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सुरमई शाम…

समंदर की गूँज

समंदर किनारे वह शाम कुछ अलग थी। लहरों की आवाज़ में कोई अनकहा गीत था, हवा में घुलती धुन जो किसी भूली-बिसरी कहानी की तरह लग रही थी.

विवान, एक लेखक, अपनी नोटबुक के पन्नों पर शब्दों की तलाश में बैठा था। वह अपनी नई किताब के लिए कुछ प्रेरणा चाहता था—कुछ ऐसा जो दिल को छू जाए, जो उसके शब्दों में जादू भर दे.

तभी, एक बूढ़ा नाविक पास आया. उसकी आँखों में गहरे समंदर की कहानियाँ छिपी थीं. उसने कहा, “यह लहरें सिर्फ़ पानी की आवाज़ नहीं हैं, इनमें उन लोगों की गूँज भी है जो कभी समंदर से लौटकर नहीं आए.”

विवान चौंका। क्या वह केवल एक कहानी थी, या उस नाविक ने किसी अनकहे रहस्य का इशारा किया था? उसने अपनी नोटबुक खोली, लेकिन जैसे ही पहली पंक्ति लिखी, अचानक हवा तेज़ हो गई, और उसकी पुरानी डायरी के पन्ने उड़ने लगे.

एक पन्ना उसके पैरों के पास गिरा—उस पर एक अधूरी कविता थी, जो उसने वर्षों पहले लिखी थी… लेकिन उसके शब्द बदल गए थे. क्या समंदर की लहरों में सचमुच कोई अनदेखी आवाज़ थी? क्या यह कहानी उसकी अपनी थी, जो अब लौट रही थी?

~ समाप्त ~

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