
धीरे-धीरे, मनोरमा देवी के धैर्य और रिया के प्रेम ने परिवार के बीच जमी बर्फ को पिघलाना शुरू कर दिया। रिया ने कभी भी पंडित जी का अनादर नहीं किया, बल्कि हमेशा उनका सम्मान करने की कोशिश की. वह उनके लिए सुबह तुलसी का पत्ता और गंगाजल लाती, उनके धार्मिक कार्यों में उनकी मदद करती और घर के बुजुर्गों की सेवा करती.
एक दिन, पंडित जी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. इस मुश्किल समय में, परिवार के सभी सदस्य एक साथ खड़े रहे. आदर्श ने एक डॉक्टर होने के नाते उनकी देखभाल की, अमन ने अस्पताल के सारे इंतज़ाम देखे और अर्जुन और रिया हर पल उनके साथ रहे.
अस्पताल में पंडित जी ने पहली बार रिया के सेवा भाव और समर्पण को करीब से देखा. उन्हें महसूस हुआ कि बाहरी पहचान से ज़्यादा महत्वपूर्ण इंसान का दिल और उसका व्यवहार होता है.
जब वे धीरे-धीरे ठीक होने लगे, तो उनके व्यवहार में स्पष्ट बदलाव आया. उन्होंने रिया से उसकी कला और उसके सपनों के बारे में पूछा. उन्होंने अर्जुन से उसकी कहानियों के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की.
एक शाम, अस्पताल के कमरे में, पंडित जी ने रिया का हाथ थामा और कहा, “बहू, मुझे माफ़ कर दो. मैंने तुम्हें समझने में बहुत देर कर दी. तुम सच में इस घर की लक्ष्मी हो.”
रिया की आँखों में आँसू आ गए. उसने पंडित जी के पैर छुए और कहा, “पिताजी, अब सब ठीक है.”
शेष भाग अगले अंक में…,