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गणेशशंकर विद्यार्थी जयंती

गणेशशंकर विद्यार्थी जयंती हर वर्ष  26 अक्टूबर को मनाई जाती है. गणेशशंकर विद्यार्थी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और समाज सुधारक थे. उनका जन्म 26 अक्टूबर 1890 को हुआ था. विद्यार्थी ने न केवल भारत की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि उन्होंने अपने लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से भी जन जागरूकता फैलाने का काम किया.

विद्यार्थी  ने ‘प्रताप’ नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों के दमनकारी शासन के खिलाफ आवाज उठाई और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया. उनके लेखों में सामाजिक अन्याय, अत्याचार, और ब्रिटिश साम्राज्य के शोषण के खिलाफ तीखा विरोध होता था, जिससे वे एक शक्तिशाली पत्रकार के रूप में पहचाने जाने लगे.

गणेशशंकर विद्यार्थी एक निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता को राष्ट्रसेवा का माध्यम बनाया. वर्ष 1931 में कानपुर में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के प्रयास में उनकी मृत्यु हो गई. उनका जीवन बलिदान और सेवा का प्रतीक माना जाता है, और उनकी जयंती पर उन्हें याद कर उनके योगदान का सम्मान किया जाता है.

उनकी विरासत को स्वतंत्रता संग्राम, पत्रकारिता, और समाज सुधार के क्षेत्र में अत्यधिक सम्मान के साथ देखा जाता है, और उनकी जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और श्रद्धांजलियों के माध्यम से उनके योगदान को याद किया जाता है.

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Ganesh Shankar Vidyarthi Jayanti

Ganesh Shankar Vidyarthi Jayanti is celebrated every year on 26 October. He was a famous freedom fighter, journalist, and social reformer who was born on 26 October 1890. Vidyarthi not only played an important role in India’s freedom struggle but also worked to spread public awareness through his writings and journalism.

Vidyarthi started a weekly newspaper called ‘Pratap’, in which he raised his voice against the oppressive rule of the British and inspired people to fight for freedom. His articles contained sharp opposition against social injustice, atrocities, and exploitation of the British Empire, which made him known as a powerful journalist.

Ganesh Shankar Vidyarthi was a fearless freedom fighter who made his journalism a medium of national service. He died in the year 1931 in an attempt to stop communal violence in Kanpur. His life is considered a symbol of sacrifice and service, and his contribution is honoured by remembering him on his birth anniversary.

His legacy is viewed with great respect in freedom struggle, journalism, and social reform and his contributions are remembered through various events, seminars, and tributes on his birth anniversary.

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