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एहसास …

राहुल अपने ऑफिस की खिड़की से बारिश को देख रहा था. बूंदों की आवाज़ और पेड़ों की हरियाली उसे कहीं दूर ले जा रही थी. तभी उसका फोन बजा – “पापा, आज आप घर जल्दी आ जाओ ना? मैंने आपके लिए स्कूल में एक ड्रॉइंग बनाई है!” उसकी आठ साल की बेटी अनामिका की आवाज़ सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई.

“हाँ बेटा, आज जरूर आऊँगा,” कहकर उसने फोन रख दिया. लेकिन तभी उसके बॉस ने कमरे में प्रवेश किया – ” राहुल, यह प्रोजेक्ट आज रात तक चाहिए. आपको लेट होना पड़ेगा.”  राहुल ने सोचा, “चलो, आज फिर देर हो जाएगी. बेटी तो समझ जाएगी.” उसने अनामिका को मैसेज किया – “बेटा, आज थोड़ी देर से आऊँगा. तुम खाना खाकर सो जाना.”

लेकिन जब वह रात को 11 बजे घर पहुँचा, तो अनामिका सोफे पर ड्रॉइंग थामे, सो चुकी थी. ड्रॉइंग में पापा-बेटी हाथ में हाथ डाले खड़े थे, और ऊपर लिखा था – “मेरे पापा दुनिया के सबसे बेस्ट हैं!” राहुल  का दिल भर आया. उसने अपनी बेटी को गोद में उठाया और उसके माथे को चूम लिया. तभी उसकी नज़र ड्रॉइंग के पीछे लिखी लाइन पर पड़ी – “पापा, कल आप मेरे साथ पार्क चलोगे ना? मैंने आज भी इंतज़ार किया…”

उस रात राहुल की नींद उड़ गई. उसे एहसास हुआ कि उसकी “जरूरतें” उसके बच्चे के “इंतज़ार” से बड़ी नहीं हो सकतीं. क्या पैसा और प्रोजेक्ट उसकी बेटी के सपनों से ज्यादा महत्वपूर्ण थे? अगली सुबह, उसने ऑफिस में अपने बॉस से कहा – “सर, आज मुझे जल्दी जाना है. मेरी बेटी मेरे साथ पार्क जाना चाहती है.” उस दिन पार्क में अनामिका ने झूले पर खेलते हुए कहा – “पापा, आज मेरा सबसे अच्छा दिन है!” राहुल  ने महसूस किया कि सच्ची खुशी बस इतनी दूर थी, जितनी उसकी बेटी की मुस्कान.

कभी-कभी जिंदगी हमें छोटे-छोटे एहसास देती है, जो बड़े से बड़े सुख को मात दे देते हैं. वक्त निकालिए… क्योंकि बच्चे बड़े हो जाते हैं, लेकिन पल वापस नहीं आते….

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