अनन्त चतुर्दशी…
भादो महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है, और इसी दिन गणपति बप्पा आपके घर से विदा लेते हैं. भगवान अनंत की पूजा करने व अनंत सूत्र बांधने से अनंत भगवान सभी संकटों से रक्षा करते है. भविष्य पुराण के अनुसार, जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हार कर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी. धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्रधारण किया व व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हुए और महाभारत के युद्ध में उन्हें विजयी की प्राप्ति हुई थी. अनंत चतुर्दशी का पर्व हिंदू के साथ- साथ जैन समाज के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है, चुकिं जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का इसी दिन समापन होता है. जैन अनुयायी इस दिन श्रीजी की शोभायात्रा निकालते हैं, और भगवान का जलाभिषेक भी करते हैं.
धर्म ग्रन्थों के अनुसार, इस व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, लेकिन यदि ऐसा संभव न हो तो, घर में, पूजागृह में या स्वच्छ भूमि पर ही कलश स्थापित करें. कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को रखें, साथ ही चौदह गांठों से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) भी रखें. इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करें. पूजनोपरांत अनन्त सूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें.
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
अनंत सूत्र बांध लेने के बाद किसी भी ब्राह्मण को नैवेद्य देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें. पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें.
कथा: –
सत्ययुग में सुमन्तु नाम के एक मुनि थे उनकी पुत्री शीला भी अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी. सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया. कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं. शीला ने भी अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्र बांध लिया, इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया. कुछ दिनों बाद जब कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा? क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है, लेकिन ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत ही समझा और अनन्तसूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया, साथ ही उसे आग में डालकर जला दिया. इस जघन्य कर्म के कारण उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई, और दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने को विवश हो गये. जब कौण्डिन्य ऋषि को अपने अपराध का बोध हुआ तो उन्होंने अपने उस अपराध के प्रायश्चित करने का निर्णय लिया. वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए, और उन्हें रास्ते में जो कोई भी मिलता, वे उससे ही अनन्त देव का पता पूछते जाते. बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को तैयार हुए, तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया.
भगवान ने मुनि से कहा, तुमने जो अनन्तसूत्र का तिरस्कार किया, यह सब उसी का फल है, इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो. इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी और समृद्ध हो जाओगे. कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष ही स्वीकार कर लिया. भगवान ने कहा, जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है, और मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट भी पाता है. अनन्त-व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से से पाप नष्ट होते हैं, और सुख-शांति प्राप्त होती है. कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया.
भविष्य पुराण के अनुसार, जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हार कर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी.
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Anant Chaturdashi…
The Chaturdashi of Shukla Paksha of Bhado month is called Anant Chaturdashi and on this day Ganpati Bappa bids farewell to your house. By worshipping Lord Anant and tying Anant Sutra, Lord Anant protects you from all troubles. According to Bhavishya Purana, when the Pandavas were suffering in the forest after losing all their kingdom in gambling, Lord Krishna advised them to observe the fast of Anant Chaturdashi. Dharmaraj Yudhishthira, along with his brothers and Draupadi, observed this fast with full rituals and wore Anant Sutra and due to the effect of the fast, the Pandavas were freed from all troubles and won the war of Mahabharata. The festival of Anant Chaturdashi is important for the Jain community as well as Hindus because on this day the Daslakshana festival of Jainism is celebrated. Jain followers take out a procession of Shreeji on this day and also do the Jalabhishek of the Lord.
According to religious texts, the resolution and worship of this fast should be done on the banks of a holy river or lake, but if this is not possible, then place the Kalash in the puja room at home or on clean ground. Place an idol or picture of Lord Vishnu lying on the bed of Sheshnag on the Kalash, and also place the Anantasutra with fourteen knots. After this, worship Lord Vishnu with the Shodashopachar method with the ‘Om Anantyaanam:’ mantra and worship the Anantasutra. After the worship, men should recite the mantra and tie the Anantasutra in their right hand and women should tie the Anantasutra in their left hand.
Anantasagaramahasamudremagnansamabhyuddharavasudev।
Anantarupeviniyojitatmahyanantarupayanamonamaste॥
After tying the Anant Sutra, offer Naivedya to any Brahmin and then take Prasad with your family. After the puja, read the Vrat Katha.
Katha: –
In Satyayug, there was a sage named Sumantu. His daughter Sheela was also very well behaved as per her name. Sumantu sage married that girl to Koundinya muni. When Koundinyamuni was returning home from his in-laws’ house with his wife Sheela, he saw some women worshipping Lord Anant on the banks of the river. Sheela too, knowing the significance of Anant-Vrat, worshipped Lord Anant along with those women and tied the Anant Sutra. As a result, in a few days, her house was filled with wealth and prosperity. After a few days, when Koundinya muni’s eyes fell on the Anant Sutra tied on his wife’s left hand, he got confused and asked his wife? Have you tried this Sutra to control me? Sheela humbly replied, no, this is the holy thread of Lord Anant, but Kaundinya, blinded by his wealth, misunderstood his wife’s correct statement and broke the Anant Sutra thinking it to be a magical thread used for Vashikaran, and also threw it in the fire and burnt it. Due to this heinous act, all his wealth was destroyed, and he was forced to live in a miserable condition. When Kaundinya Rishi realized his crime, he decided to atone for his crime. He went to the forest to seek forgiveness from Lord Anant, and whoever he met on the way, kept asking him about the whereabouts of Lord Anant. When Kaundinya Muni did not meet Lord Anant even after a lot of searching, he got disappointed and was ready to give up his life, then an old Brahmin came and stopped him from committing suicide and took him to a cave and showed him the Chaturbhuj Anant Dev. God said to the sage, all this is the result of your disrespect towards Anantasutra, to atone for this, you should observe Ananta-vrata continuously for fourteen years. After completing this fast, you will regain your lost wealth and you will become happy and prosperous as before. Muni Kaundinya gladly accepted this order. God said, the living being suffers the result of his past misdeeds in the form of misfortune, and man also suffer many troubles due to the sins of many births. By observing Ananta-vrata properly, sins are destroyed, and happiness and peace are attained. Muni Kaundinya regained his lost prosperity by observing Ananta-vrata regularly for fourteen years.
According to Bhavishya Purana, when the Pandavas were suffering in the forest after losing their entire kingdom in gambling, then Lord Krishna advised them to observe Ananta Chaturdashi fast.