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इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.

पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को जितना सराही गयी उतनी ही इनकी आलोचना भी हुयी. कांग्रेस सिंडिकेट ने गूंगी गुड़िया को कठपुतली की तरह अपने इशारे पर काम करने के लिये वर्ष 1967 में प्रधानमंत्री मनोनीत कराया था. पर वर्ष 1969 तक आते आते यह गूंगी गुड़िया इतनी मुखर हो गयी कि कांग्रेस के पुराने महारथी अपने लंबे अनुभव और अपनी सांगठनिक क्षमता की थाती, लिए दिए ढह गये.

कांग्रेस में एक नए स्वरूप का जन्म हुआ. तब हेमवती नंदन बहुगुणा ने कहा था, इंदिरा गांधी आयी हैं, नयी रोशनी लायीं है. यह नयी रोशनी, राजाओं के प्रिवी पर्स की समाप्ति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण के रूप में नमूदार हुई. यह कालखंड, कांग्रेस के अर्थनीति में बदलाव के काल के रूप में देखा गया. नयी पार्टी, पहले तो इंदिरा कांग्रेस या कांग्रेस (आई),  कहलाई पर धीरे धीरे छह लोकप्रिय होती गयी और  पुरानी कांग्रेस संगठन कांग्रेस के नाम से चलते चलते वर्ष 1977 में जनता पार्टी में विलीन होकर फिर  समाप्त हो गयी और इंदिरा कांग्रेस ही मूल कांग्रेस के रूप में स्थापित हो गयी.

वर्ष 1971 में उनके नेतृत्व की वास्तविक पहचान हुयी. किसी के भी नेतृत्व की परख, संकटकाल में ही होती है. जब सब कुछ ठीक चल रहा होता है तो लोगों का दिमाग नेतृत्व के गुण अवगुण पर कम ही जाता है. पर संकट काल मे नेतृत्व, उस संकट से कैसे देश या संस्था को निकालता है इसकी परख संकट में ही होती है. वर्ष 1971 में पाकिस्तान का भारत पर हमला, अमेरिका का पाकिस्तान को हर प्रकार का समर्थन, यह इंदिरा गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन कर आया. पर वे सफल रहीं और बांग्लादेश का निर्माण, पाकिस्तान की करारी हार, सोवियत रूस से बीस साल परस्पर सुरक्षा संधि कर के, अमेरिका को जबरदस्त कूटनीतिक जवाब देकर, उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी धाक जमा ली और वे देश की, निर्विवाद रूप से समर्थ नेता बन गई.

कूटनीति के क्षेत्र में भी रूस से बीस साला सैन्य मित्रता से, उन्होंने, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा था. तब यह भी सवाल उठा था कि क्या भारत ने निर्गुट नीति से किनारा कर लिया है ? जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था. यह समझौता, पाकिस्तान यूएस संबंधों और पाकिस्तान की भारत नीति का जवाब देने के लिए समय और विश्वराजनीति की एक अहम जरूरत थी. इसका लाभ भी भारत को मिला. जब पाकिस्तान, 1971 में हारने लगा, बांग्ला मुक्ति अभियान तेज होने लगा, तो युद्ध को रोकने के लिए पाकिस्तान की मदद में, यूएस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्ध विराम प्रस्ताव लाया. उस समय तक, बांग्लादेश मुक्त नहीं हो पाया था, पाकिस्तान निरंतर पराजित हो रहा था, यदि बीच में ही युद्ध विराम हो जाता तो, न बांग्लादेश बन पाता और न ही पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय ही हो पाती. सब कुछ अधर में ही थम जाता.

ऐसे कठिन कूटनीतिक समय पर सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया और सुरक्षा परिषद में, युद्ध विराम के अमेरिकी प्रस्ताव को वीटो कर दिया. इस प्रकार के कुल तीन युद्ध विराम प्रस्तावो पर रूस ने वोटो कर के भारत का उस कठिन समय में साथ दिया था. निक्सन किसिंगर कूटनीतिक युग में इंदिरा गांधी की यह बेमिसाल कूटनीतिक सफलता थी. पर तब डंका बज रहा है जैसी बाजारू शब्दावली से प्रशंसा करने की परंपरा नहीं थी. पर इतनी सारी उपलब्धियां, बहादुरी के यह सारे किस्से, सब वर्ष 1975 आते आते भुला दिए गए, जब 26 जून को अचानक इमरजेंसी की घोषणा हो गई तो.

