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धुप-छांव -14.
रात का वह क्षण जहाँ बाहर सब शांत है, पर भीतर कोई पुकार चल रही है. अर्पिता खिड़की के पास…
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धुप-छांव -13.
आईने में लौटा चेहरा “आईने कभी चेहरा नहीं दिखाते, वे भाव लौटाते हैं—जैसे कोई भूली हुई आवाज़ स्मृति में फिर…
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धुप-छांव -12.
चौपाल की टूटी खाट और बचपन की चीख़ें “जो खाट अब नहीं बोलती, वही सबसे ज़्यादा सुनती है.” गाँव की…
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धुप-छांव -11.
दादी की रसोई में बचा हुआ हंसी का टुकड़ा “स्मृति का सबसे स्वादिष्ट हिस्सा वह होता है जो कभी थाली…
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धुप-छांव -10.
पेड़ की परछाईं की पहली पुकार “जहाँ धूप थक जाती है, वहीं परछाईं बात करने लगती है।” आम का वह…
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धुप-छांव -9.
“छांव की दहलीज़ पर खड़ी धूप” या “आवाज़ जो केवल स्मृति में बोली जाती है. “छांव की दहलीज़ पर खड़ी…
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धुप-छांव -8.
रात्रि संवाद – दो आत्माओं के बीच, जब शब्द भी शांत हो जाते हैं “जब प्रेम प्रकट नहीं हो सका,…
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धुप-छांव -7.
हर वो क्षण जब अर्पिता प्रभात की कहानियों को “सुनती” थी, और उसके मौन को “महसूस” करती थी, वहाँ शब्द…
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धुप-छांव -6.
खोया हुआ प्रेम – परछाईं नहीं, अक्स है जो हमारे भीतर बचा रहता है “प्रेम जो पूरी तरह नहीं कहा…
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धुप-छांव -5.
चिन्मय ने अर्पिता को वह डायरी दी-जो शायद प्रभात उसके लिए छोड़ गया था. “तुम्हारे लिए कभी एक पूरी कहानी…
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