story

इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी

स्थान:

मनोरोग अस्पताल का ECT रूम, सुबह 5:30 बजे

धुँधली लाइट्स, मेटलिक बेड की ठंडक, एंटीसेप्टिक की गंध

प्रक्रिया से पहले-

नलिन को चार नर्सों ने बेड पर बाँधा. उसकी आँखें डरी हुई थीं, पर होंठ गायत्री का नाम दोहरा रहे थे.

डॉ. मल्होत्रा (गायत्री से)-

“आखिरी मौका… क्या आप उसके लिए यहाँ रहेंगी?”

गायत्री (दृढ़ता से)-:

“मैं उसके हर दर्द का हिस्सा बनूँगी.”

ECT का पहला झटका

मशीन चालू हुई – बीप की आवाज़ ने कमरे को भर दिया

नलिन का शरीर – तारों से जुड़ा हुआ अचानक ऐंठ गया

गायत्री की आँखें – उसके हाथों से चाय का कप गिरा

नलिन की चीख-

“गायत्री… मत जाना… मैं…”

दिमाग में चल रही फिल्म

झटके के बीच नलिन के भ्रमित विचार-:

पहली डेट – कैफे में गायत्री की हँसी

झगड़े – टूटे हुए फोन और चिल्लाते हुए शब्द

अकेलेपन – शराब की बोतलों के बीच रोते हुए

गायत्री (अपने आप से)-

“क्या मैं उसके दर्द का कारण हूँ?”

प्रक्रिया के बाद

नलिन बेहोश पड़ा था. डॉक्टर ने गायत्री को बताया-

“उसकी याददाश्त के कुछ हिस्से मिट सकते हैं… शायद आप भी.”

गायत्री ने उसके पसीने से तर माथे को पोंछा. तभी नलिन ने आँखें खोलीं – पहचानने की कोशिश करती हुईं.

नलिन (कमज़ोर आवाज़ में)-

“आप… आप कौन…?”

नैतिक दुविधा: क्या यह इलाज है या यातना?

प्रेम की परीक्षा: क्या गायत्री एक ऐसे व्यक्ति से प्यार कर सकती है जो उसे याद न रखे?

विज्ञान की सीमा: ECT दर्द मिटा सकता है, पर क्या प्रेम भी मिट जाएगा?

शेष भाग अगले अंक में…,

:

Related Articles

Back to top button