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एक सफर…

गाँव और कुआँ

एक शांत और पुराने गाँव के हृदय में, जहाँ समय की गति धीमी और जीवन सरल था, खड़ा था एक प्राचीन कुआँ. यह कुआँ सिर्फ गाँव के लोगों के लिए पानी का स्रोत नहीं था, बल्कि उनकी दैनिक जीवनशैली का एक अभिन्न अंग था. इसकी जगत, सदियों से अनगिनत पैरों के स्पर्श से चिकनी हो चुकी थी, गाँव की महिलाओं के लिए गपशप का अड्डा थी, बच्चों के लिए खेलने की जगह, और बुजुर्गों के लिए अपनी यादों को ताज़ा करने का शांत कोना.

कुआँ गोल पत्थरों से बना था, जिनकी दरारों में छोटी-छोटी जंगली घास और काई जमी हुई थी, जो उसकी उम्र और गाँव के साथ उसके गहरे संबंध की गवाही देती थी. सुबह की पहली किरणें जब कुएँ के पानी पर पड़ती थीं, तो वह किसी चमकीले दर्पण की तरह चमक उठता था, और शाम की सुनहरी रोशनी में उसका पानी रहस्यमय गहरापन लिए हुए लगता था.

कुएँ की गहराई अज्ञात थी, एक गहरा नीला रहस्य जो बच्चों की कल्पनाओं को उड़ान देता था. जब कोई पत्थर गलती से कुएँ में गिर जाता, तो उसकी आवाज़ धीरे-धीरे नीचे गहराई में खो जाती, जिससे यह एहसास होता था कि कुआँ कितना गहरा है. गाँव के लोग मानते थे कि कुएँ का पानी कभी खत्म नहीं होगा, यह धरती माँ के हृदय से सीधा जुड़ा हुआ है.

कुएँ के चारों ओर एक कच्चा चबूतरा बना हुआ था, जहाँ लोग अपनी पानी की बाल्टियाँ रखते थे और थोड़ी देर आराम करते थे. गर्मी के दिनों में, कुएँ के पास की ठंडी हवा एक सुखद राहत देती थी. कुएँ की जगत पर बैठी एक छोटी सी लड़की, राधिका, अक्सर घंटों तक कुएँ के पानी को निहारती रहती थी. उसकी आँखें उस गहराई में कुछ खोजने की कोशिश करती थीं, एक ऐसे रहस्य की तलाश में जो सतह पर दिखाई नहीं देता था.

राधिका ने गाँव के बुजुर्गों से कुएँ के बारे में कई कहानियाँ सुनी थीं. कुछ कहते थे कि कुएँ के नीचे एक गुप्त खजाना छुपा है, कुछ कहते थे कि वहाँ जलपरियाँ रहती हैं, और कुछ यह भी मानते थे कि कुएँ का पानी धरती के नीचे से बहकर कहीं दूर एक बड़ी नदी में जाकर मिलता है. यह आखिरी बात राधिका के मन में गहराई से बैठ गई थी. उसे उस नदी को देखने की तीव्र इच्छा थी, उस अज्ञात यात्रा के अंतिम पड़ाव को जानने की उत्सुकता थी.

एक दोपहर, जब गाँव के अन्य बच्चे खेल रहे थे, राधिका अकेली कुएँ की जगत पर बैठी थी. उसने अपनी छोटी सी उँगली पानी में डुबोई और उस ठंडक को महसूस किया. उसने धीरे से पानी से पूछा, “तुम कहाँ जाते हो? क्या सच में तुम उस बड़ी नदी से मिलते हो जिसके बारे में दादी माँ बताती हैं?”

तभी, उसकी दादी माँ, जो पास ही बैठी धूप सेंक रही थीं, ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ बेटी, हर पानी का स्रोत अंततः सागर या नदी में मिलता है. यह एक लम्बी यात्रा होती है, जिसमें कई मोड़ और रहस्य होते हैं.”

दादी माँ के इन शब्दों ने राधिका के मन में एक बीज बो दिया – कुएँ से नदी तक के उस अदृश्य और रोमांचक सफ़र की कल्पना का बीज. उसी पल, राधिका ने निश्चय कर लिया कि वह इस यात्रा के बारे में सोचेगी, कल्पना करेगी, और उस रहस्यमय मार्ग को अपनी कल्पना में जीवंत करेगी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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