एक विचारधारा…
वर्ष 1972 की सर्दियों में नीतीश जी के पिता स्व रामलखन बाबू ने उनकी शादी तय कर दी ।उस वक्त उनकी आयु 21 वर्ष थी और पटना में इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के आखरी वर्ष के छात्र थे ।लड़की थीं शिवदह गाँव के अमीर किसान और स्कूल प्रध्यापक कृष्ण नंदन सिन्हा जी की ज्येष्ठ सुपुत्री मंजू जी, जो पटना में ही मगध महिला कॉलेज की छात्रा थी ।शादी तय होने के बाद उनके दोस्तों ने मंजू जी को देख लेने का प्रस्ताव दिया,15 वर्ष की आयु में पटना आने वाले नीतीश जी आरम्भ से ही संकोची किस्म के थे, वो गए नही, हाँ उनके दोस्त (अरुण जी, नरेंद्र जी, कौशल जी) होस्टल के घंटो चक्कर काटने के बाद उनकी एक झलक पाने में कामयाब हो गए थे, और नीतीश जी को ढूंढकर बता दिया था कि लड़की सौम्य और सुंदर और आकर्षक मुस्कान वाली हैं ।
आज जो भी नीतीश जी समाज सुधार के लिए कर रहे हैं वो सब वो व्यक्तिगत जीवन मे कर चुके हैं । 22हज़ार दहेज का लेन देन का प्रस्ताव दोनों परिवारों बीच था, भनक नीतीश जी को पड़ी,।समाजवाद और लोहियावादी विचारधारा को आत्मसात करने वाले नीतीश जी मन ही मन दहेज रहित और साधारण पध्दति से विवाह करने का मौन संकल्प ले चुके थे ।आखिरकार सबको उनकी जिद के आगे झुकना पड़ा, और दहेज वापसी भी हुई और शादी हुई कोर्ट में। इस शादी की काफी प्रशंसा हुई ,यहाँ तक कि महान उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु जी ने कहा कि”वो नीतीश जैसे नवयुवक को ही अपना दामाद बनाना पसंद करेंगे जो महिलाओं की हिस्सेदारी चूल्हे-चौके से आगे हर क्षेत्र में करने का पक्षधर है। शादी के बाद दोनों परिवार नीतीश जी के इंजीनियर के रूप में जीविका शुरू करने की आशा में थे, लेकिन नीतीश जी राजनीति को ही अपना कैरियर बनाने का संकल्प कर चुके थे ।
मंजू जी उनकी इस इच्छा को भली भांति जानती थी और वर्ष 1974 से 1977 के जे पी और छात्र आंदोलन के दौरान जब वो जेल में थे या भूमिगत थे हर परिस्थिति में उनका हौसला बढ़ाया। वर्ष 1974 में सितंबर से नवम्बर तक वो गया जेल में थे, उस वक्त मंजू जी को याद करके नीतीशजी कहते हैं -“गया सेंट्रल जेल का सुपरिंटेंडेंट निहायत क्रूर आदमी था। वह कैदियों के रिश्तेदारों को सप्ताह में केवल एक बार मिलने की इजाजत देता था और वह किसी को भी दरवाजे के अंदर नहीं आने देता था। मुलाकाती को लोहे की जाली लगी खिड़की के बाहर खड़ा रहना पड़ता था और कैदी को अंदर। मंजू सप्ताह में एक बार मुझसे मिलने आती, लेकिन उस निर्दयी ने मेरी पत्नी को भी अंदरआने की अनुमति नहीं दी। उसने खिड़की में जड़ी लोहे की जाली भी ऐसी बनवाई थी कि मैं मंजू की उँगली भी नहीं छू सकता था, ताकि मैं अगले सप्ताह फिर मिलने की उम्मीद में उस याद के साथ रह सकूँ। कल्पना कीजिए; हम जवान थे और हमारा विवाह हुए अभी डेढ़ वर्ष ही बीता था।
वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में टिकट चुकने के बाद हरनौत से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन पिछड़ी जाति में सम्पन्न तबकों में आरक्षण का विरोध करने ,धन बल का उपयोग नही होने की वजह से ये चुनाव वो 5000 वोट से हार गए । इस हार को दिलो दिमाग से झटकने के बाद नीतीश फिर से हरनौत में जनसंपर्क में व्यस्त हो गए, वर्ष 1979 में मंजू जी को कंकड़बाग में एक सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल चुकी थी (कंकड़बाग उनका मायका भी था और स्कूल भी नजदीक था),वर्ष 1980 में जून में भी नीतीश फिर से सारी योग्यताओं के बावजूद चुनाव हार गए, इस हार ने उनका खुद में विश्वास पूरी तरह हिला कर रख दिया ।इस हार के बाद कुछ ही हफ्ते बाद मंजू जी ने 20 जुलाई 1980 को निशान्त को जन्म दिया। बढ़ी जिम्मेदारी और चुनाव की नाकामियों ने उन पर और भी दवाब बढ़ा दिया, उन्होंने ठेकेदार बनने का फैसला कर लिया था, लेकिन उनके दोस्तों और मंजू जी दोनों को मालूम था कि वो राजनीति के अलावा कुछ और ना तो कर पाएंगे ना खुश् रह पाएंगे ,लेकिन परेशान रहने वाले नीतीश को देखकर उनके ससुराल वाले काम-धंधे के साथ राजनीति करने की सलाह देते थे और कभी कभी मंजू जी भी उनकी बातों में आ जाती थीं ,इससे उन दोनों के संबंध में तनाव हुआ, नीतीश पटना आते थे मंजू जी और निशांत से मिलने अक्सर लेकिन ज्यादा दिन रुकते नही थे ।
