story
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फटी चादर और फैलता पैर…
गंगाधर एक जमींदार थे, जिनकी शानो-शौकत कभी दूर-दूर तक फैली थी. अब, वृद्धावस्था और बदलते समय के साथ, उनकी संपत्ति…
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बेबसी… भूख की.
कई साल बीत गए. रामदीन अब बूढ़ा हो चला था, लेकिन उसकी आँखों में आज भी वही चमक थी. गाँव…
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बेबसी… भूख की.
उस दिन के बाद, रामदीन का हौसला कुछ बढ़ा. उसने उस भले आदमी से मिलकर धन्यवाद दिया और उनसे कुछ…
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बेबसी… भूख की.
पूरा दिन भटकने के बाद भी रामदीन को कोई काम नहीं मिला। शाम हो चुकी थी, और वह थका-हारा और…
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बेबसी… भूख की.
शहर गाँव से बिल्कुल अलग था। यहाँ भीड़ थी, शोर था, और दौलत और गरीबी का एक अजीब मिश्रण था.…
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बेबसी… भूख की.
रामदीन की आँखें सुबह की धुंधली रोशनी में खुलीं। उसकी झोपड़ी, जो मिट्टी और फूस से बनी थी, ठंड से…
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जेठ की दुपहरिया…
गाँव के बाहर खेतों के किनारे एक पुराना बरगद का पेड़ था। उसकी घनी छाया में चरवाहे और राहगीर दोपहर…
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