जनता भूलती भी बहुत जल्दी है और भुलाती भी जल्दी है. यह इंदिरा का अधिनायकवादी रूप था. प्रेस पर सेंसर लगा. पूरा विपक्ष जेल में डाल दिया गया. कारण बस एक ही था वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपने चुनाव की याचिका हार चुकी थी.  देश मे बदलाव हेतु सम्पूर्ण क्रांति का आंदोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहा था. वे चाटुकारों से घिर गई थी. इंदिरा इंडिया हैं और इंडिया इंदिरा कही जाने लगी थी. इतनी सराही गयी नेता को भी जनता ने बुरी तरह नकार् दिया और वे वर्ष 1977 में विपक्ष में आ गई. वे खुद अपना चुनाव हार गयीं. वर्ष 1977 के चुनाव में यूपी बिहार में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली.

जनता की नब्ज नेताओ को पहचाननी चाहिये. राजनीति में न कोई अपरिहार्य होता है और न ही विकल्पहीनता जैसी कोई चीज होती है. शून्य यहां नहीं होता है. कोई न कोई उभर कर आ ही जाता है. इंदिरा वर्ष 1977- 80 तक विपक्ष में थीं. वर्ष 1980 में फिर वे लौटीं. वर्ष 1984 में उनकी हत्या कर दी गई. उनका इतिहास बेहद उतार चढ़ाव भरा रहा. वे जिद्दी, तानाशाही के इंस्टिक्ट से संक्रमित, लग सकती हैं और वे थीं भी पर देश के बेहद कठिन क्षणों में उन्होंने अपने नेतृत्व के शानदार पक्ष का प्रदर्शन किया, जब वे अपने दल और देश में सर्वेसर्वा थी.

भारत की राजनीति में प्रतिभावान और दिग्गज विपक्षी नेताओं के होते हुए भी, वे सब पर भारी रहीं. बीबीसी के पत्रकार और उनके स्वर्ण मंदिर कांड पर एक चर्चित पुस्तक लिखने वाले मार्क टुली ने मज़ाक़ ही मज़ाक़ में, लेकिन एक सच बात कह दी थी कि, “पूरे कैबिनेट में वे अकेली मर्द थी.” इतिहास निर्मम होता है, वह किसी को नहीं छोड़ता, सबका मूल्यांकन करता है, सबकी खबर रखता है. साथ ही सबकी खबर भी लेता है.

इंदिरा के जीवन, राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के अध्ययन से हम यह सीख सकते हैं राजनीति में सफल से सफल व्यक्ति के पतन के पीछे सबसे बड़ा कारण चाटुकारों की मंडली होती हैं. साथी जब सहकर्मी या कॉमरेड न रह कर दरबारी हो जाते हैं तो यह अतिशयोक्तिवादी चाटुकार मंडली अंततः नेता के पतन का कारण बनती हैं. ऐसे तत्व हर वक़्त यह कोशिश करते हैं कि नेता बस उन्ही की नज़रों से देखें और उन्ही के कानों से सुने. वे प्रभामण्डल का ऐसा ऐन्द्रजालिक प्रकाश पुंज रचते हैं कि उस चुंधियाये माहौल में, सिवाय इन चाटुकारों के कुछ दिखता ही नहीं है. राजनीति में जब नेता खुद को अपरिहार्य और विकल्पहीन समझ बैठता है तो उसका पतन प्रारंभ हो जाता है. वर्ष 1975 में ही इंदिरा के पतन की स्क्रिप्ट तैयार होना शुरू हो गयी थी. वर्तमान समय के राजनेता उनके इस अधिनायकवादी काल के परिणाम से सबक ले सकते हैं.

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A lot can be learned from the political life of Indira Gandhi.

Former Prime Minister Mrs. Indira Gandhi was praised as much as she was criticized. The Congress Syndicate had nominated Gungi Gudiya as the Prime Minister in the year 1967 to act as a puppet at its behest. But by the year 1969, this dumb doll became so vocal that the old Maharathis of Congress collapsed for their long experience and their organizational ability.