दोस्तों और मार्गदर्शकों की प्रेरणा से नीतीश अपने आपको एक आखरी मौका देने के लिए व्यवहारिक रूप से जुट गए, मंजू जी को वादा करके”इस बार सफल नही हुआ तो राजनीति त्याग कर कोई परंपरागत काम करेंगे और गृहस्थ जीवन में रम जाएंगे “” लेकिन मंजू जी उनको विजयी देखना चाहती थी और बिना नीतीश जी के जानकारी के उन्होंने उनके दोस्त नरेंद्र को बुलाकर अपनी सारी बचत 20000 रुपये दे दिए चुनाव खर्च के लिए ये चुनाव नीतीश जी 22000 वोट से जीते,पटना में वर्ष 1985 से 1989 तक दोनों साथ थे, वर्ष 1989 में नीतीश जी लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुँचे और उनको मंत्री भी बनाया गया, नीतीश जी ने बिहार भवन में प्रतिनियुक्ति पर मंजू जी का तबादला दिल्ली करवाया, लेकिन मीडिया में पद के दुरूपयोग के आरोप से आहत नीतीश जी ने फैसला किया कि मंजू जी अपना पद नही ग्रहण करेंगी और वापस पटना जाकर उसी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर देंगी ।
नीतीश बाबू का मानना था कि राजनीति एक जोखिम भरा काम है अगर वो असफल होते हैं तो उनका परिवार वित्तिय रूप से परेशान हो जाएगा इसलिए मंजू अपनी नौकरी बनाये रखें।उसके बाद नीतीश जी वर्ष 2005 तक दिल्ली में सांसद/मंत्री के तौर रहे ,इस दौरान दोनों निरंतर संपर्क में थे और नीतीश अक्सर उनसे मिलने जाते थे। Media hype- किसी के निजी रिश्ते पर कुछ भी लिखना आजकल लोग अपना मौलिक अधिकार समझते हैं,बिना सच जानने की कोशिश किये !!किसी इंसान के निजी जीवन में झांकने से पहले उस इंसान को समझना चाहिए..लोग तो जशोदा बेन और मोदी जी के उस रिश्ते को भी बदनाम करते हैं जो वास्तविक रूप में कभी था ही नहीं, लेकिन किसी ने मोदीजी का दिल नही देखा कि भले ही चुनाव के एक कॉलम में लेकिन वो भूले नही की उनकी शादी हुई थी ।
नीतीश जी निजी तौर पर अकेले रहना पसंद करते हैं बचपन से, और निजी जिंदगी पर कभी चर्चा नही करते। वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वो इस इंतज़ार में थे कि रिटायरमेंट के बाद मंजू जी अणे मार्ग आयेंगी वो आयी 15 मई 2007 को.अपनी आखिरी विदाई के लिए और नीतीश जी का इंतज़ार जीवन भर के लिए इंतज़ार ही रहेगा।लीवर(लंग) फेलियर की वजह से मंजू जी का निधन 14 मई 2007 को दिल्ली के मैक्स अस्पताल में हुआ, वो 30 अप्रैल से दिल्ली में भर्ती थीं, उस दौरान से लेकर उनके दश-क्रिया तक फूट-फूट कर रोते नीतीश बाबू को देखकर कोई भी उस रिश्ते की सच्चाई समझ सकता है।
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In the winter of 1972, Nitish ji’s father late Ramlakhan Babu fixed his marriage. At that time he was 21 years old and a final year student of electrical engineering at Engineering College in Patna. The girls were rich farmers and school students of Shivdah village. Manju, the eldest daughter of Professor Krishna Nandan Sinha, was a student at Magadha Women’s College in Patna. After the marriage was fixed, her friends proposed to see Manju, Nitish, who came to Patna at the age of 15, started He was shy since then, he did not go, yes his friends (Arun ji, Narendra ji, Kaushal ji) managed to get a glimpse of him after roaming around the hostel for hours, and found him and told Nitish ji that The girl is gentle and beautiful with a charming smile.
