
धीरे-धीरे, पंडित जी का हृदय परिवर्तन होने लगा. अंजलि के प्रति उनका कठोर रवैया नरम पड़ने लगा. उन्होंने उसे घर के कामों में सलाह देना शुरू कर दिया और कभी-कभी उसके साथ बैठकर पुरानी कहानियाँ भी सुनाते थे.
विकास और उसके पिता के बीच भी बातचीत फिर से शुरू हो गई. रवि ने दोनों के बीच मध्यस्थता की और उन्हें समझाया कि आपसी प्रेम और सम्मान से ही परिवार की नींव मजबूत रह सकती है. एक पारिवारिक भोज के दौरान, पंडित जी ने अंजलि को अपने पास बुलाया और सबके सामने कहा, “बहू, तुम इस घर की लक्ष्मी हो. मैंने तुम्हें समझने में भूल की. मुझे माफ़ कर दो.” अंजलि की आँखों में आँसू आ गए. उसने पंडित जी के पैर छुए और कहा, “पिताजी, अब सब ठीक है.”
उस दिन, तिवारी निवास में बरसों बाद असली खुशी का माहौल था. दरारें अब भी मौजूद थीं, लेकिन उनके बीच प्यार और समझ का एक मजबूत बंधन बन गया था. रवि ने महसूस किया कि समय के साथ, सबसे गहरी दरारें भी स्नेह और क्षमा के पानी से भरी जा सकती हैं. विकास और अंजलि ने राहत की सांस ली और जानकी देवी की आँखों में खुशी के आँसू थे.
राहुल ने अपनी अगली पेंटिंग में तिवारी निवास को दिखाया, लेकिन इस बार दीवारों की दरारें हरी-भरी बेलों से ढकी हुई थीं, जो एकता और प्रेम का प्रतीक थीं. परिवार फिर से एक साथ था, और इस बार उनकी नींव पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत थी, क्योंकि उन्होंने मुश्किलों का सामना करके एक-दूसरे के महत्व को समझ लिया था. दरार ने उन्हें तोड़ा नहीं था, बल्कि उन्हें और करीब ला दिया था.