पहली भारतीय महिला
मुम्बई प्रेसीडेंसी में लड़कियों के स्कूल 1827 से हैं, पर अधिकतर मिशनरियों के थे, आम हिंदुस्तानी जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनो थे, वो अपनी बच्चीयों का वहाँ नही भेजा करते, क्यूँकि उन्हें धर्म-परिवर्तन का ख़ौफ़ था।उस समय उस्मान शेख़ अपने इलाक़े के पहले आदमी हैं जिन्होंने अपने घर की औरतों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा। उनकी बहन फ़ातिमा शेख़ उस इलाक़े की पहली महिला थी, जो पढ़ने के लिए स्कूल गईं।
ज्योतिबा फुले जिनकी शादी बहुत ही कम उम्र में सावित्रीबाई फुले से हुई थी, उन्होंने अपनी पत्नी को भी फ़ातिमा शेख़ के साथ 1840 के दहाई में स्कूल पढ़ने के लिए भेजा।ज्ञात हो के सावित्रीबाई फुले का 3 जनवरी 1831 को जन्म हुआ और फ़ातिमा शेख़ का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ। इस तरह से बचपने में ही फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले एक दूसरे की सहयोगी बनी।फुले ने पहले दलितों और फिर महिलाओं के उत्थान के लिए काम शुरू किया तब उन्हें उनके परिवार वालों ने सामाजिक बहिष्कार के डर से घर से निकाल दिया, तब फ़ातिमा शेख़ के बड़े भाई उस्मान शेख़ ने ही उन्हें अपने घर में जगह दी।उस्मान शेख़ ने ज्योतिबा फुले को उस मुश्किल समय में बेहद अहम सहयोग दिया, जब उनके घर वाले उनके विरोध में उतर गए थे।
उस्मान शेख़ ने मोरल के साथ पैसे से भी ज्योतिबा फुले की मदद की।जब ज्योतिबा और सावित्री फुले ने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का बीड़ा उठाया, तब फ़ातिमा और उस्मान शेख़ ने भी इस मुहिम में उनका भरपूर साथ दिया। ये वो दौर था जब महिलाओं को तालीम से महरूम रखा जाता था, पिछड़ी जातियों पर तालीम के दरवाज़े बंद थे और ज्योतिबा फुले की जान लेने की कोशिश की गयी थी।किसी भारतीय द्वारा हिंदुस्तान में लड़कियों का पहला स्कूल 1848 में खोला था, ये स्कूल फ़ातिमा शेख़ के भाई उस्मान शेख़ के घर में खोला गया, क्यूँकि स्कूल खोलने वालों में फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले नाम सबसे ऊपर है।
उस ज़माने में अध्यापक मिलने मुश्किल थे। फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई के साथ स्कूल में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी संभाली। इसके लिए उन्हें समाज के विरोध का भी सामना करना पड़ा।1856 में सावित्री फुले काफ़ी बीमार पड़ गई, तब उन्होंने अपने शौहर ज्योतिबा फुले को ख़त लिख कर बताया के फ़ातिमा को अकेले ही बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है, और ये उसके काँधे पर बहुत बड़ा बोझ देने जैसा है।ज्योतिराव और सावित्रीबाई फूले के योगदान को तो इतिहास ने दर्ज किया है लेकिन शुरुआती लड़ाई में उनकी सहयोगी रहीं फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख़ का उल्लेख आज तक नही हो पाया था, लेकिन इसकी कोशिश होती रही, गुंटूर के रहने वाले इतिहासकार सैयद नसीर अहमद ने फ़ातिमा शेख़ पर किताब कई भाषा में लिखा है इसके इलावा 9 जनवरी 2022 को फ़ातिमा शेख़ की 191वीं जयंती पर युगल ने डूडल बना कर उन्हें ख़िराज ए अक़ीदत पेश किया है। जिससे एक बार फिर ये उम्मीद बढ़ी है की नारी शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर सरोकार रखने वाले लोग फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख़ के योगदान की और भी खोजबीन करेंगे।
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There are girls’ schools in the Bombay Presidency since 1827, but most of them were run by missionaries, common Indians, both Hindus and Muslims, did not send their girls there because they were afraid of religious conversion. He is the first man who sent the women of his house to school to study. His sister Fatima Shaikh was the first woman in the area to go to school to study.
Jyotiba Phule, who was married to Savitribai Phule at a very young age, sent his wife along with Fatima Shaikh to study at school in the 1840s. Savitribai Phule was born on January 3, 1831, and Fatima Shaikh was Born on 9 January 1831 in Pune. In this way, Fatima Sheikh and Savitribai Phule became allies with each other in their childhood. Phule first started working for the upliftment of Dalits and then women, then he was thrown out of the house by his family for fear of social boycott, then Fatima Sheikh Jyotiba Phule’s elder brother Usman Sheikh gave him a place in his house.
Usman Sheikh helped Jyotiba Phule with morals as well as money. When Jyotiba and Savitri Phule took the initiative to open a school for girls, Fatima and Usman Sheikh also supported them in this campaign. This was the period when women were kept away from education, the doors of education were closed on backward castes and Jyotiba Phule’s life was attempted. The first school for girls in India was opened in 1848 by an Indian, It was opened in the house of Usman Sheikh, brother of Fatima Sheikh because the names of Fatima Sheikh and Savitribai Phule are at the top among those who opened the school.
In those days it was difficult to find teachers. Fatima Sheikh also took over the responsibility of teaching in the school along with Savitribai. For this, she also had to face the opposition of society. In 1856, Savitri Phule fell very ill, then she wrote a letter to her husband Jyotiba Phule and told him that Fatima had to teach the children alone, and it was a lot on her shoulder. It is like giving a big burden. History has recorded the contribution of Jyotirao and Savitribai Phule, but Fatima Shaikh and Usman Shaikh, who were their allies in the initial battle, could not be mentioned to date, but efforts are being made, the residents of Guntur Historian Syed Naseer Ahmed has written a book on Fatima Shaikh in many languages. Apart from this, on January 9, 2022, on the 191st birth anniversary of Fatima Shaikh, the couple made a doodled and presented Khiraj-e-Aqidat to her. Due to this once again the hope has increased that the people who are concerned about the question of women’s education and secularism will further investigate the contribution of Fatima Shaikh and Usman Shaikh.