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मनोरोग अस्पताल का सनरूम, सुबह 10:23 बजे
धूप में नमी, खिड़की से झाँकता नीम का पेड़
शीशे में झलकता बीता वक्त
नलिन व्हीलचेयर पर बैठा खिड़की के शीशे में अपना धुँधला प्रतिबिंब देख रहा था. तभी शीशे पर एक और चेहरा उभरा – गायत्री, जिसके हाथ में वही स्टेथोस्कोप था जिस पर नलिन ने छह महीने पहले “तुम्हारी धड़कन मेरी है” खुदवाया था.
नलिन (शीशे पर उंगली रखकर)-
“ये… ये मेरी लिखावट है न?”
उसकी उंगली काँप रही थी, मानो समय के पार जा रही हो.
स्पर्श की भाषा
गायत्री ने स्टेथोस्कोप उसकी ओर बढ़ाया. नलिन ने उसे छूते ही एक झटका सा महसूस किया –
नलिन के दिमाग में कौंधे-
कैफे में गायत्री को पहली बार ग्रीन टी ऑर्डर करते देखना
उसके हाथ की मेहँदी की खुशबू
बारिश में भीगकर उसके घर तक साइकिल चलाना
नलिन (आँखें मूंदकर)-
“तुम… तुम्हारे हाथों में… मेहँदी की खुशबू है…”
गायत्री के आँसू स्टेथोस्कोप पर टपके, जहाँ उसका नाम लिखा था.
डॉक्टर का चौंकाने वाला नोट
डॉ. मल्होत्रा ने चार्ट पर लिखा-
*”मेमोरी रिकवरी – 12% (भावनात्मक यादें पहले लौट रही हैं)”*
नर्स (फुसफुसाते हुए)-
“ये असंभव है! ECT के बाद भावनात्मक मेमोरी सबसे बाद में आती है!”
डॉ. मल्होत्रा (मुस्कुराते हुए):
“प्रेम हमेशा विज्ञान को चुनौती देता है, नर्स.”
अधूरी याद का दर्द
नलिन ने अचानक गायत्री का हाथ पकड़ लिया-
“पर… पर मैं ये क्यों याद नहीं कर पा रहा कि तुमने मुझे छोड़ क्यों दिया था?”
गायत्री की सांसें थम गईं – वह एक ऐसा सच था जो अभी नहीं लौटना चाहिए था.
प्रतीक: स्टेथोस्कोप = दो दिलों का जुड़ाव
वैज्ञानिक चमत्कार: ECT के बावजूद भावनात्मक स्मृतियों का लौटना
अनसुलझा सवाल: क्या यादों के साथ दर्द भी लौटेगा?
शेष भाग अगले अंक में…