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अर्थशास्त्र से संबंधित – 160.

Q: – What is meant by effective demand? What is its importance in determining the level of income and employment?

According to Prof. Keynes, the root cause of unemployment is the decrease in demand. Impact demand is the aggregate demand of society and is determined by the aggregate demand function (ADF) and the collective supply function (ASF). That is, impact demand is where the aggregate demand and supply lines are in equilibrium.

 Collective demand = Collective supply

Collective demand –

Collective demand refers to the aggregate demand of society. This means that when more workers are given employment, as a result, the amount of production will increase, due to which the adventurers will also get more amount of money.

Collective Fulfillment –

The Sahasi class employs only as much labour force as can be remunerated. For this, Sahasi must get at least the cost price of the production. If he does not get the minimum wage, he will stop production and the workers will become unemployed.

Determination of employment level by effective demand point

Effective demand is the point at which the aggregate demand curve and the supply curve intersect. It is at this point that the level of employment is determined.

The three positions of the aggregate demand and collective supply curves can be as follows.

  1. First – If the total actual receipts of the adventurer exceed the total cost, then the adventurer benefits and gets an incentive to increase the level of production and employment.
  2. Second – If the total actual receipts of the adventurer are less than the total cost, then the adventurer has to be costed, in such a situation, the adventurer induces a reduction in production and employment.
  3. Third – This has to be the situation in which the actual receipts are equal to the total cost, this is called the point of equilibrium which Keynes called the ‘effective demand point’.

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प्र० – प्रभावी माँग से क्या आशय है ? आय और रोजगार के स्तर को निर्धारित करने में उसका क्या महत्व है ?

प्रो0 कीन्स के अनुसार, बेरोजगारी का मूल कारण प्रभाव माँग में कमी हो जाना है. प्रभाव माँग समाज की कुल माँग है और सामूहिक माँग फलन (ADF)  तथा सामूहिक पूर्ति फलन (ASF)  द्वारा निर्धारित होती है. अर्थात प्रभाव माँग वह बिन्दु है जहाँ पर सामूहिक माँग तथा सामूहिक पूर्ति रेखाएँ साम्य की दशा में होती है.

 सामूहिक माँग = सामूहिक पूर्ति

सामूहिक माँग –

सामूहिक माँग का अभिप्राय समाज की सम्पूर्ण माँग से है. इसका अर्थ यह हुआ कि जब अधिक श्रमिकों को रोजगार दिया जायेगा तो उसके फलस्वरूप उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होगी, जिससे साहसियों को भी अधिक मात्रा में द्रव्य की प्राप्ति होगी.

सामूहिक पूर्ति –

सहसी वर्ग केवल उतनी ही श्रम शक्ति को रोजगार देता है जितना उसे पारिश्रमिक दिया जा सके. इसके लिए सहसी को उत्पादन का कम-से-कम लागत मूल्य अवश्य प्राप्त होना चाहिये। अगर उसे न्यूनतम प्राप्तियाँ प्राप्त नहीं होगी तो वह उत्पादन कार्य बन्द कर देंगें और श्रमिक बेरोजगार हो जायेगें.

प्रभावी माँग बिन्दु के द्वारा रोजगार स्तर का निर्धारण –

प्रभावी माँग वह बिन्दु है जिस पर सामूहिक माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते है। इसी बिन्दु पर रोजगार का स्तर का निर्धारण होता है.

सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति वक्रों की तीन स्थितियों इस प्रकार हो सकती है.

  1. प्रथम – यदि साहसी की कुल वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत से अधिक है, तो साहसी को लाभ होता है और उसे उत्पादन तथा रोजगार के स्तर में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है.
  2. द्वितीय – यदि साहसी की कुल वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत से कम है, तो साहसी को होने लागती है ऐसी दशा में साहसी उत्पादन तथा रोजगार में कमी कने के लिए प्रेरित करती है.
  3. तृतीय – यह वह स्थिति होनी है जिसमें वास्तविक प्राप्तियाँ कुल लागत के बराबर होती है, यही साम्य का बिन्दु कहलाता है जिसे कीन्स ने प्रभावी माँग बिन्दु कहा है.
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