
भूमिगत गुफा की शांत और रहस्यमय झील में, जलक ने एक अजीब सी हलचल महसूस की. एक धीमी सी लहर उसके पास से गुजरी, और तभी उसे एक शांत आवाज़ सुनाई दी, मानो पानी ही बोल रहा हो. उसने ध्यान से सुना, और आवाज़ स्पष्ट हुई.
“स्वागत है, छोटी बूँद. तुम एक लम्बी यात्रा पर हो.”
जलक ने आश्चर्य से चारों ओर देखा, लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया. फिर, ठीक उसके नीचे, उसने एक धीमी गति से तैरती हुई मछली देखी. उसकी त्वचा लगभग पारदर्शी थी, और सबसे खास बात यह थी कि उसकी आँखें नहीं थीं.
“तुम कौन हो?” जलक ने धीरे से पूछा.
मछली ने शांति से उत्तर दिया, “मैं यहाँ की निवासी हूँ. मैंने कई बूँदों को इस झील में आते और जाते देखा है. मेरा नाम नहीं है, लेकिन तुम मुझे ‘दृष्टिहीन ज्ञानी’ कह सकती हो.”
जलक अचरज में पड़ गई. “तुम… तुम देख नहीं सकती, फिर भी तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?”
दृष्टिहीन ज्ञानी ने धीरे से अपनी पूंछ हिलाई. “देखने के लिए आँखों की ज़रूरत होती है, छोटी बूँद, लेकिन महसूस करने के लिए नहीं. मैंने तुम्हारे आने की कंपन महसूस की, और तुम्हारे ‘मन’ की उत्सुकता को भी जानती हूँ.”
जलक इस बुद्धिमान जीव से बहुत प्रभावित हुई. उसने पूछा, “यहाँ तो हमेशा अंधेरा रहता है. तुम कैसे जीती हो?”
दृष्टिहीन ज्ञानी ने एक गहरी साँस ली, मानो कोई गहरा रहस्य बता रही हो. “शुरुआत में यह मुश्किल था. जब मैं यहाँ आई, तो मुझे रोशनी की आदत थी. लेकिन धीरे-धीरे, मैंने इस अंधेरे के अनुकूल होना सीखा. मैंने अपनी अन्य इंद्रियों को तेज किया. मैं पानी के बहाव को महसूस कर सकती हूँ, आसपास की सूक्ष्म हलचलों को सुन सकती हूँ, और पानी में घुले हुए खनिजों को ‘सूंघ’ सकती हूँ. यह दुनिया देखने वालों के लिए भले ही खाली लगे, लेकिन मेरे लिए यह अनगिनत सूचनाओं से भरी हुई है.”
उसने आगे कहा, “जीवन हर परिस्थिति में अपना रास्ता खोज लेता है, छोटी बूँद. तुम्हें बस धैर्य रखना होता है और अपने आस-पास के बदलावों को स्वीकार करना होता है. अनुकूलन ही जीवित रहने की कुंजी है.”
जलक ने दृष्टिहीन ज्ञानी के शब्दों को ध्यान से सुना. उसे समझ में आया कि देखना ही सब कुछ नहीं होता. महसूस करना, सुनना और परिस्थिति के अनुसार ढलना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
उसने पूछा, “तुम यहाँ इतने शांत कैसे रह पाती हो? बाहर तो बहुत शोर और हलचल है.”
दृष्टिहीन ज्ञानी ने उत्तर दिया, “इस गुफा में समय अलग तरह से बहता है. यहाँ शांति है, स्थिरता है. मैंने सीखा है कि धैर्य क्या होता है. बड़ी यात्राएँ छोटे-छोटे, धीमे कदमों से ही पूरी होती हैं. तुम्हारी नदी तक की यात्रा भी ऐसी ही होगी. रास्ते में कई बाधाएँ आएंगी, कई बदलाव होंगे, लेकिन तुम्हें धैर्य रखना होगा और हर नई परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालना होगा.”
जलक को दृष्टिहीन ज्ञानी की बातों से गहरा ज्ञान मिला. उसने सीखा कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी शांत और अनुकूल बने रहना है. उसने यह भी समझा कि हर जीव के पास कुछ खास होता है, भले ही वह दूसरों से अलग क्यों न दिखे.
कुछ देर और दृष्टिहीन ज्ञानी से बातें करने के बाद, जलक को आगे बढ़ने का समय हो गया. उसने उस बुद्धिमान मछली को धन्यवाद दिया और उस धारा में शामिल हो गई जो झील के दूसरी ओर से निकल रही थी. दृष्टिहीन ज्ञानी के शब्द उसके मन में गूँज रहे थे, “धैर्य और अनुकूलन.”
यह मुलाकात जलक के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई. उसने न केवल एक अद्भुत जीव को देखा, बल्कि जीवन के एक गहरे सत्य को भी जाना.
शेष भाग अगले अंक में…,