वीरान शहर और अजीब पहेली-1.
वीरान शहर की तंग गलियों में, जहाँ घुमावदार रास्ते एक अजीबोगरीब भूलभुलैया बनाते थे, हवा भी घुटी-घुटी सी महसूस होती थी. इन गलियों में साँसें लेती थीं कुछ मासूम जिंदगियाँ, जो खुद एक पहेली बन गई थीं इन्हीं जिंदगियों के बीच था चंचल, नाम के अनुरूप ही चंचल स्वभाव का, पर एक अजीब बीमारी और अपने मन से जूझता हुआ. उसकी दुनिया में रोशनी की किरण थी उसकी प्रेमिका रीटा.
चंचल के पिता, उदय, शहर के इसी सन्नाटे में अपना जीवन बसर कर रहे थे. उनकी पत्नी लीला, अपनी ममता से घर को जोड़े रखने की कोशिश करती थीं. परिवार की जड़ों में थे दादा प्रवेश और दादी कल्पना, जिनकी पुरानी यादें इस वीरान शहर में कभी-कभी एक हल्की मुस्कान ले आती थीं. यह उनका छोटा सा परिवार ही नहीं, बल्कि पूरा समाज ही एक बड़ी पहेली में उलझा हुआ था.
चंचल की बीमारी ने उसके जीवन में एक गहरा सन्नाटा भर दिया था. डॉक्टर भी उसकी हालत को पूरी तरह समझ नहीं पा रहे थे. जब उसका मन भीतर ही भीतर घुटने लगता, तो रीटा ही थी जो अपने प्यार और कल्पना से उसे सहारा देती. रीटा, एक शांत और समझदार लड़की, चंचल की उथल-पुथल भरी दुनिया में एक स्थिर ध्रुव थी. उसके लिए चंचल का प्यार एक ऐसी पहेली था जिसे वह सुलझाना चाहती थी, और चंचल की कल्पनाएँ, जो कभी-कभी बेतरतीब होतीं, उसे रीटा के और करीब लाती थीं.
चंचल के दो दोस्त थे, सूरज और उमेश। सूरज, नाम के अनुरूप ही हमेशा ऊर्जा से भरा रहता था और चंचल को हिम्मत देता रहता था. उमेश, थोड़ा शांत स्वभाव का, चंचल की बातों को ध्यान से सुनता और उसे सोचने के लिए प्रेरित करता. तीनों दोस्त अक्सर शहर के उन वीरान कोनों में बैठते जहाँ पुरानी इमारतों के खंडहर किसी अनसुनी कहानी का पता देते थे. उन्हीं खंडहरों में चंचल को अपनी पहेली का एक सिरा मिला था.
एक दिन, चंचल को अपनी बीमारी के दौरान कुछ अजीब सपने आने लगे। सपने में उसे एक पुराना नक्शा दिखाई देता था, जिसमें शहर की तंग गलियों के बीच कुछ रहस्यमयी निशान थे. उसे लगने लगा कि उसकी बीमारी और यह शहर की पहेली आपस में कहीं जुड़ी हुई हैं. उसने सूरज और उमेश को अपने सपनों के बारे में बताया. शुरुआत में उन्हें यकीन नहीं हुआ, पर चंचल की बातों में एक अजीब सच्चाई थी जो उन्हें खींचती चली गई.
रीटा भी इस खोज में उनके साथ हो गई. वह चंचल के सपनों के प्रतीकों को समझने की कोशिश करती थी और उसे विश्वास दिलाती थी कि वे इस पहेली को सुलझा लेंगे. दादी कल्पना, जो अपनी उम्र के कारण अक्सर पुरानी बातें दोहराती थीं, अनजाने में ही उन्हें कुछ ऐसे सुराग दे गईं जो नक्शे के कुछ हिस्सों से मेल खाते थे. दादा प्रवेश, अपनी गहरी चुप्पी के बावजूद, कभी-कभी एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ उनकी बातों को सुनते थे, मानो उन्हें भी इस पहेली का कुछ अंश ज्ञात हो.
यह वीरान शहर, जहाँ हर गली एक नया मोड़ लेती थी और हर मोड़ पर एक अनकहा रहस्य छिपा था, अब चंचल और उसके दोस्तों के लिए एक विशाल पहेली बॉक्स बन गया था. क्या वे चंचल की बीमारी का रहस्य सुलझा पाएंगे? क्या इस वीरान शहर में छिपा कोई प्राचीन रहस्य उनके इंतजार में था? उनकी यह खोज उन्हें कहाँ ले जाएगी, यह तो समय ही बताएगा.
शेष भाग अगले अंक में…,