A new form was born in Congress. Then Hemwati Nandan Bahuguna said, Indira Gandhi has come, she has brought new light. This new light was visible in the form of the abolition of privy purses of kings and the nationalization of banks. This period was seen as a period of change in the economic policy of Congress. The new party, first called the Indira Congress or Congress (I), gradually became popular, and the old Congress organization, going by the name of the Congress, merged with the Janata Party in the year 1977 and ended again, and the Indira Congress was the original Congress. established as.

In the year 1971, his leadership got real recognition. The test of anyone’s leadership is only in times of crisis. When everything is going well, people’s mind rarely goes on the merits and demerits of leadership. But in times of crisis, how the leadership pulls out the country or the organization from that crisis, is tested in the crisis itself. In the year 1971, Pakistan’s attack on India, and America’s all kinds of support to Pakistan, came as the biggest challenge in front of Indira Gandhi. But she was successful and by building Bangladesh, defeating Pakistan, signing a 20-year mutual security treaty with Soviet Russia, and giving a tremendous diplomatic response to America, she established herself in Indian politics and became the undisputed leader of the country. It has become

In the field of diplomacy too, with twenty years of military friendship with Russia, he had added a new chapter in the field of international relations. Then the question was also raised whether India has turned away from the non-aligned policy. While this was not the case at all. This agreement was an important need of the hour and world politics to respond to Pakistan-US relations and Pakistan’s India policy. India also got its benefit. When Pakistan started losing ground in 1971, the Bangla liberation campaign started gaining momentum, to help Pakistan stop the war, the US brought a ceasefire resolution to the UN Security Council. Till that time, Bangladesh had not been liberated, and Pakistan was continuously getting defeated, if there was a ceasefire in the middle, neither Bangladesh would have been formed nor Pakistan would have been defeated humiliatingly. Everything would have stopped in the middle.

At such a difficult diplomatic time, the Soviet Union supported India and vetoed the American proposal for a ceasefire in the Security Council. Russia supported India in that difficult time by voting on a total of three such ceasefire proposals. This was Indira Gandhi’s unmatched diplomatic success in the Nixon-Kissinger diplomatic era. But then there was no tradition of praising with marketable vocabulary like Danka is ringing. But all these achievements, all these stories of bravery, all were forgotten by the year 1975, when suddenly an Emergency was announced on 26th June.

The public forgets very quickly and also forgets very quickly. This was the authoritarian form of Indira. The sensor on press. The entire opposition was put in jail. The reason was only one, she had lost her election petition in the Allahabad High Court. For a change in the country, the movement of complete revolution was going on under the leadership of Jayaprakash Narayan. She was surrounded by sycophants. Indira is India and India started being called Indira. Even the much-admired leader was badly rejected by the public and she came into the opposition in the year 1977. She herself lost her election. In the year 1977 elections, Congress did not get a single seat in UP Bihar.

Leaders should recognize the pulse of the people. In politics, neither is anything inevitable nor is there such a thing as no choice. Zero doesn’t happen here. One or the other emerges. Indira was in opposition till 1977-80. She returned again in the year 1980. He was assassinated in the year 1984. His history was full of ups and downs. She may seem stubborn, infected with the instinct of dictatorship, and she was, but she demonstrated the brilliant side of her leadership in the most difficult moments of the country when she was the surveyor of her party and the country.

Despite being a talented and veteran opposition leader in Indian politics, she was overshadowed by all. Mark Tully, a BBC journalist and author of a popular book on her Golden Temple scandal, jokingly but truthfully said, “She was the only man in the entire cabinet.” History is ruthless, it spares no one, evaluates everyone, and keeps news of everyone. Also takes everyone’s news.

From the study of Indira’s life, and her important role in politics, we can learn that the biggest reason behind the downfall of a successful person in politics is the circle of sycophants. This hyperbolic sycophancy circle eventually leads to the downfall of the leader when the companions cease to be colleagues or comrades and become courtiers. Such elements all the time try to see the leaders only through their eyes and listen through their ears only. They create such a magical beam of light in the aura that in that blinding environment, nothing is visible except these sycophants. In politics, when the leader considers himself indispensable and has no alternative, then his downfall begins. In the year 1975, the script of Indira’s downfall started getting ready. The politicians of the present day can take a lesson from the result of their totalitarian era.

Prabhakar Kumar.

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