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आखिर ट्रम्प की झल्लाहट भारत ही पर क्यूँ…?

डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति काल (वर्ष 2017-2021) अमेरिकी विदेश नीति में उथल-पुथल और अप्रत्याशित फैसलों के लिए जाना जाता है. उनकी आलोचनाओं और ट्वीट्स का निशाना बनने वाले देशों में भारत भी शामिल रहा. ट्रम्प ने भारत को “टैरिफ किंग” कहा, व्यापार घाटे पर नाराजगी जताई, और कई मुद्दों पर सीधी प्रतिक्रिया दी. आखिर क्यों भारत उनकी नाराजगी का केंद्र बना? इसके पीछे कई आर्थिक, भू-राजनीतिक, और व्यक्तिगत कारण हैं.

ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का मूल मंत्र था — वैश्विक व्यापार में अमेरिकी हितों को प्राथमिकता. वर्ष   2019 में, अमेरिका का भारत के साथ $23.3 बिलियन का व्यापार घाटा था. ट्रम्प ने इसे “अनुचित” बताते हुए भारत पर टैरिफ लगाए, खासकर स्टील-एल्युमिनियम पर (25% और 10%). भारत ने जवाबी टैरिफ (अमेरिकी सेब, अखरोट आदि पर) लगाए, जिससे तनाव बढ़ा. GSP (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज) रद्द करना: वर्ष 2019 में अमेरिका ने भारत को GSP से हटाया, जिससे $5.6 बिलियन का निर्यात प्रभावित हुआ. ट्रम्प का आरोप था कि भारत “अमेरिकी बाजार का फायदा उठा रहा है.”

भारत ने रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने का फैसला किया, जो अमेरिकी कानून CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के तहत प्रतिबंधित है. ट्रम्प प्रशासन ने चेतावनी दी, लेकिन भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी. हालांकि, ट्रम्प ने भारत को “रूस-चीन के प्रभाव” से बचाने की बात भी कही, जो उनकी उलझन दर्शाता है.

अमेरिका में H-1B वीज़ा पर निर्भर भारतीय आईटी पेशेवर ट्रम्प की नीतियों के शिकार हुए. ट्रम्प ने इस वीज़ा को “सस्ते श्रम का जरिया” बताया और इसे प्रतिबंधित करने की कोशिश की. वर्ष  2020 में, कोविड के बहाने H-1B पर अस्थाई रोक लगाई गई, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों में खटास आई. अमेरिकी कंपनियां भारत की “कीमत नियंत्रण नीति” और जेनेरिक दवाओं के उत्पादन से नाराज़ रही हैं. ट्रम्प ने वर्ष 2018 में भारत को प्रायोरिटी वॉच लिस्ट में रखा, यह कहते हुए कि “भारत अमेरिकी पेटेंट कानूनों का उल्लंघन करता है.”

अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने वर्ष 2019 तक ईरान से तेल खरीदना जारी रखा. ट्रम्प की तालिबान के साथ डील को भारत ने सुरक्षा खतरे के रूप में देखा. ट्रम्प चाहते थे कि भारत QUAD में सक्रिय भूमिका निभाए, लेकिन साथ ही उन्होंने भारत-चीन तनाव पर मध्यस्थता की पेशकश करके दोनों देशों को असहज किया.

ट्रम्प को “लेन-देन” आधारित राजनय पसंद था, जबकि भारत “सामरिक साझेदारी” पर जोर देता है. उनकी ‘हाउडी मोदी!’ रैली (2020) और “भारत को हरित ऊर्जा पर करोड़ों डॉलर देने” की टिप्पणी में विरोधाभास दिखा. साथ ही, ट्रम्प ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान समर्थक बयान भी दिए, जिससे भारत नाराज़ हुआ.

ट्रम्प की भारत के प्रति झल्लाहट सिर्फ व्यापार या नीतिगत मतभेद नहीं, बल्कि उनकी लोकलुभावन राजनीति का हिस्सा थी. अमेरिकी मध्यवर्ग को यह दिखाना ज़रूरी था कि वह “चीन और भारत जैसे देशों से सौदेबाजी कर सकते हैं.” हालांकि, रणनीतिक स्तर पर अमेरिका ने भारत को INDO-PACOM में अहम साझेदार माना, इसलिए टकराव के बावजूद संबंध बने रहे. ट्रम्प की नाराजगी भारत की बढ़ती आर्थिक-सैन्य शक्ति और स्वतंत्र नीतियों के प्रति एक प्रतिक्रिया थी, जो अमेरिकी एकाधिकार को चुनौती देती है.

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