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सुरमई शाम…

आरव और वृद्ध व्यक्ति के बीच संवाद

वृद्ध व्यक्ति अपनी कांपती उंगलियों से तस्वीर को कसकर पकड़ रहा था. उसकी आँखें भावनाओं से भरी थीं—जैसे कोई भूली-बिसरी याद अचानक लौट आई हो.

वृद्ध: “तुमने इसे कहाँ देखा?” (उसकी आवाज़ धीमी लेकिन गहरी थी.)

आरव (संकोच में): “मैं… मैं इसे अपनी कल्पना में देखता रहा. जब मैंने स्केच बनाना शुरू किया, तो यह चेहरा खुद उभर आया.”

वृद्ध (आश्चर्य से): “कल्पना? नहीं… यह सिर्फ़ कल्पना नहीं हो सकती. यह मेरी बेटी है। वह बरसों पहले… खो गई थी.”

आरव ने तस्वीर को ध्यान से देखा. उसकी स्केच और तस्वीर में कोई फर्क नहीं था—जैसे किसी ने अतीत से कोई छवि खींच ली हो.

आरव (गंभीर स्वर में): “आपकी बेटी… क्या आप यकीन से कह सकते हैं कि यह वही है?”

वृद्ध (आँखों में आँसू लिए): “अगर मेरी आँखें सही देख पा रही हैं, तो हाँ. यह वही चेहरा है, जो मेरी यादों में था. लेकिन यह कैसे संभव है कि तुमने इसे बनाया?”

आरव के मन में अनगिनत सवाल उठने लगे. क्या उसकी कला में कोई अनदेखी शक्ति थी? या वह किसी अनजाने रहस्य को उजागर करने जा रहा था.

शेष भाग अगले अंक में…,

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