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दरार एक फैमली ड्रामा…

अतीत के साये, वर्तमान के दर्द

इस पारिवारिक तनाव के बीच, एक पुरानी घटना का साया फिर से मंडराने लगा. कई साल पहले, रवि ने एक प्रेम विवाह किया था, लेकिन उसकी पत्नी, शिखा, शादी के कुछ ही महीनों बाद एक दुर्घटना में चल बसी थी. पंडित जी ने कभी भी शिखा को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि वह भी दूसरी जाति की थी. रवि ने उस दर्द को अपने अंदर दबा लिया था, लेकिन विकास की शादी ने उस पुराने घाव को फिर से हरा कर दिया था.

रवि को अब महसूस हो रहा था कि उसके पिता ने विकास के साथ वही व्यवहार किया जो उन्होंने शिखा के साथ किया था. उसे अपने भाई के लिए सहानुभूति महसूस हुई और पहली बार उसने अपने पिता के सामने अपनी असहमति जताई.

“पिताजी,” रवि ने एक शाम हिम्मत करके कहा, “आपने जो विकास और अंजलि के साथ किया, वह सही नहीं है. आपने शिखा के साथ भी ऐसा ही किया था. क्या आपको याद नहीं कि उस समय मुझे कितना दुख हुआ था?”

पंडित जी रवि की बात सुनकर चुप हो गए. उनके चेहरे पर एक क्षण के लिए पछतावे के भाव दिखे, लेकिन अगले ही पल उनका कठोर मुखौटा वापस आ गया. “वह अलग बात थी,” उन्होंने रूखे स्वर में कहा, “और यह अलग है. परंपराएं और मर्यादाएं परिवार से बढ़कर नहीं होतीं.”

रवि समझ गया कि उसके पिता अपनी सोच से कभी समझौता नहीं करेंगे. उसे निराशा हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी. उसने फैसला किया कि वह अपने भाई और अंजलि का साथ देगा, भले ही इसके लिए उसे अपने परिवार के खिलाफ खड़ा होना पड़े.

शेष भाग अगले अंक में…,

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