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न्यूक्लियर समझौता टूटने के फायदे, नुकसान और विश्व पर प्रभाव

परमाणु हथियारों के विकास, तैनाती और नियंत्रण को लेकर दो या अधिक देशों के बीच जो संधि होती है उसे ही न्यूक्लियर समझौता कहा जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो न्यूक्लियर समझौता एक अंतरराष्ट्रीय संधि या करार है जिसमें देश परमाणु हथियारों के निर्माण, परीक्षण, भंडारण और प्रसार पर नियंत्रण के लिए सहमत होते हैं. इस संधि का मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

बताते चलें कि, सोवियत संघ और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते की शुरुआत शीत युद्ध के दौरान हुई, जब दोनों देशों ने परमाणु हथियारों की होड़ को कम करने और युद्ध के खतरे को रोकने के लिए बातचीत शुरू की. वर्ष 1972 में, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने सामरिक शस्त्र सीमा संधि (SALT I) पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्देश्य रणनीतिक परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करना था. वर्ष 1987 में, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने मध्यम दूरी की परमाणु शक्ति संधि (INF संधि) पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्देश्य 500 से 5,500 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली जमीन से लॉन्च होने वाली परमाणु और पारंपरिक मिसाइलों पर प्रतिबंध लगाना था. इस दौरान दोनों देशों ने संधि के तहत करीब 2600 से अधिक मिसाइलें नष्ट की थीं.

रूस (सोवियत संघ) और अमेरिका के बीच वर्ष 1987 में हुई न्यूक्लियर समझौते को रूस ने हाल ही में घोषणा की कि वह INF संधि का पालन नहीं करेगा. न्यूक्लियर समझौता टूटने से के फायदे व नुक्सान…

फायदा: –

न्यूक्लियर समझौतों को कुछ देश अपनी संप्रभुता पर हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं. वहीं, इस समझौता के टूटने से वो देश अपनी रक्षा नीतियों को स्वतंत्र रूप से निर्धारित कर सकते हैं. परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से अनुसंधान कर सकते हैं. कुछ देशों को लगता है कि न्यूक्लियर समझौते उन्हें कमजोर बनाते हैं। समझौता समाप्त होने से वे अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर देखें तो अमेरिका द्वारा ईरान न्यूक्लियर डील (JCPOA) वहीं, दूसरी तरफ उत्तर कोरिया ने NPT (नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी) छोड़ने के बाद अपने परमाणु कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया है.

 नुक्सान: –

न्यूक्लियर समझौतों को टूटने से देश बिना किसी प्रतिबंध के परमाणु हथियार बना सकते हैं, जिससे अस्त्र-शस्त्र की होड़ बढ़ सकती है. परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ने से युद्ध का खतरा बढ़ता है, जिससे पूरी मानवता को खतरा हो सकता है. समझौता तोड़ने वाले देशों पर अक्सर यू एन या अन्य शक्तियों द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है. उदाहरण के तौर पर देखें तो उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों ने उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है.

जिस तरह रूस और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर समझौता टूटने के बाद अमेरिका, रूस, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है. वहीं, दूसरी तरफ नए सैन्य गठजोड़ भी बन सकते हैं, जैसे QUAD (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का मजबूत होना। संयुक्त राष्ट्र (UN) और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) जैसे संगठनों का प्रभाव भी कम हो सकता है.

समझौता टूटने के बाद दो देशों के बीच तनाव बढ़ेगा जिसके कारण तेल की कीमतें, व्यापार युद्ध और आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित हो सकती है साथ ही परमाणु परीक्षणों से रेडियोधर्मी प्रदूषण बढ़ सकता है, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ेगा. परमाणु समझौते का टूटना केवल सैन्य नीति नहीं, बल्कि यह वैश्विक भरोसे, कूटनीति और नैतिकता की कसौटी भी है. यह न केवल वैश्विक सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा कर सकता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और कूटनीति के माध्यम से ही इस चुनौती का समाधान संभव है.

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