Whatever Nitish ji is doing for social reform today, he has done all that in his personal life. There was a proposal of 22,000 dowry transactions between the two families, and Nitish ji got the inkling. Had to bow down to stubbornness, and the dowry was also returned and the marriage took place in the court. This marriage was highly praised, even the great novelist Phanishwarnath Renu ji said that “He would like to make a young man like Nitish his son-in-law who is in favor of women’s participation in every field beyond the stove. After marriage, Both families were hoping for Nitish ji to start a career as an engineer, but Nitish ji had resolved to make politics his career.
Manju ji knew his wish very well and encouraged him in every situation during JP and the student movement from 1974 to 1977 when he was in jail or underground. He was in Gaya Jail from September to November in the year 1974, at that time Nitishji remembers Manju ji and says – “The Superintendent of Gaya Central Jail was a very cruel man. He used to allow the relatives of the prisoners to meet him only once a week. And he did not allow anyone inside the door. The visitor had to stand outside the iron-barred window and the prisoner inside. Manju used to come to see me once a week, but the cruel man forced my wife to come in too. I didn’t give permission. He even made the iron net in the window so that I couldn’t even touch Manju’s finger so that I could live with that memory in the hope of meeting again next week. Imagine; we were young and Only a year and a half had passed since the marriage.
After losing the ticket in the 1977 Lok Sabha elections, he contested the assembly elections from Harnaut, but he lost this election by 5000 votes due to opposing reservations in backward castes and the non-use of money power. After losing heart and mind, Nitish again got busy in public relations in Harnaut, in the year 1979, Manju ji got a job as a teacher in a government school in Kankarbagh (Kankarbagh was also her maternal home and the school was also nearby). In June 1980, Nitish again lost the election despite all the qualifications, this defeat completely shook his confidence in himself. A few weeks after this defeat, Manju ji gave birth to Nishant on July 20, 1980. Gave. Increased responsibility and election failures increased the pressure on him even more, he decided to become a contractor, but both his friends and Manju ji knew that he would not be able to do anything other than politics and would not be happy, But seeing troubled Nitish, his in-laws used to advise him to do politics along with business and sometimes Manju ji also used to come in his talk, this caused tension between them, Nitish used to come to Patna, Manju ji and Used to meet Nishant often but did not stay for long.
With the inspiration of friends and mentors, Nitish practically got engaged to give himself one last chance, promising Manju ji that “if he is not successful this time, he will leave politics and do some traditional work and get busy in household life.” But Manju Ji wanted to see him victorious and without the knowledge of Nitish ji, he called his friend Narendra and gave his entire savings of Rs 20,000 for the election expenses. In the year 1989, Nitish ji reached Delhi after winning the Lok Sabha elections and he was also made a minister. Will not take up her post and will go back to Patna and start teaching in the same school.
Nitish Babu believed that politics is a risky job if he fails then his family will be financially troubled so Manju should keep her job. After that Nitish ji remained as MP/Minister in Delhi till the year 2005. During this, both were in constant touch and Nitish used to visit him often. Media hype- nowadays people consider it as their fundamental right to write anything about someone’s personal relationship, without trying to know the truth!! Let’s defame even that relationship which never existed in real form, but no one saw Modiji’s heart that even though in a column of an election, he did not forget that he was married.
Nitish ji likes to be alone in private since childhood, and never discusses his personal life. After becoming the chief minister in the year 2005, he was waiting that after retirement Manju ji would come to Ane Marg, she came on 15 May 2007. For her last farewell and waiting for Nitish ji will remain to wait for life. Liver (Lung) Due to failure, Manju ji died on May 14, 2007, in Max Hospital, Delhi, she was admitted in Delhi on April 30, during that time, seeing Nitish Babu crying bitterly till his action, no one could see that relationship. can understand the truth of.
Prabhakar Kumar.