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धुप-छांव -10.
पेड़ की परछाईं की पहली पुकार “जहाँ धूप थक जाती है, वहीं परछाईं बात करने लगती है।” आम का वह…
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धुप-छांव -9.
“छांव की दहलीज़ पर खड़ी धूप” या “आवाज़ जो केवल स्मृति में बोली जाती है. “छांव की दहलीज़ पर खड़ी…
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धुप-छांव -8.
रात्रि संवाद – दो आत्माओं के बीच, जब शब्द भी शांत हो जाते हैं “जब प्रेम प्रकट नहीं हो सका,…
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धुप-छांव -7.
हर वो क्षण जब अर्पिता प्रभात की कहानियों को “सुनती” थी, और उसके मौन को “महसूस” करती थी, वहाँ शब्द…
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धुप-छांव -6.
खोया हुआ प्रेम – परछाईं नहीं, अक्स है जो हमारे भीतर बचा रहता है “प्रेम जो पूरी तरह नहीं कहा…
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धुप-छांव -5.
चिन्मय ने अर्पिता को वह डायरी दी-जो शायद प्रभात उसके लिए छोड़ गया था. “तुम्हारे लिए कभी एक पूरी कहानी…
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धुप-छांव -4.
गाँव तक का सफर आसान नहीं था -ना दूरी के हिसाब से, ना दिल के. हर स्टेशन पर उतरती-चढ़ती भीड़…
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धुप-छांव -3.
मैंने प्रभात को पहली बार लाइब्रेरी में देखा था-किताबों में खोया हुआ, जैसे हर शब्द से वो खुद को जोड़ना…
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धुप-छांव -2.
प्रभात – एक शांत स्वभाव वाला लड़का, जो गांव की मिट्टी में पला-बढ़ा लेकिन शहर के अंधाधुंध उजालों में अपनी…
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धुप-छांव -1.
शहर की भीड़भाड़ से दूर, एक छोटा सा गाँव था – रंगपुर. रंगपुर अपनी शांत वादियों और घने पेड़ों के…
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