
समय बीतता गया, लेकिन पंडित जी का रिया के प्रति व्यवहार नहीं बदला. वे उससे औपचारिक बातें तो करते थे, लेकिन उनके स्वर में वह स्नेह कभी नहीं झलकता था जो वे अपने बेटों के लिए रखते थे. पारिवारिक समारोहों में भी एक अजीब सी खामोशी छाई रहती थी. रिया हर संभव प्रयास करती थी कि सबको खुश रखे, लेकिन पंडित जी की उदासीनता उसे अंदर ही अंदर कचोटती रहती थी.
आदर्श और अमन के बीच भी मतभेद बढ़ने लगे थे. आदर्श को लगता था कि अमन व्यवसाय में ज़्यादा जोखिम ले रहा है और परिवार की आर्थिक स्थिरता खतरे में डाल रहा है. अमन को आदर्श का यह रूढ़िवादी रवैया पसंद नहीं आता था. उसे लगता था कि उसका बड़ा भाई नए विचारों को अपनाने से डरता है.
अर्जुन, जिसने हमेशा अपने परिवार से भावनात्मक जुड़ाव महसूस किया था, इस अलगाव को देखकर दुखी था. उसकी लेखन शैली में उदासी और विद्रोह के स्वर तेज़ होने लगे थे. वह अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाता था, इसलिए उसकी कहानियाँ ही उसकी पीड़ा का माध्यम थीं.
मनोरमा देवी अपने पति और बेटों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश करती थीं. वह रिया को अपनी बहू मानती थीं और उससे स्नेह करती थीं, लेकिन पंडित जी के दृढ़ निश्चय के आगे उनकी ज़्यादा नहीं चल पाती थी. वे अक्सर रात को चुपचाप आँसू बहाती थीं, अपने परिवार को बिखरता हुआ देखकर उनका हृदय व्यथित होता था.
एक दिन, आदर्श और अर्जुन के बीच एक तीखी बहस हो गई. आदर्श ने अर्जुन पर गैर-जिम्मेदार होने और परिवार की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने का आरोप लगाया. अर्जुन ने पलटकर आदर्श पर संकीर्ण मानसिकता का आरोप लगाया. उस दिन के बाद से दोनों भाइयों के बीच बातचीत लगभग बंद हो गई.
शेष भाग अगले अंक में…,