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दरार एक फैमली ड्रामा…

नींव की हिलती दीवारें

बनारस के एक पुराने मोहल्ले में, गंगा किनारे बसे तिवारी निवास में, हमेशा चहल-पहल रहती थी. पंडित रामनाथ तिवारी, अपने सिद्धांतों और परंपराओं के प्रति अटूट निष्ठा रखने वाले एक सम्मानित व्यक्ति थे. उनकी पत्नी, जानकी देवी, ममता और स्नेह की मूर्ति थीं, जिन्होंने अपने तीन बेटों – रवि, विकास और राहुल – को बड़े प्यार से पाला था.

रवि, सबसे बड़ा, एक सफल इंजीनियर था और परिवार की उम्मीदों का भार अपने कंधों पर महसूस करता था. वह शांत स्वभाव का, लेकिन अंदर ही अंदर एक अनकही बेचैनी पाले हुए था. विकास, मंझला बेटा, एक उत्साही और महत्वाकांक्षी व्यवसायी था, जिसकी आधुनिक सोच अक्सर पिता के विचारों से टकराती थी. और राहुल, सबसे छोटा, एक कलाकार था, अपनी ही दुनिया में खोया रहने वाला, जिसकी संवेदनशीलता अक्सर परिवार के व्यावहारिक दृष्टिकोण से मेल नहीं खाती थी.

बाहर से देखने पर तिवारी परिवार एक आदर्श भारतीय परिवार लगता था – संयुक्त, एकजुट और खुशहाल. लेकिन हर पुरानी इमारत की तरह, इसकी नींव में भी कहीं न कहीं हल्की दरारें मौजूद थीं, जो समय के साथ चौड़ी होती जा रही थीं.

यह दरार तब और गहरी होने लगी जब विकास ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर एक अंतरजातीय लड़की, अंजलि, से शादी करने का फैसला किया. पंडित रामनाथ तिवारी के लिए यह एक बड़ा आघात था. उनकी रूढ़िवादी सोच और सामाजिक प्रतिष्ठा को यह रिश्ता स्वीकार्य नहीं था. जानकी देवी ने ज़रूर अपने बेटे का साथ दिया, लेकिन उनके मन में भी कहीं न कहीं समाज के डर और परिवार की टूटन का अंदेशा था.

रवि, हमेशा की तरह, बीच का रास्ता अपनाने की कोशिश कर रहा था. वह अपने भाई की पसंद का सम्मान करता था, लेकिन पिता की भावनाओं को भी समझता था. राहुल, अपनी कल्पना की दुनिया में खोया हुआ, इस पारिवारिक उथल-पुथल को एक दर्शक की तरह देख रहा था, उसकी संवेदनशील आँखें रिश्तों की जटिलताओं को महसूस कर रही थीं.

अंजलि के घर में आने से तिवारी निवास का माहौल बदल गया. परंपरा और आधुनिकता के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई. पंडित जी का मौन और उनकी आँखों में झलकती नाराजगी हर पल अंजलि को पराई होने का एहसास दिलाती थी. विकास अपनी पत्नी और अपने परिवार के बीच फँस गया था, दोनों को खुश रखने की उसकी कोशिशें अक्सर नाकाम हो जाती थीं.

शेष भाग अगले अंक में…,

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