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साहित्यकार महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की एक प्रमुख लेखिका, कवयित्री और निबंधकार थीं. उन्हें हिंदी की “छायावादी” काव्यधारा की एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है. उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था. महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं में प्रेम, करुणा, पीड़ा और समाज में महिलाओं की स्थिति को अभिव्यक्ति दी है.

उनकी कुछ प्रमुख काव्य कृतियाँ “यामा,” “नीरजा,” “रश्मि,” और “सांध्यगीत” हैं. इसके अलावा, महादेवी वर्मा ने कई प्रसिद्ध निबंध भी लिखे, जिनमें उन्होंने समाज और महिलाओं से जुड़े विषयों पर गहराई से विचार किया. उनके निबंध संग्रहों में “अतीत के चल चित्र” और “पथ के साथी” विशेष रूप से चर्चित हैं.

महादेवी वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं: -साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956, यामा के लिए), पद्म भूषण (1956), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), पद्म विभूषण (1988).

उनकी कविताओं में एक प्रकार की करुणा और संवेदना देखने को मिलती है, जो उनके व्यक्तित्व और जीवन-दर्शन को भी दर्शाती हैं. महादेवी वर्मा का साहित्यिक योगदान न केवल हिंदी साहित्य में, बल्कि भारतीय समाज के सांस्कृतिक और मानसिक विकास में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उनका निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ, लेकिन उनका साहित्यिक योगदान आज भी अमर है.

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Literary person Mahadevi Verma

Mahadevi Verma was a prominent writer, poet and essayist of Hindi literature. She is considered an important pillar of the “Chhayavadi” poetry stream of Hindi. She was born on 26 March 1907 in Farrukhabad, Uttar Pradesh. Mahadevi Verma has expressed love, compassion, suffering and the status of women in society in her poems.

Some of her major poetic works are “Yama,” “Neerja,” “Rashmi,” and “Sandhyageet.” Mahadevi Verma also wrote many famous essays, reflecting deeply on topics related to society and women. “Ateet ke Chal Chitra” and “Path ke Saathi” are especially famous among her essay collections.

Mahadevi Verma received many honours for her literary contribution, prominent among which are: – the Sahitya Akademi Award (1956, for Yama), Padma Bhushan (1956), Jnanpith Award (1982), and Padma Vibhushan (1988).

A kind of compassion and sensitivity is seen in her poems, which also reflects her personality and philosophy of life. Mahadevi Verma’s literary contribution holds an important place not only in Hindi literature but also in the cultural and mental development of Indian society. She died on 11 September 1987, but her literary contribution is immortal even today.

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