विवेक…
रंग न देखो रूप न देखी की तर्ज पर पटना शहर को खूबसूरत बनाने होड़ में अब आम आवाम भी शामिल हो चुकी है.
टेक्नीकल मुख्यमंत्री के राज्य में पेड़ पौधों को सामुल्य नाश कर विकसित पटना का निर्माण चल रहा है. वहीं, शहर के निवासी पहले से ही अवैध अतिक्रमण कर सड़कों को गलियों में तब्दील कर दिया था. अब वही आवाम अपने घर के आगे के सड़क को अवैध कब्जा कर पेड़ लगा रहे है. जिससे शहर खूबसूरत ब आकर्षक हो जाय. इस नेक काम में मंदिर प्रशासन भी बढ़ चढ़ कर भाग ले रहें है!
शहर में पहले से ही अतिक्रमण कर सड़क पर घर और दुकान बना रहे थे लेकिन, आलम ये है जनाब की अब वही पब्लिक घर के आगे बागीचे लगा रहे है. इस नेक कर्म में शामिल है विशेष प्रजाति के लोग व मंदिर भी शामिल हो रहें है. इस तरह की घटना कंकड़बाग में नगर प्रशासन के नाक के नीचे घटित हो रही है.
कुर्सी की अपनी मर्यादा होती है चाहे वो राजगद्दी हो या आम आवाम की सरकारी कुर्सी. कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति होता तो आम आदमी ही है लेकिन, कुर्सी पर बैठते ही उसके रंग रूप और तेवर ही बदल जाते हैं. ऐसा लगता है मानो उनके भी सिंग निकल गए हो!
सरकारी कुर्सी पर बैठने वाले लोग आवाम की गाढ़ी कमाई पर ऐश तो करते ही है परंतु उसी आवाम को सरकारी कुर्सी पर बैठे हुए लोग से काम पड़ जाय तो देखिए उनकी अकड़ को …. भारतीय संविधान की मर्यादा को ताक पर रखकर नए नवाब के अकड़ को देख कर आम आवाम का खून पानी हो जाता है. आम आवाम बस यही सोचकर रह जाता है काश कुर्सियां तो बदलती रहती है पर बैठने वालों के विवेक भी बदल जाता तो कितना अच्छा हो जाता. लेकिन आवाम की ये सोच चंद लोगों के अहम से टकराव होने लगती है और अंजाम ये गुलशिता क्या होगा राम जाने?
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Vivek…
On the lines of ‘Rang Na Dekhi, Roop Na Dekhi’, now the common people have also joined the race to make Patna city beautiful.
In the state of the technical Chief Minister, the construction of developed Patna is going on by destroying trees and plants. At the same time, the residents of the city had already converted the roads into lanes by encroaching illegally. Now the same people are illegally occupying the road in front of their houses and planting trees. So that the city becomes beautiful and attractive. The temple administration is also participating enthusiastically in this noble work!
In the city, houses and shops were already being built on the road by encroaching, but the situation is such that now the same public is planting gardens in front of the houses. People of a special species and temples are also participating in this noble work. Such incidents are happening in Kankarbagh under the nose of the city administration.
A chair has its own dignity, whether it is the throne of the king or the government chair of the common man. The person sitting on the chair is a common man but, as soon as he sits on the chair, his appearance and attitude change. It seems as if he has also grown horns!
The people sitting on the government chair enjoy themselves on the hard earned money of the public but if the same public needs any work from the people sitting on the government chair, then look at their arrogance…. Keeping the dignity of the Indian Constitution aside, seeing the arrogance of the new Nawab, the blood of the common man boils. The common man is left thinking that if only the chairs keep changing but the wisdom of the people sitting on it would also change, then how good it would be. But this thinking of the public starts clashing with the ego of a few people and only God knows what will be the result of this garden?