुनौती देना” चाहता है. इंटरनेट पर ज्ञान की उपलब्धता ने गुरु की प्रतिष्ठा को कम करने में अहम् भूमिका निभाई है. छात्र अब किसी भी विषय के बारे में जानकारी खुद से ही खोज सकते हैं, और कई बार वे गुरु की बात पर तुरंत विश्वास करने की बजाय खुद से क्रॉस-चेक करते हैं. यह आलोचनात्मक सोच अच्छी है, परंतु श्रद्धा के बिना ज्ञान अधूरा रह जाता है.

योग, ध्यान और वेदांत के पुनरुत्थान ने गुरु की भूमिका को फिर से प्रासंगिक बनाया है वहीं, कुछ शिक्षक आज भी अपने शिष्यों के जीवन को नई दिशा दे रहे हैं. गुरु की गरिमा पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है. कुछ जगहों पर बनी हुई है जहां गुरु सिर्फ पढ़ाते नहीं, बल्कि अपने छात्रों को जीवन में सही-गलत का अंतर बताते हैं, उनकी गरिमा आज भी बनी हुई है. छात्र ऐसे गुरुओं को न केवल शिक्षक, बल्कि एक संरक्षक और सलाहकार के रूप में देखते हैं.

आज के दौर में गुरु की परिभाषा भी बदल गई है. अब गुरु वह है जो केवल ज्ञान नहीं देता, बल्कि शिष्य को आत्म-चिंतन और आत्म-निर्माण की ओर प्रेरित करता है.21वीं सदी में गुरु की गरिमा संकट में है, परंतु समाप्त नहीं हुई है, वो रूपांतरण के दौर से गुजर रही है…

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं…

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